पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२९३

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भूरो २५८४ भूखा और उसे निर्वाह के लिये कुछ माफी जर्मन दे। अमेरिका के पूर्वी भाग, एशिया के उत्तरी भाग और अफ्रिका ड्रं.-संज्ञा पुं० [सं० भ्रमर ] भ्रमर । भौरा । (दि.) के बहुत बड़े भाग में बहुत कम भूकंप होता है । स्थल के Jखनाt-f० अ० दे. "भूकना"। अतिरिक्त जल में भी भूकंप होता है जिसका रूप कभी कभी भू-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) पृथ्वी । बहुत भ.पण होता है। दुिओं में से बहती का विश्वास है यौo-भूपति । भूसुर। कि पृथ्व को उठाने वाले दिग्गजों अथवा शेषनाग के सिर (२) स्थान । जगह । जमीन । (३) सीताजी की एक सखी हिलाने से भूकंप होता है। का नाम । (४) सत्ता । (५) प्राक्षिा (६) यज्ञ का अग्नि। क्रि० प्र०-आना-होना । संज्ञा पुं० स्मातल । भूक-संशा मी० दे. "भूग्य" । संम्बी० [सं० 5 ] भौंह । उ०-कीर नापा इंद्र धनु । भूकना-कि० अ० दे० " कना"। भू भंवर मी अलकावली । अधर विद्रुम वज्रकन दाबिम ! भूकस्थि -संज्ञा पुं० [सं० ] एक प्रकार का कैथ। किधी दशनावली।-सूर। भूईदारक-संज्ञा पुं० [सं०] लिरोड़ा। भूआ-संज्ञा पुं० [हिं० घूआ ] रूई के समान हलकी और मुलायम भकश्यप-संज्ञा पु० [सं०] वसुदेव । वस्तु का बहुत छोटा टुकड़ा । जैसे, सेमर का भूभा। भकाफ-संज्ञा पुं० [सं०] (१) एक प्रकार का छोटा कंक या भूकंद-संश. पु०सं०1 जमीकंद। सूरन । ओल।। बात । (२) नीला कबूतर । (३) क्रौंच पक्षा। भूकंप-संज्ञा पुं० { सं० ] पृथ्वी के ऊपरी भाग का सहसा कुछ भूकष्म डी-संज्ञा स्त्री० [सं०] मुई कुम्हड़ा । प्राकृतिक कारणों में हिल उठना । भूचाल । भूडोल। भूकश-संग पुं० [सं०] (1) मेवार । (२) क्ट वृक्ष, जिसकी जलजला । जटाएँ ज़मीन पर लटकी रहती हैं। विशेष-यषि पृथ्वी का ऊपरी भाग बिलकुल ठंडा हो गया । भकेशा-संज्ञा स्त्री० [सं० ] राक्षदी। है, तथापि इके गर्भ में अभी बहुत अधिक आग तथा भूकशी-सा पुं० [सं०] मराज नामक वृक्ष । गरम है। यह आग या गरम. कई रूपों में प्रकट होती है, । भति -सं.1 पुं० [सं०] सूअर । जिनमें से एक रूप ज्वालामुखी पर्वत भी है। जब कुछ । भूख-संशः स्त्री० [सं० बुभुक्षा ) (1) वह शारीरिक वेग जिसमें विशेष कारणों से भूगर्भ क. यह अग्नि विशेष प्रज्वलित - भोजन का इच्छा होती है। खाने की इच्छा । क्षुधा। अथवा शंतल होता है, तव भूगर्भ में अनेक प्रकार के परि __ यौ०-भूब प्यास। वर्तन होते हैं जिनके कारण पृथ्वी का ऊपरी भाग भी हिने मुहा०-भूव मरना-भूख लगने पर अधिक समय तक भोजन या काँपने लगता है। इसको भूकंरकहते हैं । कभी तो इप न मिलने के कारण उसका नष्ट हो जाना । पेट में अन्न न करका मान इतना सूचर होता है कि साधारणत:होगा होने पर भी भोजन की इच्छा न रह जाना। भूख लगना- को बिना यंत्रां की सहायता के उसका ज्ञान भी नहीं होता; भोजन की इच्छा होना । खाने को जी चाहना । भूखों मरना- और कर्म इतना भीषण होता है कि उसके कारण पृथ्व में भूख लगने पर भोजन न मिलने के कारण कष्ट उठाना या मरना । बड़ी बड़ी दरारें पड़ जाती हैं, बड़ा क रते गिर जाता (२) आवश्यकता । ज़रूरत । ( म्यापारी) जैसे,---अब तो हैं और यहाँ तक कि कभ. कभी जल के स्थान में स्थल और र सादे का भूख नहीं है। (३) समाई । गुंगादश । (क.) स्थल के स्थान में जल हो जाता है। कुछ भूकंपों का विस्तार (:) कामना । अभिलाषा। उ.-मुख रूखी बातें कहै तो दम बार मील तक ही होता है और कुछ का सैकहो | जिय में पिय की भूख । केशत्र । हज़ारों मीलों तक । कभी तो एक ही दो केंद्र में दो चार भरण, भरन*-संज्ञा पुं० दे. "भूषण"। हार पृथ्वी हिलने के बाद भूकर रुक जाता है और कभी भूलना-क्रि० स० [सं० भूषण ] भूषित करना। सुसज्जित लगातार मिनटों तक रहता है । कभी कभ तो रह रहकर करना । सजाना । उ०-(क) लाखन की कीस करिवे लगातार सहाहों और महीनों तक पृथ्वी हिलती रहती है। को उदित है भूग्विजे को अंग भूषि भूषन न गनते।- भूक से कभी कभी सैकड़ों हज़ारों मनुष्यों के प्राण तक रघुनाथ । (ख) लै तेहि काल अभूपन अंग में हरा विलास चले जाते हैं, और लाखों करोड़ की संपति का नाश हो के भूषन भूखे । -रघुनाथ। (ग) भूषन भूस्खे जरायन के जाता है। जिन देशों में ज्वालामुखी पर्वत अधिक होते है, पहिरै फरियागि सौरभ मीली गोकुल । उन्हीं में भूकं भी अधिक होते हैं। भूध्य गर, प्रशांत । भूखर-मन्ना खी० [हिं० भूख ] (१) भूम्य । क्षुधा । (२) इच्छा। महासागर के तट, ईस्ट एडज़ रापु में में प्रायः भूकंप हुमा स्पारिश। करते है और उसी अमेरिका के उत्तर-पश्चिमी भाग, दक्षिण | भूखा-वि० पुं० [हिं० भूख+आ (प्र य०)] [स्त्री० भूखी ] (1)