पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२९१

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मुगई २५८२ भुवन संयोकि०-देना।—लेना।-रखना। मूले पालना रे।-त । (२) भटकना । भरमना । राह भुराई-संज्ञा स्त्री० [हिं० भेला ] भोलापन । सीधापन । भूलना । उ.--यो पयान मारग रहि जाय । कर उ.-(क) लरबहु ताटुकहि लछिमन भाई। भुजनि भयंकर खोज कब न भुलाय ।-कीर । (३) भूल जाना। भेष भुराई। -पद्माकर । (ख) मोचन लागी भुराई की विस्मरण होना । बिरपरना । उ०—(क) मान म्हातम मान बातन सातिनि सोच मुरावन लागी।--तिराप्त । (ग) भुलाना । मानत मानत गवना ठाना ।—कबीर । (ख) राई नोन वारति भुराई देखि आँगनि में दुरै न दुराई पै घड़ी अत होय जो आई । तन की सघ रेत भुलाई।- भुराई मों भरति है। -देव । जायसी । (ग) एवम् स्तु काहे काट मुनि बोला कुटिल संज्ञा पु० [हिं० भूरा ] भूरापन । भूरे होने का भाव । कठोर । मिलब हमार मुलाब जनि कहहु त हमहिन भुराना*-क्रि० स० [हिं० भुलाना वा भूलना ] (1) भूलना। खोरि ।-सुलपी। उ.---(क) मैं अपना पy गाइ घरहौं । प्रात होत बल के ' भुलावा-संज्ञा पुं० [हिं० भूलना ] एल । धोखा । चकर । जैसे- सँग जैही तेरे कहे न भुरहौं ।-सूर (ख) मोचन लागी इस तरह भुलवा देने से काम नहीं चलेगा। भुराई की बातनि सौतिनि सोच भुरावन लागी।- क्रि० प्र०—देना ।—में डालना । मतिराम । (२) दे. "झुरवना" । उ.--तुम मुरये हो नंद | भुपंग-संशा पुं० [सं० भुजंग=प्रा० भुअंग] [स्त्री० भुवंगिनी, भुव- कहल है तुमलों दोटा । दधि ओदन के काज देह धरि आए गिन ] सॉप । उ०—साफर का मुख बिब है निकात छोटा ।-सूर। बच्चन भुवंग । साकी औषधि मौन है विष नहि व्याप भुरुसु-संज्ञा पुं० [सं०] (1) एक गोत्र-प्रवर्तक ऋषि का नाम । अंग।-कबीर। (२) भारुण्ड पक्षी। भुगम-संशा पुं० [सं० भुजंगम, प्रा० भुअंगम ] सौप । उ.- भुरुकी-संशा स्त्री० दे० "भुरका"। (क) कस्ट करि जहि पूतना आई । रूप स्त्ररूप विष स्तन भुलना हा पुं० [हिं० भूलना ] (1) एक धाम का नाम जिसके - लाए राज कप पटाई।... ...... 'गई मूरघा पनी धरनि विषय में लोगों में यह प्रवाद है कि इसके ग्वाने से होग पै मनों भुवंगम ग्याई । सूरदाय प्रभु सुम्हरी लीला भगतन सब बातें भूल जाते हैं। गाइ सुनाई।-सूर । (ख) माईशी माहि' बस्यो भुवंगम मुहा०-मुलना खर खाना-विरमरणशील होना। कारो।-सूर। (२) यह जो भूल जाता हो। भूलनेवाला व्यक्ति । भुवः-संज्ञा पुं० [सं० ] (१) वह आकाश या अवकाश पो भूमि भुलभुला-संशा पुं० [ अनु.] आग का परू.का । गरम राख । और सूर्य के अंतर्गत है । अंतरिक्षलोक । यह सात लोकों भुलवाना-क्रि० स० [हिं० भूलना का प्रे०] (1) भूलना का के तर्गत दूसरा लोक है। (२) सात महाच्यातियों प्रेरणार्थक रूप । भूलने के लिये प्रेरणा करना । भ्रम में के अंतर्गत दूसरी म्हाव्याहृति । म्नुस्मृति के अनुसार यह डालना । (२) विस्मृत करना। बिसारना । दे."भुलाना"। महान्याइति ओंकार की उकार मात्रा के संग यजुर्वेद से भुलसना-क्रि० अ० [हिं० भुसभुला ] पलके में झुलसना । गरम निकाली गई है। राख में झुलसना । उ०—लाल गुलाब अंगारन हूँ पुनि कछु । भुव-संज्ञा पुं० [सं०] अग्नि । आग । न भुरसी । सुकवि नेह की बेल बिरह मर नेकुन झुरसी। *संशा स्त्री० [सं० भू का सप्तम्यंत रूप मुवि वा भूमि ] पृथ्वी । प्यास। उ०—(क) से वृषभ तुग अरु नाग । स्यार दिवस निति भुलाना-क्रि० स० [हिं० भूलना ] (1) भूलने का प्रेरणार्थक रूप। कोले काग । कप भुव वर्षा नहि होई । भये सोच चित भ्रम में डालना। धोखा देना । उ.--बंधु कहत घर बैठे यह नृप जोई। -सूर । (ख) भार उतारन भुव पर गए। आ। अपनी माया माहिं भुलावें। ---रहलू । (२) भूलना। साधु संत को बहु सुख दए। लल्ल। विस्मृत करना । उ०—(क) हसि हमिशेलि टेके कांधा। * संज्ञा स्त्री० [सं० भ्रू] भौंह । भू। उ०—(क) गहन दहन प्र.ति मुहाई है जल बाँधा ।-जायी। (ख) ये हैं निर्दहन रुक नि:संक बैंक भुव ।-तुलसी। (स्व) मुव तेग जिन सुख वे दिये, करति क्यों न हिय होस । ते सय सुनैन के बान लिये मति बेलरि की सँग पासिका है। अबहि मुलाइयतु तमक हगन के दोस।-पभाकर । भुवन-संज्ञा पुं० [सं०] (1) जगत । (२) जल । (३) जन ।

  • कि० अ० (१) भ्रम में पड़ना । उ॰—(क) हाय बीन होग। (१) लोक । पुराणानुपरलोक चौदह है--सात सर्ग

मुनि मिरग भुला। नर मोहहिं सुनि पैग न जाहीं।-- और सास पाताल । भू, सुवा, स्वः, महः, जनः, तपः और जायसी । (ख) पंडित मुहान नगनहि हादजीब लेत सस्प ये सात सर्ग होफ हैं और असल, सुतल, वितल, दिन पूछन काटा-जायदी। (ग) यसुदा भरम भुलानी | गभस्तिमत्, महातल, रसातल और पाताल ये सात पाताल