पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२९५

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भूडोल २५८६ भूतकृत भूडोल-संशा पुं० [सं० भू+हिं० डालना भूकंप । में अनेक प्रकार की विलक्षण फल्पनाएँ कर लेते हैं और भूण-संज्ञा पुं० [सं० भ्रमण ] (1) जलयात्रा । समुद्री सफर : इनके उपदय आदि से बहुत डरते हैं । अनेक अवसरों पर (२) जल-भ्रमण । जल विहार । (सिं.) इनके उपद्रवों से बचने तथा इन्हें प्रसन्न रखने के लिए भूत-संज्ञा पुं० [सं०1 (१) वे मूल द्रव्य जो सृष्टि के मुख्य उप अनेक प्रकार के उपाय भी किए जाते हैं । साधारणतः यह करण है और जिनकी सहायता से सारी सृष्टि की रचना माना जाता है कि मृत प्राणियों की जिन आरमाओं को हुई है। द्रव्य । महाभूत। मुक्ति नहीं मिलती, वही आत्माएँ चारों ओर घूमा करती विशेष-प्राचीन भारतीयों ने सावयव सृष्टि के पांच मूल भूत है और समय समय पर उपद्रव आदि करके लोगों को कष्ट या महाभृत माने ई जो इस प्रकार है-पृथ्वी, वायु, जल, । पहुँचाती हैं। इनका विचरण-काल रात और निवास स्थान अग्नि और आकाश । पर आधुनिक वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया एकांत या भीपण पन आदि माना जाता है। यह भी कहा है कि वायु और जल मूल भूत या द्रव्य नहीं है, बल्कि कई जाता है कि ये भूत कभी कभी किसी के सिर पर, विशेषतः मुल भूतों या द्रव्यों के संयोग से बने हैं। पाश्चात्य वैशा स्त्रियों के सिर पर, आ चढ़ते हैं और उनसे उपदव तथा निकों ने प्रायः ७५ मूल भूत माने हैं जिनमें से पांच बार, बकवाद कराते हैं। दो तरल तथा शेष ठोय हैं। पर इन सस्त मूल भूतों में क्रि० प्र०—उतरना । —उतारना ।—चढ़ना। झाइना।- भी एक तत्व ऐसा है जो सब में समान रूप में पाया जाता लगना। है, जिससे सिद्ध होता है कि ये मूल भूत भी वास्तव में मुहा०--(किसी बात का ) भूत चहना या सवार होना किसी एक ही भूत के रूपांतर है। अभी कुछ ऐसे भूतों का (किसी बात के लिये ) बहुत अधिक आग्रह या हठ होना । भी पता लगा है जो मूल भृत हो सकते है, पर जिनके विपय । जैसे,तुम्हें तो हर एक बात का इसी तरह भूत चढ़ में अभी तक पूर्ण रूप में कुछ निश्चय नहीं हुआ है। वि० जाता है। भूत चढ़ना या सवार होना बहुत अधिक क्रोध होना । कुपित होना । जैग,-उनसे मत घोलो, इस समय (२) सृष्टि का कोई जड़ वा चेतन, अचर वा चर पदार्थ उन पर भूत चढ़ा है। वा प्राणी। विशेष--इन दोनों मुहावरों में "दना" के स्थान पर "उत- यौ०-भूतदया--जड़ और पतन सबके साथ की जानेवाली दया । रना" होने से अर्थ बिलकुल उलट जाता है। (३) प्राणी व । (१) सत्य । (५) वृत्त । (६) कार्ति मुहा०-भत बनना=(१) नशे में चूर होना । (२) बहुत केय । (७) योगीना (4) वह औपच जिसके सेवन से प्रेतों अधिया क्रोध में होना । (३) किसी काम में तन्मय होगा। और पिशाचों का उपद्रव शांत होता हो। (५) लोध । भृत बनकर लगना-बुरी तरह पीछे लगना । किसी तरह (१०) कृष्ण पक्ष । (११) पुराणानुसार पोरवी के गर्भ से पीछा न छोड़ना=भत को मिठाई या पकवानः (१) वह उत्पन वसुदेव के बारह पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र का नाम । पदार्थ जो भ्रम से दिखाई दे, पर वास्तव मे जिसका अस्तित्व (१२) बीता हुआ समय । गुजश हुआ जमाना । (१३) न हो । ( लोग कहते हैं कि भूत प्रेत आकर मिठाई रख च्याकरण के अनुसार क्रिया के तीन प्रकार के मुण्य कालों जाते हैं, जो देखने में तो मिठाई ही होती है, पर खाने या में से एक । क्रिया का वह रूप जिसमे यह सूचित होता छूने पर मिठाई नहीं रह जाती, राख, मिट्टी, विष्ठा आदि हो हो कि क्रिया का व्यापार समाप्त हो चुका । जैसे, मैं गया जाती है। ) (२) सहज में मिला हुआ धन जो शीघ्र ही नष्ट था। पाना बरसा था। (४) पुराणानुसार एक प्रकार के हो जाय । उ०-भूत की मिठाई जैसी साधु की झुठाई पिशाच या देव जो रुद्र के अनुघर है और जिनका मुँह तैसी स्यार की दिठाई ऐसी क्षीण छहूँ ऋतु है।-केशव । नीचे की ओर लटका हुआ या ऊपर की ओर उठा हुआ वि० (१) गत । बीता हुआ । गुज़रा हुआ । जैसे, भूतपूर्व । माना जाता है। ये बालकों को पीड़ा देनेवाले ग्रह भी कहे भूतकाल । (२) युक्त । मिला हुआ । (३) समान । सघश । जाते हैं। (१५) मृत शरीर । शव । (१६) मृत प्राणी की (४) जो हो एका हो। होरका हुआ। (इन अर्थों में आत्मा। (१७) वे कल्पित आकाएँ जिनके विषय में यह इसका व्यवहार प्रायः यौगिक शब्दों के अंत में होता है।) माना जाता है कि थे ४.नेक प्रकार के उपद्रव करती और । भृतक-संशा पुं० [सं०] पुराणानुसार सुमेरु पर के २१ लोकों में लोगों को बहुत कष्ट पहुँचाती है। प्रेत । जिम । शैतान। से एक लोक। विशेष-भूतों और प्रेतों आदि कर कल्पना किसी न किसी : भूतकला-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की शक्ति जो पंचभूतों रूप में प्राय: सभी जातियों और देशों में पाई जाती है। को उत्पन्न करनेवाली मानी जाती है। साधारणत: लोग इनके रूपों और व्यापारी आदि के संबंध | भतक्रत-संश पुं० [सं०111) देवता । (२) विष्णु ।