पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भुजप्रतिभुज २५८० भुनना भुजप्रतिभुज-संक्षा पुं० [सं० ] परल क्षेत्र की समानांतर या भुजेल-संज्ञा पुं० [सं० भुजंग ] भुजंगा नामक पक्षी । उ.- ___ मारने खाने की भुजाएँ। भँवर पतंग जरे ी नागा। कोकिल भुजैल औ सघ कागा। भुजबंद-सं. 1 पुं० [सं० भावध ] (1) दे. "भुजबंध"। (२) —जायसी । बा नूनंद । उ०—टाँड भुजबंद चूढ़ा बलयादि भषित, ज्यों भुजौना *-संवा पु० [हिं० भूजना ] (1) भुना हुभा अन्न । देखि देखि दुरहुर इंद्र निदरत है। हनुमान । भूना । भूता । भुजैना । उ०--फेर फेर तन कीन भुजौना। भुजबंध-में-1 पु० [सं० (8) अंगद (२) भुजवेष्ठन । औटि रफत रंग हिरदे औना ।-नायसी । (२) वह धन भुजबल-संका पुं० [हि. भुज+बल ] शालिहोत्र के अनुसार या अजनी भूनने के बदले में दिया जाय। भूनने की मज़- एक भौती जोहो? के अगले पैर में ऊपर की ओर होती : दूरी । (३) वह धन जो रुपया या नोट आदि भुनाने के है। लोगों का विश्वास है कि जिस घाड़े को यह भौरी होती है, वह अधिक बलवान होता है। भुज्य-सं. पुं० [सं०] (१) भाजन । पात्र । (२) अग्नि । (३) भुजवाथ-सं. पुं० [हिं० भुज+बाधना ] अकवार । उ०—ग वैदिक काल के एक राजा का नाम । यह मु का पुत्र था मचित मृगलोचनी भरेउ उलटि भुजबाथ । जान गई तिय और अश्विनी ने इसे समुद्र में डूबने से बचाया था। नाथ को हाथ परमह हाथ ।-लिहारी। भुटिया-संज्ञा स्त्री० [देश॰] एक प्रकार का धास जो डोरिए भुजमूल-सं-पु० [सं०] (१) खवा । पक्वा । मोड़ा । (२) काँख। और चारवाने के बुनने में डाली जाती है। (जुलाहे ) भुजवा -संज्ञा पुं० [हिं० भूनना ] भाना। उ०-भुवा पढ़े ! भुट्टा-संदा पुं० [सं० भृष्ट प्रा० मुट्टो ] (१) मक्के की ही बाल । __करित जीव दपाय जरा -ताल। वि० दे० "मक्का"। (२) जुनार वा बाजरे की बाल । भुजशिरुर-संक्षा पुं० [सं०] कंधा । उ.--अं.कृष्णचंद्र ने तिरछी कर एक हाथ ऐसा मारा कि भुजशिर-सं। पुं० [सं०] कंधा। उत्पका पिर भुट्टा सा उड़ गया । वल्लू । (३) गुच्छा। भुजांतर-संज्ञा पुं० [सं०] (1) कोड । गोद। (२) वक्ष । छाती। धौद। उ०-कहीं पुखराजों की डंडिया से पाने के पत्ते (३) दो भुजाओं का अंतर । निकलकर मोतियों के भुट्ट लगाए है।-शत्रप्रपाद । भुजा-सं. स्त्री० [सं० ] बाह। हाथ। भुठार-संज्ञा पुं० [हिं० भूड़ ] वह घोड़ा जो ऐसे प्रदेश में उत्पन्न मुहा०-भुजा उठाना-प्रतिज्ञा करना। प्रण करना। उ.-चल हुआ हो जहाँ की भूमि बलुई वा रेतील हो। म ब्रह्मकुल सन बरियाई । सत्य कहउँ दोउ भुजा उठाई।- भुठौर-संज्ञा पुं० [हिं० भूड+ठौर ] घादों की एक जाति जो सुरमी। भुगटफना-प्रतिज्ञा करना । प्रण करना । उ.- गुरात आदि मरुस्थल देशों में होती है। उ.-मुराफी औ भजा कि के पंडित शेला। छाइह देस बचन जो हिरमिजी इराकी ।तुक कंगी मुहार बुलाकी।--जायसी। डोरा ।—जायसी। भुडली-संका स्त्री० [ देश० ] एक प्रकार का फूल। मुजाना -क्रि० स० दे० "भुनाना"। भुड़ागे-संशा गुं० [हिं० भू+डालना ] वह अन्न जो राशि के भुजाली-संशा स्त्री० [हिं० भुज+आली (प्रत्य॰)] (1) एक प्रकार दाने पर बाल में डंठल के साथ लगा रहता है। लिङ्करी । की बड़ी टेई हुरी जिसका व्यवहार प्राय: नेपाली आदि : दोबरी । पकूटी । चित्ती । करते है। इसे कुकरी या खुस्वरी भी कहते है। (२) छोटी विशेष- इस शब्द का प्रयोग प्रायः रबी की फसल के लिये परछी। होता है। भुजान-संसा पुं० [सं०] हाथ । भुन-संज्ञा पुं० [ अनु.] मक्खी आदि का शब्द । अव्यक्त गुंजार भुजादल-सं-1 पुं० [सं० ] करपालव । का शब्द। भुजामूल-मः पुं० [सं.] कंधे का वह अगला भाग जहाँ हाय महा-भुनभुन करना=कुढ़कर अस्पष्ट स्वर में कुछ कहना । ' और कंधे का जोर होता है । याहुमूल । भुनना-संज्ञा पुं० [ अनु० ] [स्त्री० भुनगी] (१) एक छोटा भुजिया -संभा पुं० [हिं० भूजना-भूनना] (1) उबाला हुआ धान।। उड़नेवाला कीड़ा जो प्रायः फूलों और फलों में रहता है क्रि० प्र०—करना ।-बैठाना । और शिशिर ऋतु में प्रायः उदता रहता है। (२) कोई (२) उबाले हुए धान का चावल । वि. दे. "धान" और उड़नेवाला छोटा कदा । पतिंगा । (३) बहुत ही तुच्छ या "चावट"। निर्बल मनुष्य । भुजिष्य-संज्ञा पुं० [सं०] [ सी० भुजिष्या ] दास । सेवक । भुनगी-संशा स्त्री० [हिं० मुनगा ] एक छोटा कोमा जो ईस्व के भुजिष्टा-संज्ञा स्त्री० [सं० ] (1) मी। (२) गणिका । था। पौधों को हानि पहुंचाता है।। भुजेना:-संज्ञा पुं० [हिं० मूमना] भूना हुआ दाना। बैना । भूना। भुनना-कि० अ० [हिं० भनना ] (1) भूनने का अकर्मक रूप।