पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२९४

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भूगंधा जिसे भोजन की प्रबल इच्छा हो। जिसे भूख लगी हो।। पहाद आदि कहाँ है । साधारणतः भूगोल से उसके इसी क्षुधित। विभाग का अर्थ लिया जाता है। भूगोल का तीसरा विभाग मुहा०-भूखा रहना-निराहार रहना । भोजन न करना।। राजनीतिक होता है और उसमें इस बात का विवेचन होता भूखे प्यासे--बिना खाए पिए । बिना अन्न जल ग्रहण किए । । है कि राजनीति, शासन, भाषा, जाति और सभ्यता आदि (२) जिसे किसी बात की इच्छा या चाह हो। चाहनेवाला। के विचार से पृथ्वी के कौन कौन विभाग हैं और उन विभागों इच्छुक । जैसे,—हम तो प्रेम के भूखे हैं। उ०-दानि जो का विस्तार और सीमा आदि क्या है ? चारि पदारथ को त्रिपुरारि तिहूँ पुर में सिर टीको । भोरो (३) वह ग्रंथ जिसमें पृथ्वी के ऊपरी स्वरूप और प्राकृतिक भली भले भाय को भूखो भलोई कियो सुमिरे तुलसी को। विभागों आदि का वर्णन होता है। तुलसी । (३) जिसके पास खाने तक को न हो । दरिद्र ।। भूचक्र-संज्ञा पुं० [सं० ] (1) पृथ्वी की परिधि । (२) धिषुवोम्बा। यौ०-भूखा नंगा। (३) अयनवृत्त । (४) क्रांतिवृस । भूगंधा-संशा स्त्री० [सं०] मुरा नासक गंध द्रव्य । भूचर-संक्षा पुं० [सं०] (१) शिव । महादेव । (२) दीमक । भूगर-संज्ञा पुं० [सं०] विष । जरह । (३) वह जो पृथ्वी पर रहता हो। भूमि पर रहनेवाला भूगर्भ-संज्ञा पुं० [सं०] (1) पृथ्वी का भीतरी भाग । (२) प्राणी । () तंत्र के अनुसार एक प्रकार की सिद्धि । कहते विष्णु। हैं कि यह सिन्द्रि, प्राप्त हो जाने पर मनुष्य के लिये न तो भूगर्भगृह-संज्ञा पुं० [सं०] तहखाना । तरधर। कोई स्थान अगम्य रह जाता है, न कोई पदार्थ अप्राप्य रह भूगर्भशास्त्र-संज्ञा पुं० [सं०] वह शास्त्र जिनके द्वारा इस बात | जाता है और न कोई बात अप्रत्यक्ष रह जाती है। का ज्ञान होता है कि पृथ्वी का संघटन किस प्रकार हुआ भूचरी-संज्ञा स्त्री० [सं०] योग शास्त्रानुसार समाधि अंग की है, उसके ऊपरी और भीतरी भाग किन किन तलों के बने । एक मुद्रा जिर.का निवास नाक में है और जिसके द्वारा है, उसका आरंभिक रूप क्या था और उसका वर्तमान प्राण और अपान वायु दोनों एकत्र हो जाती है। उ०-- विकसित रूप किस प्रकार और किन कारणों से हुआ है। दुसरी मुद्रा भृचरी नासा जासु निवास । प्राण अपान जुदी इसमें पृथ्वी की आदिम ॐवस्था से लेकर अब तक का एक जुदी करि दे एक पाय-विश्वास । प्रकार का इतिहास होता है जो कई युगों में विभक्त होता भूचाल-संज्ञ. [सं० भूत-हिं० घाल- ना j भूकंप । भृडोल। है और जिनमें से प्रत्येक युग की कुछ विशेषताओं का भृजंतु-संझा ० [सं० | सीमा । विवेचन होता है। बड़ी बड़ी चट्टानों, पहाड़ों तथा मैदानों भृजयु-सं- Y० म०] (1) गेहूँ। (२) बन जामुन । के भिन्न भिन्न स्तरों की परीक्षा इसके अंतर्गत होती है; भूटान-संका दिश. ] हिमालय का एक प्रदेश जो नेपाल के और इसी परीक्षा के द्वारा यह निश्चित होता है कि कौन पूर्व और आयाम के उत्तर में है। इस देश के निवासी सा स्तर या भूभाग किस युग का बना है। इस शास्त्र में बहुत बलवान् और साहसी होते है और धोड़े बहुत इस बात का भी विवेचन होता है कि पृथ्वी पर जल-वायु प्रसिद्ध है। और वातावरण आदि का क्या प्रभाव पड़ता है। भूटानी-वि० [ हिं, भूटान+ई (प्रत्य०) ] भूटान देश का । भूटान भूगोल-संज्ञा पुं० [सं० । (१) पृथ्वी । (२) बह शास्त्र जिसके संबंधी। द्वारा पृथ्वी के ऊपरी स्वरूप और उसके प्राकृतिक विभाग : संज्ञा पुं० (३) भूटान देश का निवासी । (२) भूटान आदि ( जैसे पहाड, महादेश, देश, नगर, नदी, समुद्र, ! देश का घोड़ा। झील, उमरूमध्य, उपत्यका, अधिस्यका, वन आदि) का सा स्त्री. भटान देश की भाषा । ज्ञान होता है। भूटिया बादाम-सं-पु. [हि. भूटान+10 बादाम ] एक पहादी विशेष-विद्वानों ने भूगोल के तीन मुश्य विभाग किए हैं। वृक्ष जिग्मे कमायी भी कहते हैं। पांच हजार से लेकर दस पहले विभाग में पृथ्वी का सीर जगत् के अन्यान्य ग्रहों हजार फुट तक की ऊँचाई तक पहाड़ों पर यह वृक्ष होता और उपग्रहों आदि से संबंध बतलाया जाता है और उन है। यह मझोले आकार का होता है। इसकी एकही सबके साथ उसके सापेक्षिक संबंध का वर्णन होता है। मजवृत और रंग में गुलाबी होती है, जिससे मेज, कुरसी इस विभाग का बहुत कुछ संबंध गणित ज्योतिष से भी। आदि चीजें बनाई जाती हैं। इस वृक्ष का फल खाया है। दूसरे विभाग में पृथ्वी के भौतिक रूप का वर्णन होता ! जाता है। है और उससे यह जाना जाता है कि नदी, पहाड, देश, ! भू-संज्ञा स्त्री० [ देश० ] (1) एक प्रकार की भूमि जिसमें बालू नगर आदि किसे कहते हैं और अमुक देश, नगर, नदी या । मिला हुआ होता है। बलुई भूमि । (२) कूएँ का सोत । झिर।