पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३०१

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भूलता २५९२ भूसुत भलता-संशा स्त्री० [सं०] फेंचुआ नाम का कीड़ा। का मांस गुरु, उष्ण, मधुर, स्निग्ध, वायुनाशक और शुक्र- भलक -संज्ञा पुं० [हिं० भूल+क (प्रत्य॰)] भूल करनेवाला । वर्धक माना जाता है। जिसस भूल होती हो। भूशय्या-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) शयन करने की भूमि । (२) भलना-क्रि० म० सं० विहल ? ] (1) विम्मरण करना । याद न ! भूमि पर सोना । रखना । ध्यान न रखना । जैसे,—(क) आर तो बहुत सी | भूशर्करा-संशा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का कंद। बातें यों ही भूल जाते है । (ख) कल रात को लौटते समय भूशायी-वि० [सं० भूशायिन् ] (1) पृथ्वी पर सोनेवाला । (२) मैं रास्ता भूल गया था । (२) गलती करना । (३) खो पृथ्वी पर गिरा हुआ। (३) मृतक । मरा हुआ। देना । गुम कर देना। भूषण-संज्ञा पुं० [सं०] (1) अलंकार । गहना । जेवर। (२) वह कि० अ० (1) विस्मृत होना । याद न रहना । जैसे,- जिससे किसी चीज़ की शोभा बढ़ती हो । जैसे,-आर अब वह बात भूल गई। (२) चूकना । गलती होना । (३) अपने कुल के भूषण है। (३) विष्णु। धोखे में आना । जैसे,—आप उनकी बातों में मत भूलिए। भूषणता-संशा स्त्री० [सं० ] भूषण का भाव या धर्मा। (४) अनुरक्त होना । आत्यक्त होना । लुभाना । (५) घमंड भूषन*-संशा पुं० दे० "भूषण"। में होना । इतराना । जैसे,-आप १००) की नौकरी पर ही , भूषना-क्रि० स० [सं० भूषण ] भूषित करना। अलंकृत करना। भूले हुए है। (६) गुम होना । खो जाना । उ०-जैसे | सजाना। उ०-अरुण पराग जलज भरि नीके । शशि चाँद गोहन सब तारा । पन्यो भुलाप देखि उँजियारा। ___ भूपत अहिलोम अमी के।-तुलसी। जायसी। भूषा-संज्ञा पुं० [सं० भूषण ] (1) गहना। जेवर । (२) अलंकृत वि० जिसे स्मरण न रहता हो । भूलनेवाला । जैसे,—भूलना करने की क्रिया । सजाने की क्रिया । स्वभाव । भलना आदमी। यौ०-वेष-भूषा। भलभलयाँ-स. स्त्री० [हिं० भूल+भुलाना+पया (प्रत्य॰)] (1) भूपित-वि० [सं०] (1) गहना पहने हुआ। अलंकृत । (२) वह धुमावदार और चक्कर में डालनेवाली इमारत जिसमें सजाया हुआ । संवारा हुआ। जित । उ-राम भक्ति एक ही तरह के बहुत से रास्ते और बहुत श्वे दरवाज़े आदि भूपित जिय जानी। सुनिहिं सुजन सराहि सुबानी। होते हैं और जिपमें जाकर आदमी इस प्रकार भूल जाता --सुलसी। है कि फिर बाहर नहीं निकल सकता । (२) चकावू । (३) भूप्य-वि० [सं० ] भूपित करने के योग्य । अलंकार पहनाने या बहुत घुमाव-फिराव की बात या घटना । बहुत चकरदार सजाने के योग्य । और पेचीली बात। भूसंस्कार-संक्षा पुं० [सं० ] यज्ञ करने से पहले भूमि को परिष्कृत भलोक-संा पुं० [सं० ] मर्त्यलोक । भूतल ।संसार । जगत् । ! करने, नापने, रेग्याएँ खींचने आदि की क्रियाएँ । भूमि का भलोटन-वि० [हि. भ+लोटना ] पृथ्वी पर लोटने वाला। वह संस्कार जो यज्ञ मे पहले किया जाता है। भवल्लभ-संज्ञा पु० [सं० ! राजा। भूसा-संज्ञा पुं० दे. "भूमा"। भवा-संज्ञा पुं० [हिं० धूआ ] (1) रूई । उ०—सेंबर सेव न रेत भूसठा-संज्ञा पुं० [ देश० ] कुत्ता । श्वान । कर सूत्रा। पुनि पछतास अंत हो भूवा ।-जायसी। भसन*-संशा पुं० दे० "भूषण"। वि. रुई के समान उजला । सफ़ेद । उ०-भंवर गये संज्ञा पुं० [हिं० भूकना ] कुत्तों का शब्द करना। मूंकना। केशहिदै भूवा । जोबन गयो जीत लै जूवा । —जायसी । भूसना -क्रि० अ० [हिं० अकना ] कुत्तों का बोलना । भूकना । संज्ञा स्त्री. दे. "आ" 30-अंगद यहनि लागै वाकी भूसा-संज्ञा पुं० [सं० तुप ] (१) गेहूँ, जौ आदि की बालों का भूवा पागै तासों देवो विष मारो फेरि तुही पग छिये हैं। महीन और टुकड़े टुकड़े किया हुआ छिलका जो पशुओं और --प्रिया। विशेषतः गौओं, भैंसों को खिलाया जाता है। भुस । भूसी। भवायु-संज्ञा पुं० [सं०] पृथ्वी पर की हवा । वायु । पवन । भूसी-संज्ञा स्त्री० [हिं० भूसा ] (१) भला । (२) किसी प्रकार के भवारि-संज्ञा पुं० [हिं०] वह स्थान जहाँ हाथी पकड़ कर रखे अन्न या दाने के ऊपर का छिरका जैसे, कैंगनी की भूसी। या बाँधे जाते है। भूसीकर-संज्ञा पुं० [हिं० भूसी+कर ? ] एक प्रकार का धान जो भविद्या-संज्ञा स्त्री० दे० "भूगर्भशास्त्र"। अगहन के महीने में तैयार होता है और जिसका चाचल भशक-संशा पुं० [सं०] राजा । सालों रह सकता है। भशय-संज्ञा पुं० [सं०] (१) विष्णु । (२) नेवला, गोध आदि भूसत-संज्ञा पुं० [सं०] (1) वृक्ष । पेड़। पौधा । (२) मंगल बिल में रहनेवाले जानवर । वैधक में इस वर्ग के जंतुओं प्रह। (३) नरकासुर