पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२९२

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भुवनकोश २५८३ भाई हैं। (५) चौदह की संख्या का द्योतक शब्द संकेत । (६) त्रिकालज्ञ हैं और कलियुग में होनेवाली सब बातें देखा सष्टि । भूतात । (७) एक मुनि का नाम । करते हैं। भुवनकोश-संज्ञा पुं० [सं०] (1) भूमंडल । पृथिवा । (२) संज्ञा स्त्री० [सं०] एक असा का नाम जिसका प्रयोग महा- चौदहों भुवन को समष्टि। ब्रह्मांड । उ.- सों दोन भारत के काल में होता था। यह चमड़े का बनाया जाता फोन को भुवनकोत दूसरो न आपनी समुझि सूझि आयो था। इसके बैंच में एक गोट पदवा होता था जिसे चमदे टकटोरि हौं।--तुलना। के कई तरमों में बांधकर दो लं डोरियों में लगा देते भुवनाति-संशा पुं० [सं०] एफ देवता का नाम । महीधर के थं । यह अस्त्र ढोती समेत एक छोर से दूसरे छोर तक तीन अनुपार यह अमि का भाई है। हाथ लंबा होता था। इसके चंदवे में पत्थर भाकर और भुवनपावन-सज्ञा स्त्री० [सं० ] गंगा। दोरियों को दाहने हाथ से घुमाकर लोग शत्र पर फेंकते थे। भुक्नाधीश-संज्ञा पुं० [सं०] एक रुम का नाम । कुछ लोग भ्रमवश इस शब्द से दूक का अर्थ लेते है। भुवनेश-संशा पु० [सं०] (1) शिव की एक मूर्ति का नाम । भुस-संक्षा पु० [सं० बुम ] भूला। उ०-बनजारे के बैल ज्यों (२) ईशर। भरमि फिरेउ चहुँ देस । खाँड लादि मुस खात है बिनु भुवनेशी संज्ञा स्त्री० [सं०] शक्ति की एक मूर्ति का नाम । मत गुरु उपदेप-कवीर । भुवनेश्वर-संज्ञा पुं० [ सं०] (1) एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान का | भुसी*-संज्ञा स्री० [हिं० भूमा ) भूली । उ०-करिस संगति नाम जो उड़ीसा में पुरी के पास है। यहाँ अनेक शिवमंदिर साधु का जो की भुखी जो स्वाय । खर खाँद भोजन मिल हैं जिनमें प्रधान और प्राचीन मंदिर भुवनेश्वर शिव का है। साकट सभा न जाय । कबीर । (२) शिव की वह प्रधान मूर्ति जो भुवनेश्वर में है। भुसंडी-संशा पुं० दे० "भुती"। भुक्नेश्वरी-संज्ञा स्त्री० [सं०] तंत्रानुसार एक देवी का नाम जो भुसंहगा-संक्षा पु० दे० "मुसौरा"। दस महाविद्याओं में एक मानी जाती है। भुसौरा-संज्ञा पुं० [हिं० भूमा+घर ] [ ना. भुसौरी ] वह घर भुवन्यु-संवा पुं० [सं०] (१) सूर्य । (२) अग्नि । (३) चंद्र। जिसमें भूसा रखा जाता हो । भूसा रखने का स्थान । मूंकना-कि० अ० [ अनु० ] (१) भू ५ या भौं भी शम्न करना भुवपति-संज्ञा पुं० [सं०] एक देवता का नाम । महीधर के (कुत्तों का)। इस शब्द का प्रयोग कुत्तों की बोली के लिये __ अनुसार यह अग्नि का भाई है। होता है। (२) व्यर्थ बकना । भुक्पाल *-संज्ञा पुं० दे० "भूपाल"!

  1. ख-संज्ञा स्त्री० दे० "भूख"।

भुवीक-संज्ञा पुं० [सं०] सात लोकों में से दूपरे लोक फा | भूखा-वि० दे० "भूखा"। नाम । पृथ्वी और सूर्य का मध्यवर्ती पोला भाग। अंत- भूचाल-संज्ञा पुं० दे. "भूकंप"। रिक्षलोक। भंजना-क्रि० स० [हिं० भूनना ] (१) फिली वस्तु को आग में भुवा-संशा पुं० [हिं० घूआ ] घूभा । रूई। उ.-रानी आइ धाइ दार.फर या और किसी प्रकार गर्मी पहुँचाकर पकाना । के पासा । सुआ मुवा सेमर की आसा। जायसी। (२) तलना । पकाना । (३) दुःख देना । सताना। भुधार*-संज्ञा पुं० दे० "भुवाल"। उ०-रामलखन सम दैत्य क्रि० स० [सं० भोग ] भोगना। भोग करना । उ०—(क) सहारा । तुम हलधर बलभद्र भुवाल जायसी । राज कि भूजब भरतपुर नृप कि जियहि बिन राम ।- भुवाल-संशा पुं० [सं० भूपाल, प्रा. भुआल ] राज ।उ.--- तुलगी। (ख) की हेसि राजा मूंजाहिराजू । को हेसि हरित (क) कालिंदी के तीर एक मधुपुरी नगर रसाला हो। घोर तिह साजू ।-जायसी। कालनेमि उग्रसेन वंश कुल उपजे कस मुवाला हो।- मँजा-संज्ञा पुं० [हिं० भूनना ] (1) भूना हुआ न । वेना । सूर । (ख) यों दल को बलखते ते जय साह भुभाल। (२) भवनँला । उदर अघासुर के पड़े ज्यों हरि गाय गुवाल।-हिती। मैंडरी-संज्ञा स्त्री० । सं० भू ] वह भूमि जो ज़मीदार नाऊ, बारी, भुधि-संज्ञा स्त्री० [सं० भू का सप्तमी रूप अथवा भूमि ] भूमि ।। . फकीर या किपी संबंधी की माफी के तौर पर देता है। पृथित्री। उ०-एक काल एहि हेतु प्रभु लीन्ह मनुज अव- भुंदिया-संशा पुं० [हिं० अॅडरी=माफी जमीन ] वह व्यक्ति जो तार । सुर रंजन सजन सुखद, हरि भजन भुषि भार । मैंगनी के हल-बैलों से खेती करता हो। तुलसी। मँडोल-संशा पुं० दे. "भूकंप"। भुशंडी-संशा पुं० [सं०] काक भुशुशी। मँभाई-संज्ञा पुं० [सं० भू+माई १] वह मनुष्य जिसे गाँव का विशेष—इनके विषय में यह प्रतिबू है कि ये भामर और स्वामी किसी दूसरे स्थान से बुलाकर अपने यहाँ बसावे सा