पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३०

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फुहारा २३२३ क्रि० प्र०—पड़ना। विशेष-जिस पर वायु छोड़ी जाती है वह इस क्रिया का फुहारा-संज्ञा पुं० [हिं० फुहार ] (1) जल का महीन छींटा। कर्म होता है, जैसे,-गर्द फूंक दो उड़ जाय । (२) जल की वह टोटी जिसमें से दबाव के कारण जल की संयो० क्रि०-देना। महीन धार या छीटे वेग से ऊपर की ओर उठकर गिरा। मुहा०-फूंक फूंक कर पैर रखना या चलना=(१) बचा बचा करते हैं। जल के छींटे देनेवाला यंत्र । जलयंत्र । उ.--- कर चलना । पैर रखने के पहले जगह को फूंक लेना जिसमें फहरै फुहारे, नीर नहरें नदी सी बहै, छहर छबीली छम्म चींटी आदि जीव हट जायें, पैर के नीचे दब कर न मरने पाएँ। छीटिन की छोटी है। पाकर। (२) बहुत बनाकर कोई काम करना । बहुत सावधानी से कोई ही-संज्ञा स्त्री० [हिं० फुहार ] (१) पानी का महीन छींटा।। काम करना । कोई बात पूँकना-कान में धीरे से कोई बात सूक्ष्म जलकण । (२) महीन महीन बूंदों की झड़ी । कहना । बहकाना । कान भरना । झीसी। उ०--(क) सुर बरसत सुमन सुदेस मानो मेघ (२) मंत्र आदि पढ़कर किसी पर फूंक मारना । फुही । मुखमंडित रोरी रंग सेंदुर मांग छही।-सूर। . यौ०-झाड़ना फूंकना। (ख) फूलि भरे अंग पूरे पराग, परै रसरूप की चारु । (३) शंख, बाँसुरी आदि मुँह से बजाए जानेवाले बाजों फुही सी। को फूंक कर बजाना । जैसे, शंख फूंकना। (४) मुँह फॅक-संज्ञा स्त्री० [ अनु० फू फू] (1) मुँह को बटोर कर बंग के : की हवा छोड दहकाना । फूंककर प्रज्वलित करना । जैसे, साथ छोड़ी हुई हवा । वह हवा जो ओठों को चारों ओर : आग फूंकना । (५) जलाना । भस्म करना । उ०—(क) से दबा कर झोंक से निकाली जाय । जैसे,-वह इतना या पयाल को फूकिए तनियक लाई आग। लहना पाया दुबला-पतला है कि फूंक से उड़ सकता है। हूँढता धन्य हमारा माग !-कबीर । (ख) ताको जननी मुहा०-फूंक मारना-ज़ोर से मुंह की हवा छोरना । जैसे, आग | की गति दीनी परम कृपाल गोपाल । दीन्हों कि काठ दहकाने या दिया बुझाने के लिए। तन वाको मिलि के सकल गुवाल ।-सूर।। (२) साँस । मुँह की हवा। उ०-कुँवर और उमराव संयो० क्रि०---डालना ।—देना । बने विगरे कछु नाहीं। फूंक माहि वे बनत फूंक ही सों' (६) धातुओं को रसायन की रीति से जड़ी बूटियों की मिटि जाही!-श्रीधर । सहायता से भस्म करना । जैसे, सोना फेंकना, पारा मुहा०-फूंक निकल जाना दम निकल जाना । प्राण निकल फूंकना । (७) नष्ट करना । बरबाद करना । व्यर्थ व्यय कर जाना। देना । फजूल खर्च कर देना । उड़ाना । जैसे, धन फूंकना, (३) मंत्र पढ़कर मुँह से छोड़ी हुई वायु जो उस मनुष्य रुपये पैसे फूंकना। की ओर छोड़ी जाती है जिस पर मंत्र का प्रभाव डालना संयोक्रि०-ढालना ।—देना। होता है । उ०--परम परब पाय, न्हाय जमुना के नीर पूरि यौ०-फूंकना तापना व्यर्थ खर्च कर दना । उड़ाना । के पराग अंगराग के अगर ते । द्विजदेव की सौं द्विजराज (८) जलाना । सताना। दुख देना । (९) चारों ओर फैला अंजली के काज जौ लौं चहै पानिप उठाए कंज करते। तो देना । प्रकाशित कर देना । जैसे, खबर फैंक देना । सौं वन जाय मनमोहन मिलापी कहूँ, फूंक सी चलाई का-संज्ञा पुं० [हिं० फूंक ] (1) भाथी वा नली से आग पर पूँकि बाँसुरी अधर ते । स्वासा काही नासा से, वासा फूंक मारना । फूंक मारने की क्रिया । (२) बाँस की नली ते भुजाएँ काढ़ी अजसी न अंजली ते, आखरौ न गर ! में जलन पैदा करनेवाली ओषधियाँ भरकर और उन्हें स्तन ते।-द्विजदेव। में लगाकर फूंकना जिससे गायें स्तन में दूध चुरा न यौ०-झाब फूंक=मंत्र तंत्र का उपचार । सके और उनका सारा वृध बाहर निकल आए। क्रि० प्र०-घलाना ।-मारना । क्रि०प्र०-देना।-मारना। कना-क्रि० स० [हिं० पूँक ] (1) मुँह को बटोर कर वेग के (३) बाँस आदि की नली जिससे फूंका मारा जाता है। साथ हवा छोपना । ओठों को चारों ओर से दबाकर (४) फोड़ा । फफोला । झोंक से हवा निकालना । जैसे,—(क) यह बाजा फूंकने । फूंद-संज्ञा स्त्री० [हिं० फूल+फंद ] फूंदना । फुलरा। सब्बा। से बजता है । (ख) फूंक दो तो कोयला दहक जाय। उ.-ऑगी कसै, उकसै कुच ऊँचे हैंसे हुलसै फुपुदीन (ग) उसे फूंक दो तो उड़ जाय । उ०—पुनि पुनि की दें।-देव। मोहिं दिखाइ कुठारू । चहत उहावन कि पहारू।- दा -संशा पुं० (१) दे. "फुदना"। उ०—(क) रसजटित तुलसी। गजरा बाजवंद शोभा भुजन अपार । पूँदा सुभग फूल