पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२९९

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भूमिज २५९० भूरजपत्र भूमिज-संशा पु० [सं०] (1) सोना । (२) मंगल ग्रह । (३) | भूमिस्पर्श-संज्ञा पुं० सं०] उपासना के लिये प्रौद्धों का एक भूमिकांब । (४) मीमा । (५) नरकासुर का एक नाम । आसन । वघ्नासन । वि. भूमि म उत्रन । जो जमीन से पैदा हुआ हो। भूमिहार--संथा पुं० [सं०] एक जाति जो प्रायः बिहार में और भूमिजा-संशा स्त्री० [सं० JM.ताजी। कहीं कहीं संयुक्त प्रांत में भी पाई जाती है। भूमिजात-संक्षा पुं० [सं० ] वृक्ष । पेड़। विशेष-इस जाति के लोग अपने आपको ब्राह्मणों के अंतर्गत वि० भूमि से उखन्न । जो जमीन से पैदा हुआ हो। पतलाते हैं और प्रायः अपने आपको "बामन" कहते हैं। भूमिजीवी-संशा पु० | सं० भूमिजापिन् ] (१) वह जो भूमि जोत इस जाति की उत्पत्ति के संबंध में अनेक प्रकार की बातें बोकर अपना निर्वाह करता हो। कृषक। खेतिहर । सुनने में आती हैं। कुछ लोग कहते हैं कि जब परशुराम (२) वैश्य । ने पृथ्वी को क्षत्रियों से रहित कर दिया था, तब जिन भूमिच-संज्ञा पुं० [सं०] भूमि का भाव या धर्म । बाह्मणों को उन्होंने राज्य का भार सौंपा था, उन्हीं के चंश- भूमिदंड-संवा पुं० [सं० भूमि-दंड ] माधारण दंड या दंड नाम धर ये भमिहार या बाभन है। कुछ लोगों का कहना है कि का कसरत जो दोनों हाथ जमीन पर टेककर और बार बार मगध के राजा जरासंध ने अपने यज्ञ में एक लाख ब्राह्मण उन्हीं हाथों के बल झुक और उठकर की जाती है। वि. बुलाए थे। पर जब इतनी संख्या में ब्राह्मण न मिले, तब उनके एक मंत्री ने छोटी जाति के बहुत से लोगों को यशो- भूमिदंडा-संज्ञा स्त्री० [सं०] चमेली। पात पहनाकर ला खड़ा किया था; और उन्हीं की संतान भूमिदेव-संक्षा पु० [सं० } (१) प्राह्मण । (२) राजा । ये लोग है । जो हो पर इसमें संदेह नहीं कि इस जाति भूमिधर-संशा पु. [ सं०] (1) पर्वत । (२) शेषनाग । में गाह्मणों के यजन, याजन आदि कम्मों का नितांत अभाव भूमिपति-संक्षा पु० [सं०] राजा । देखने में आता है और प्राय: क्षत्रियों की अनेक बातें इनमें भूमिपाल-सी पु० [सं०] राजा । पाई जाती है। ये लोग दान नहीं लेते और प्रायः ग्रेसी भूमिपिशाच-संशा पुं० [सं०] ताड़ का पेड़। बारी या नौकरी करके अपना निर्वाह करते है। भूमिपुत्र-संशा पुं० [सं०] (१) मंगल ग्रह । (२) नरकासुर का भूमींद्र-संशा पुं० [सं० ] राजा । एक नाम । (३) श्योनाक वृक्ष । भूमीरुह-संज्ञा पुं० सं० ] वृक्ष । पेड़ । भूमिपुत्री-संशा स्त्री० [सं०] सीता । भूम्याफली-संज्ञा स्त्री० [सं०] अपराजिता लता । भूमिया-संशा पु० [सं० भूमि+इया (प्रत्य॰)] (१) भूमि का अधि- भूम्यामलकी-संज्ञा स्त्री० [सं०] भुई आँवला । कारी। भूमि का असल मालिक । (२) ज़िमींदार । (३) प्राम- भूम्यालीक-संज्ञा पुं० [सं०] धरती संबंधी मिध्या भाषण । देवता । (४) किसी देश के प्राचीन और मुख्य निघासी। किसी की ज़मीन को अपना बताना । (जैन) भृमिलना-संज्ञा स्त्री० [सं० ] सफ़ेद फूल की अपराजिता । भूय-अन्य० [सं० भूयस् ] (१) पुनः । फिर । (२) बहुत । भूमिलता-संज्ञा स्त्री० [सं०] शंखपुष्पी । ___ अधिक । (हिं.) भूमिलवण-संशा पुं० [सं० ] शोरा । भूयण-संशा स्त्री० [ स. भू] पृथ्वी। (..) भूमिलेप-संज्ञा पुं० [सं०] गोवर । भूयक्ता-सं.।। स्त्री० [ नं०] भूमिखजुरी । भुईखजूर । भूमिवर्द्धन-संशा पुं० [सं० | मृत शरीर । शव । लाश । भूर-वि० [सं० भूरि ] बहुत । अधिक। भूमिवल्ली-संवा स्त्री० [सं० ] भुई आँवला । संज्ञा पुं० [हिं० भुरभुरा ] बालू । उ०---भूरहु भरि नदीनि भूमिसंभचा-संज्ञा स्त्री० [सं० ] सीता । के पूरनि नावनि में बहुतै बनि वैसे। केशव । भूमिसव-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का वात्य स्तोम या यश। संज्ञा स्त्री० [ देश. ] गाय की एक जाति । भूमिसुत-संज्ञा पुं० [सं०] (1) मंगल ग्रह । (२) नरकासुर का । भूरज-संश पुं० [सं० भूर्ज ] भोजपत्र का पेन । उ.--भरज तरु एक नाम । (२) वृक्ष । पेड़ । (४) केवाच । काँच । सम संत कृपाला । पर हित नित सह विपति विसाला- भूमिसुधा-संज्ञा स्त्री० [सं०] जानकीजी। तुलसी। भूमिसुर-संज्ञा पुं० [सं०] साक्षण। मंशा पुं० [सं० भू+रज ] पृथ्वी की धूलि । गर्द। मिट्टी। भूमिसेन-संज्ञा पुं० [सं.] पुराणानुसार दसधै मनुके एक पुत्र उ.-भूरज तो जाके सोधि पर बहुतेरे हमें देखि द्वार कानाम। भूरज से नित्त चित चाह है। भूमिस्तोम-संज्ञा पुं० [सं०] एक दिन में संपन्न होनेवाला एक भूरजपत्र-संज्ञा पुं० [सं० भूर्जपत्र ] भोजपत्र । उ.--ललित लता प्रकार का यश। दल भरजपना विविध बिछाइस बटसह छना।पनाकर । i