पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२९०

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भुनभुनाना २५८१ भुरषना भूना जाना । (२) आग की गली से पककर लाल होना। भुरकुटा-संवा पुं० [हिं० भुरकुस ] छोटा कहा बा मच्छर । छोटा पकना । जैसे, कबाब का भुनना। कोड़ा। कि० अ० [सं० भजन ] भुनाने का अकर्मक रूप । रुपए | भुकुन-सा पुं० [सं० भुरण, हिं० भुरकना ] चूर्ण । चूरा। आदि के बदले में अटकी, चवती आदि का मिलना। • भु.कुल-संज्ञा पुं० [ अनु० या हिं . भुरकना ] चूर्ण । अवयवा का अवयव में विभाजित वा परिणत हो।। बड़े मुहा०-मुरकुप निकलना=(१) चूर चूर होना। (२) इतना निक्के आदि का छोटे छोटे सिक्कों में बदला जाना। मार खाना कि हई। पसली चूर चूर हो जाय । बेदम होना । भुनभुनाना-क्रि० अ० [ अनु(1) भुन भुन शब्द करना । (३) नष्ट होना । परबाद होना । भुरकुस निकालना=(१) (२) किपी पिरोधी वा प्रतिकूल दमात्र में पड़कर मुँह से । इतना मारना कि हट्टी पसली चूर चूर हो जाय । मारत मारते अव्यक्त शब्द निकाल्ना । मन ही मन कुढ़कर अस्पष्ट स्वर : बंदम करना । (२) वेकाम करना । किसी काम का न रहने में कुछ कहना । बड़वदाना। देना (३) नष्ट करना । बरबाद करनः । भनाना-क्रि० स० [हिं० भूनना ] भूनने का प्रेरणार्थक रूप। भुग्जी -संज्ञा पुं० [हिं० भूजना ] भवभूत। दूसरे को भूनने के लिये प्रेरणा करना । । भुरत-संज्ञा पुं॰ [देश ] एक प्रकार का काम जो बरसात में क्रि० स० [म. भंजन ] रुपए आदि को अठती, चवती होती है। यह स्वच्छंद उगती है और जब तक नरम आदि में परिणत कराना। बड़े सिक्के आदि की होटे सिकों . रहता है, तब तक पशु इसे बड़े चाव से खाने है। यह आदिम बदलना । उ०—जो इक रतन भुनाव कोई। कर सुग्वाने के काम की नहीं होती । भरौट। सोई जो मन मह होई।जायली । भुरता-संज्ञा पुं० [हिं० भुरकना या भुरभुरा] (१) दबकर वा भुगा -संज्ञा पुं० दे० "भुनगा"। कुचलकर विकृतास्था को प्राप्त पदार्थ । वह पदार्थ जो भूवि-संज्ञा स्त्री० [सं० भू शब्द का सप्तमी एकवचन रूप भुवि ] : दाहरी दवाव ये ६यकर वा कुचलकर ऐवा धिगर गया हो पृथ्वा । भूमि । उ०—तो जनतेउँ बिनु भट भुवि भाई। कि उसके अवयव और आकृति पूर्ण के समान न रह गई हो। तो पन करि होतेउँ न हँगाई। तुलसी। मुहा०-मुरता करन वा कर देना=कुचलकर पास सलना। भुमिया -संज्ञा पुं० दे. "भूमिया"। दवाकर चूर चूर कर देना। भुरकना-क्रि० अ० [सं० भुरण=गति या हिं० भुरका ] (1) सूख (२) चोखा या भरता नाम का पालन । वि० दे. "धोखा"। कर भुरभुरा हो जाना । (२) भूलना । उ०-योरिय बैस भुरभुर-संज्ञा स्त्री० [देश॰ ] एफ घाय का नाम जो ऊपर या विथोरी भटू ब्रजमोरी सी बानन में भुरकी है।-देव । रेतीली भूमि में होती है। इसे भुरभुरोई या झुलनी भी संयो० क्रि०-जाना। कहते हैं। (३) चूर्ण के रूप के किसी पदार्थ को छिड़कना । भुरभुराना। वि० दे० "भुरभुरा"। रकमा । उ०-जह तहँ लसत महा मदमत्ता वर बानर संज्ञा पुं॰ [ अनु० वा सं० धूरि ] चुका । पारन दल दत्त । अंग अंग चरचे अति चंदन । मुंडन भुरके भुरभुरा-वि. [ अनु०] (सी० भुरभुरी] जिसके कण थोपा देखिय वंदन । -केशव । ____ आघात लगने पर भी चालू के समान अलग अलग हो जायें। संयो। क्रि०-देना। बलुभा । जैसे,-यह लकड़ी बिलकुल भुरभुरी हो गई है। भुरका-संज्ञा पु० [हिं० भुरकना वा सं० धूरि ] बुकनी। अबीर । भुरभुरोई-संश स्त्री० [देश॰] एक प्रकार की घास जो उसर संज्ञा पुं० [हिं० भरना ] (1) मिट्टी का बड़ा कसोरा। और रेतीली भूमि में उपजती है। इसे झुलनी या भुरभुर कुजा । कुल्हर। (२) मिट्टी आदि का वह पात्र जिसमें भी कहते है। लबके लिम्बने के लिये खबिया मिट्टी धोलकर रखते हैं। भुरली-संवा स्त्री० [हिं० भुडल। । (१) मुबली । तूं दी । कमला। खुदका । बुदकना। (२) एक क.का जोरदती की फसल को हानि पहुँचाता है। भुरकाना-क्रि० स० [हिं० भुरकना ] (1) भुरभुरा करना । (२) भुरवना*-क्रि० स० [सं० भ्रमण, हिं . भरमना का प्रेर०] भुलवाना। ठिबकना । भुरभुराना । (३) मुल्वाना । बहकाना। भ्रम में डालना । फुपलाना । उ॰—(क) सूरदास प्रभु उ.-कही हँसि देव शठ कूर ऐबी बड़े आइ कोइ बाल । रसिक खिरो-णि भुरई राधिका भोरी। सूर । (ख) ऊधो भुरकाय दहा ।--विश्वास । अब यह समझि भई। नंदनंदन के अंग अंग प्रति उपमा भुरकी-संज्ञा स्त्री० [हिं० भुरका ] (1) आज रहने के लिये छोटा न्यार दई। कुंतल कुटिल भैर भामिनि वर मालति भुरै कोरिला । धुरकी । (२) पानी का छोटा गड्ढा । हौज़ । लाई। तजत न गहरु कियो तिन कपटी जानि निराश (३) छोटा कुल्हा। ६४६