पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२९

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फुहार मलेग-संज्ञा पुं० [हिं० फूल ] फूल की बनी हुई छतरी जो देव का कोई आभूषण या उसका कोई भाग। ताओं के ऊपर लगाई जाती है। फवारा-संज्ञ पुं० दे० "फुहारा"। फुलेल-संज्ञा पुं० [हिं० फल +तेल ] (१) फूलों की महक से बासा फुस-संज्ञा स्त्री० [ अनु. वह शब्द जो मुँह से साफ फूटकर न हुआ तेल जो सिर में लगाने के काम में आता है। सुगंध. निकले। बहुत धीमी आवाज़। युक्त तेल। मुहा०-फुस से-बहुत धीरे से । अत्यंत मंद स्वर से । जैसे, विशेष-तिल को धाकर छिलका अलग कर देते हैं। ताजे जो बात होती है वह उसके पास जाकर फुस से कह फूलों की कलियाँ चुनकर बिछा दी जाती है और उनके आता है। ऊपर तिल छित्तरा दिए जाते हैं। तिलों के ऊपर फिर फूलों फूसकारना*-कि.० अ० । अनु.] फूंक मारना । फस्कार की कलियाँ बिछाई जाती है। कलियों के खिलने पर छोड़ना । उ०-ऐयो फैल परत फुसकारत ही में मानों फूलों की महक तिलों में आ जाती है। इस प्रकार कई : तारन को वेद फतकारन गिरत है।-पद्माकर । बार तिलों को फूलों की तह पर फैलाते हैं। जितना ही लड़ा-संज्ञा पुं० दे० "फुचड़ा"। अधिक तिल फूलों में पाया जाता है उतनी ही अधिक फुसफुसा-वि० [हिं० फस, अनु० फुस ] (1) जो दबाने में सुगंध उसके तेल में होती है। इस प्रकार बासे हुए तिलों : बहुत जल्दी चूर चूर होजाय । जो कड़ा या करारा न हो। को पेलकर कई प्रकार के नेल तयार होते हैं; जैसे, चमेली नरम । दीला । (२) फुस से टूट जाने वाला । कमज़ोर । का तेल, बेले का तेल । गुलाब के तेल को गुलरोगन कहते (३) जो तीक्ष्ण न हो। मंदा । मद्धिम । जैसे, फुसफुसा है। उ०—(क) उर धारी लटे छूटी आनन पै, भीजी फुले. तंबाकू। लन मों, आली हरि संग केलि।-सूर। (ख) रे गंधी, फुसफुसाना-कि० स० [ अनु० ] फुसफुस करना । इतना धीरे मतिमंद तू अतर दिखावत काहि । करि फुलेल को आचमन धीरे कहना कि शन्द व्यक्त न हो। बहुत ही दबे हुए स्वर मीठो कहत सराहि ।—बिहारी। से बोलना। (२) एक पेड़ जो हिमालय पर कुमाऊँ से दारजिलिंग फुसलाना-क्रि० स० [हिं० फिस लाना] (1) बच्चों को शांत रखने तक होता है। इसके फल की गिरी खाई जाती है और , के लिए किसी प्रकार उनका ध्यान दूसरी ओर ले जाना। उससे तेल भी निकलता है जो साबुन और मोमबत्ती भुलाकर शांत और चुप रखना । बहलाना । जैसे,-बच्चों बनाने के काम में आता है। लकड़ी हलके भूरे रंग की को फुसलाना सब नहीं जानते। (२) अनुकूल करने के होती है जिसकी मेज़, कुरसी आदि बनती है। लिए मीठी मीठी बातें कहना। किसी बात के पक्ष में या फलेली-संज्ञा स्त्री० [हिं० फलेल ] कांच आदि का वह बड़ा बरतन किसी ओर प्रवृत्त करने के लिये इधर उधर की बात जिसमें फुलेल रखा जाता है। करना। भुलावे की बातें करना । चकमा देना । झाँसा फुलेह-संज्ञा पुं० [हिं० फल+हार ] सूत, रेशम आदि के बने देना । बहकाना। उ.-बुद्धि की निकाई कछु जाति है हुए झब्बेदार बंदनवार जो उत्सवों में द्वार पर लगाए जाते न गाई लाल ऐसी फुसलाई है, मिलाई लाल उर सों।- हैं। उ.-प्रदीप पाँति भावती सुमंगलानि गावती । सुदाम उधुनाथ। (३) मीठी मीठी बातें कहकर अनुकूल करना । दाम पावती फुलेहरानि लावती।-रघुराज। इधर उधर की बातें करके किसी ओर प्रवृप्त करना । फुलौरा-संशा पुं० [दि. फुलोरा ] बड़ी फुलौरी । पकौड़ा। भुलावा देकर अपने मतलब पर लाना । जैसे, (क) वह फुलौरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० फल+व। ] चने या मटर आदि के बेसन हमारे नौकर को फुसला ले गया। (ख) दसरे फरीक ने की बरी । बेसन की पकौड़ी। उ०—ापर, वरी, फुलौरि, गवाहों को फुसला लिया। मिथौरी । कूरवरी, कधरी, पीठौरी ।—सूर । संयोगक्रि०-लेना। विशेष-बेसन को पानी में खूब फेटकर उसे खौलते हुए धी (४) मनाना। संतुष्ट करने के लिए प्रिय और विनीत या तेल में थोड़ा थोड़ा करके डालते हैं जिसमें फल और वधन कहना । उ०-राजा ने उन ब्राह्मणों के पाँव पड़ पक कर गोल गोल बरी बन जाती हैं। पर अमेक भौति फुपलाया समझाया, पर उन तामसी फुल्ल-वि० [सं० ] फूला हुआ। विकसित । प्राह्मणों ने राजा का कहना न माना। लल्लू। फुलदाम-संज्ञा पुं० [सं० फुलदामन् ] उनीस वर्ण की एक वृत्ति ' फुहार-संशा पुं० [सं० फूत्कार फैक से उठा हुआ पानी का छीटा जिसके प्रत्येक चरण में ६, ७, ८, ९, १०,११ और.. या बुलबुला ] (1) पानी का महीन छींटा । जलकण । (२) वौं वर्ण लघु होता है। महीन बूंदों की सदी। झीसी । उ०-वारि फुहार भरे पुल्ली-संशा स्त्री० [हिं० फल ] (1) फुलिया। (२) फल के आकार ! पदरा सोह सोहत कुंजर से मतवारे।-धीधर । नता