पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२९७

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भूतांकुश रस २५८८ भूतांकुश रस-संज्ञा पुं० [सं० वैद्यक में एक प्रकार का रस भूतियुवक-संज्ञा पुं० [सं०] (1) पुराणानुसार कूर्मचक्र के एक जिसमें पारा, लोहा, ताँबा, मोती, हरताल, गंधक, मैनसिल, देश का नाम । (२) इस देश का निवासी। रसांजन आदि पदार्थ पढ़ते हैं। इससे भूतोन्माद आदि अनेक भूतिलय-संशा पुं० [सं०] महाभारत के अनुसार एक तीर्थ का नाम । रोग दूर होते हैं। भूतिवाहन-संशा पु०सं०] शिव । भूतांतक-संशा एं० सं०] (१) यम । (२) रुद्र । भूती-सं:11 [हिं० भृत+ई (प्रत्य॰) भूतपूजक ।। भूना-संज्ञा स्त्री० [सं०] कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि । भृतीफ-सा पं० [सं० ] (1) चिरायता । (२) अन्वायन । (३) भूताक्ष-संज्ञा पुं० [सं० | सूर्य। भूतृण । (४) कपूर । भूतात्मा-संज्ञा पुं० [सं० भूतात्म• ] (१) शरीर (२) परमेश्वर। भृतीबानी-संज्ञा स्त्री० [सं० विभूति ] भग । राख । (डि.) (३) शिव । (४) वितु। (५) जीवात्मा। (६) युद्ध । भूतृण-सशा गुं० [सं०] रूखा घाम जिसका तेल बनता है। भूताधिपति- Y०म० | शिव । वैद्यक में इस कटु और तिक्त तथा विष-दोषनाशक माना है। भूतापि-संवा पुं० [सं०] (1) परमेश्वर । (२) मान्य के अनुसार पा०रोहिप । भृति । कुटुंबक । मालानृण । छन । अहि- अहंकार तत्व जिसम्म पंचभूतों की उत्पति होती है। छनक । सुगंध । अतिगंध । बधिर । करंदुक । भूतायन-संज्ञा पुं० [सं०] नारायण । परमेश्वर । भूतेश-मंशा पुं० [सं०] (1) परमेश्वर । (२) शिव । (३) कार्तिकेय। भूतारि-संका ५० [सं०] हींग। भृतेश्वर-संज्ञा पुं० सं०] (१) महादेव । (२) एक तीर्थ का नाम । भूतावास-संवा पु. ( स० ) (1) संसार । दुनिया । (२) शरीर। भूतेष्टा-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी। (२) देह । (३) यहेहे का वृक्ष । (४) विर। आश्विन कृष्ण चतुर्दशी। भूताविष्ट-वि० [सं०] (1) जिन भत या पिशाच लगा हो। भूतोन्माद-संक्षा पुं० [सं०] वैधक के अनुगार वह उन्माद रोग (२) जो भता आदि के प्रभाव से रोगी हुआ हो। जो भूतों या पिशाचों के आक्रमण के कारण हो। भूति-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) वैभव । धनसंपत्ति । राज्यश्री। भृत्तम-संभा० [सं० ] सोना। उ.-धरमनीति उपदेशिय ताही। कीरति भूति सुगति भूदार-संशा | सं०] सूअर । प्रिय जाही। तुलसी । (२) भस्म । राख । उ०-भव भूदारक-संI j० [सं०] शूर । वीर । अंग भति मम्मान की सुमिरत सोहावनि पावनी-तुलसी। भूदेव, भूदेवता-संशा पुं० [सं०] ब्राह्मण । (३) उत्पत्ति । (2) वृद्धि । अधिकता। (५) अणिमा आदि भूधन-संज्ञा पुं० [सं०] राजा। आठ प्रकार की सिद्धियाँ । (६) हार्यों का मम्नक रँग कर भूधर-संज्ञा पुं० [सं०] (१) पहाद । (२) शेषनाग। (३) विष्णु । उपका श्रृंगार करना । (७) पुराणानुसार एक प्रकार के (४) राजा । (५) बाराह अवतार । (६) वैद्यक के अनुसार पितृ । (८) लक्ष्मी । (५) वृद्धि नाम की ओषधि । (१०) एक प्रकार का यंत्र जिसमें किसी पात्र में पारा स्वकर, भूतृण । (11) पत्ता । (१२) पकाया हुआ मांस । (१३) मिट्टी में उप पात्र का मुंह बंद करके उसे आग में पकाते हैं। विष्णु।(१४) रूसा घास। भूधरेश्वर-संज्ञा पुं० [सं० ] पर्वतों का राजा, हिमालय । भतिक-संज्ञा पुं० [सं०] (१) कटहल । (२) अजवायन । भूधात्री-संज्ञा स्त्री० [सं०] भुई आँवला । (३) चंदन । (४) भूनिंब । चिरायता। (५) रूसा भूभ्र-संक्षा पु० [सं०] पर्वत । पहाड़। घास। भून *-संज्ञा पुं० [सं० प्रण] गर्भ का बच्चा । भूतिकाम-संज्ञा पु० [सं०] (1) राजा का मंत्री। (२) बृहस्पति । भूनना-कि० स० [सं० भजन ] (1) अग्नि में डालकर पकाना । वि० जिम्मे ऐश्वर्य की कामना हो। विभति की अभिलाषा आग पर रखकर पकाना। जैसे, पापड़ भूनना । (२) रखनेवाला। गरम बाल में डालकर पकाना। जैपे, चना भूनना । भूतिकृत्-संज्ञा पुं० [सं०] शिव । (३) गरम घी या तेल आदि में डालकर कुछ देर तक भूतितीर्था-संवा म्बी० [सं०] कार्तिकेय की एक मातृका का नाम । चलाना जिससे उसमें सोंधापन आ जाय । तलना। भूतिद-संशा पुं० [सं०] शिव । संयोगक्रि०-डालना ।—देना । भूतिदा-संशा स्त्री० [सं०] गंगा। (४) बहुत अधिक कष्ट देना । तकलीफ़ पहुँचाना। भूतिनि-सज्ञा स्त्री० दे० "भतिनी"। भूनिव-संज्ञा पुं० [सं०] चिरायता। भूतिनिधान-संज्ञा पुं० [सं०] धनिष्ठा नक्षत्र । भूनीप-संज्ञा पुं० [सं०] भूमिकदेव । भूतिनी-संज्ञा स्त्री० [हिं० भूत ] (1) भूत योनि में प्राप्त स्त्री। | भूनेता-संज्ञा पुं० [सं० भूनेतृ ] राजा। भत की स्त्री। (२) शाकिनी, राकिनी इत्यादि। ! भूप-संज्ञा पुं० [सं०] राजा ।