पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२९६

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भूतकेतु २५८७ भूतांकुश भूतकेतु-संशा पुं० [सं० ] पुराणानुसार दक्ष सावर्णि के एक पुत्र ! (२) वरक में एक प्रकार का रस जो हरताल और गंधक का नाम । आदि से घनाया जाता है । इसके सेवन से ज्वर, दाह, भृतकेश-संघा पुं० [सं०] (1) सफेद सूब । (२) इंद्रावाहणी। बाल-प्रकोर और कुष्ट आदि का दूर होना माना जाता है। (३) सफेद तुलसी । (४) जटामासी । भूतमात्रा-सा मी० [सं० पाँचों तन्मात्राएँ । वि० दे० भूतहाना-संभा पुं० [ हि. भूत+फा० खाना-घर ] बहुत मैला "तन्मात्र"। कुचैला या अंधेरा घर। भूतयश-संशा पुं० [सं०] गृहस्थ के लिये कर्त्तव्य पंचयज्ञ में से भूतगंधा-संशा स्त्री० [सं०] मुर नामक गंध द्रव्य । एक यज्ञ | भूतबलि। बलिवश्व । भूतन-संज्ञा पुं० [सं०] (1) ऊँट । (२) लहसुन । (३) भोर- भूतगज-संशा पुं० [सं०] शिव । पन का पेड़। भूतल-संगापुं० [सं०] (1) पृथ्वी का ऊपरी तल । धरातल । वि. भूतों का नाश करनेवाला। (२) संसार । दुनिया। जगत् । (३) पाताल । भूतनी-संज्ञा स्त्री० [सं०] तुलसी । भूतलिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] अपवर्ग। भूतचतुर्दशी-संज्ञा स्त्री० [सं०] कात्तिक कृष्ण चतुर्दशी । नरक : भूतवास-संशा पुं० [सं०] (1) महादेव । (२) विष्णु। चौदन । ( इस दिन यम की पूजा और तर्पण होता है।) 'भूतवाहन-मंना पुं० [सं०] महादेव । भूतचारी-संशा पुं० [सं० भूतचारिन् ] महादेव । भूतविक्रिया- संना स्त्री. मं. J अपस्मार रोग। भृतजटा-संज्ञा स्त्री० [सं०] उटामासी। भृतविद्या-संज्ञा स्त्री० [सं०] आयुर्वेद का वह विभाग जिसमें भूततृण-संज्ञा पुं० [ मं० ] (1) एक प्रकार का विष । (२) एक ' देवता, असुर, गंधर्व, यक्ष, पिशाच, नाग, प्रह, उपग्रह प्रकार का गंधद्रव्य । आदि के प्रभाव से उत्पन्न होनेवाले मानसिक रोगों का भूतत्व-संज्ञा पुं० [सं०] (1) भूत होने का भाव । (२) भूत . निदान और उपाय होता है। यह उपाय बहुधा ग्रह-शांति, का धर्म। पूजा, जप, होम दान, रत्न पहनने और औषध आदि के भूतत्व विद्या-संशा स्त्री० दे० "भूगर्भशास्त्र"। सेवन के रूप में होता है। भूतद्रावी-संज्ञा पुं० [सं० भूतद्रविन् ] लाल कनेर । भूतविनायक-संज्ञा पुं० [सं०] शिव । भूतधात्री-संज्ञा स्त्री० [सं०] पृथ्वी। · भूतवृक्ष-संजा पुं० [सं०] श्योनाक । भूतधाम-संशा पुं० [सं० भूतधामन् ] पुराणानुसार इंद्र के एक पुत्र भूतवेशी-सं-1 श्री. [सं०] निर्गुदी। का नाम । भूतशुद्धि-संा पी. [सं०] तांत्रिकों के अनुसार शरीर की वह भूतनाथ-संज्ञा पुं० [सं० ] शिव । शुद्धि, जो पूजन आदि मे पहले की जाती है और जिसे बिना भूतनायिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] दुर्गा। किए पूजा का अधिकार नहीं होता । भिन्न भिन्न तंत्रों में भृतनाशन-संज्ञा पुं० [सं०] (9) रुद्राक्ष । (२) सरसों । (३) इस शुद्धि के भिन्न भिन्न विधान दिए गए हैं। इसमें कई भिलावाँ। प्रकार के जप और अंगन्यास आदि करने पड़ते हैं। भूतपक्ष-संशा पुं० [सं०] मास का कृष्ण पक्ष । अँधेरा पक्ष । भूतसंचार-संज्ञा पुं० [सं० ] भूतोन्माद नामक रोग। भूतपति-संज्ञा पुं० [ सं० ] (1) महादेव । (२) काली सुलसी। ! भूतसंताप-संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार एक दानव का नाम । भूतपत्री-संशा स्त्री० [सं० ] तुल.सी। भूतसंप्लव-संज्ञा पुं० [सं० | प्रलय । भूतपाल-संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु। भूतसिद्ध-संशा पुं० [सं०] तांत्रिकों के अनुसार यह जिसने भूस- भूतपुष्प-मंज्ञा पुं० [सं० ] श्योनाक वृक्ष । प्रेत आदि को सिद्ध और वश में कर लिया हो। भूतपूर्णिमा-संशा स्त्री० [सं०] आश्विन कीपूर्णिमा। शरद-पूर्णिमा। ' भूतसूक्ष्म-संज्ञा पुं० दे० "त-मात्र"। भूतपूर्व-वि० [सं०] वर्तमान से पहले का । इससे पहले का। भूतहंत्री-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) नीली दुब। (२) बाँझ ककोड़ी। __ जैसे,—भूतपूर्व मंत्री, भूतपूर्व संपादक। भूतहन्-संज्ञा पुं० [सं०] भोजपत्र का वृक्ष । भूतभर्ता-संशा पुं० [सं० भूतभर्तृ ] शिव । भूतहर-संशा पुं० [सं० ] गुग्गुल । भूतभव्य-संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु। भूतहारी-संज्ञा पुं० [सं० भूतहारिन् ] (6) देवदार। (२) लाल कनेर । भूतभावन-संज्ञा पुं० [सं०] (१) महादेव । शंकर । (२) विष्णु। भूतहास-संशा पुं० [सं०] एक प्रकार का सक्षिपात जिसमें दियाँ भूतभाषा-संज्ञा स्त्री० [सं०] पैशाची भाषा वि.दे."वैशाची"। अपना काम नहीं करती, रोगी व्यर्थ बहुत बकता है, उसे भूतभृत-संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु। बहुत हँसी आती है। भूतभैरव-संज्ञा पुं० [सं०] (1) भैरव की एक मूर्ति का नाम । 'भूतांकुश-संशा पुं० [सं० ] (1) कश्यप ऋषि । (२) गावजुबान ।