पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३०६

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भसासुर २५९७ भैरवी भैंसासुर-संज्ञा पुं० दे० "महिषासुर"। भैरव-वि० [सं०] (1) जो देखने में भयंकर हो। भीषण । भैसौरी-संशा स्त्री० [हिं० भैंसा+औरी (प्रत्य॰)] भैंस का धमदा। : भयानक । (२) जिसका शब्द बहुत भीषण हो। भैर-संज्ञा पुं० दे० "भय"। संज्ञा पुं० [सं०] (1) शंकर । महादेव । (२) शिव के एक भैक्ष-संज्ञा पुं॰ [सं०] (1) भिक्षा माँगने की क्रिया । (२) भिक्षा प्रकार के गण जो उन्हीं के अवतार माने जाते हैं। मांगने का भाव । (३) वह जो कुछ भिक्षा में मिले। भीख।। विशेष--पुराणानुसार जिस समय अंधक राक्षस के साथ शिव भैक्षवर्या, भैक्षवत्ति-संज्ञा स्त्री० [सं०] भिक्षा मांगने की क्रिया। का युद्ध हुआ था, उस समय अंधक की गदा मे शिव का भैक्षाकुल-संज्ञा पुं॰ [सं० ] वह स्थान जहाँ से बहुत से लोगों : सिर चार टुकड़े हो गया था और उसमें से लहू की धारा को भिक्षा मिलती हो। बहने लगी थी। उसो धारा से पाँच भैरवों को उत्पत्ति हुई भक्ष्य-संज्ञा पुं० [सं०] भिक्षा। भीख । थी। तांत्रिकों के अनुसार, और कुछ पुराणों के अनुसार भी, भैचक, भैचक्क* -वि० [हिं० भय+चकचकित ] चकपकाया भैरयों की संख्या साधारणत: आठ मानी जाती है जिनके हुआ। घबराया हुआ। चकित । विस्मित । नामों के संबंध में कुछ मतभेद है। कुछ के मत से महा- क्रि०प्र०—करना ।-रहना।-होना । भैरव, संहार भैरव, असितांग भैरव, रुरु भैरव, काल भैरव, भैजन*-वि० [हिं० भै-भय+जनक ] भय उत्पन्न करनेवाला ।। कोध भैरव, ताम्रचूर और चंद्रचूद तथा कुछ के मत से भयप्रद । उ०-धुनि शत्रु भैजनी करत पाय पैजनी है असितांग, रुरु, चंद, क्रोध, उन्मत्त, कपाल, भीषण और बैजनी लगाम बनी चरम मृदुल की । पाँति सिंधु मुलकी संहार थे आठ भैरव है। तांत्रिक लोग भैरवों की विशेष तुरंगन के कुल की बिसाल ऐसी पुलकी सुचाल तैसी रूप से उपासना करते हैं। दुलकी।गोपाल । (३) साहित्य में भयानक रस । (४) एक नाग का नाम । भैदा*-वि० [सं० भय+दा (प्रत्य॰)] भयप्रद । डरावना । (५) एक नद का नाम । (६) एक राग का नाम जो हनुमत भैना-संज्ञा स्त्री० [हिं० बहिन ] बहिन । भगिनी । के मत से छः रागों में से मुख्य और पहला है; और ओदव भैना-संज्ञा स्त्री० [हिं० बहिन ] बहिन । भगिनी । जाति का है; क्योंकि इसमें ऋषभ और पंचम नहीं होता। संज्ञा स्त्री॰ [देश ] गंगई नामक पक्षी। पर कुछ लोग इसे पादव जाति का और कुछ संपूर्ण जाति भैनी -संज्ञा स्त्री० [हिं० बहिन ] बहिन । भगिनी । का भी मानते हैं। इसके गाने की ऋतु शरद, वार रवि और भैने-संज्ञा पुं० [सं० भागिनेय ] बहिन का पुत्र । भान्जा । समय प्रातःकाल है। हनुमत के मत से भैरवी, बैरारी, भैम-संज्ञा पुं० [सं०] राजा उग्रसेन।। मधुमाधवी, सिंधवी और बंगाली ये पांच इसकी रागिनियाँ वि० [सं०] भीम संबंधी। भीम का। और हर्ष तथा सोमेश्वर के मत से भैरवी, गुर्जरी, रेवा, मगव-संज्ञा पुं० [सं०] एक गोत्र का नाम । गुणकली, बंगाली और बहुली ये छ: इसकी रागिनियाँ हैं। भैमी-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] (१) माघ शुक्ल एकादशी । भीमसेनी इसका रागिनियों और पुत्रों की संख्या तथा नामों के एकादशी। (२) भीम राना की कन्या । दमयंती । संबंध में आचार्यों में बहुत मतभेद है। यह हास्यरस का भैयंसा-संज्ञा पुं० [हिं० भाई+अंश ] संपत्ति में भाइयों का राग माना जाता है और इसका सहचर मधुमाधव तथा हिस्सा । भाइयों का अंश । पहचरी मधुमाधवी है। एक मत में इसका स्वरग्राम ध, भैया-संज्ञा पुं० [हिं० भाई ] (6) भाई । भ्राता । (२) बरादर नि, सा, रि, ग, म, प और दूसरे मत से ध, नि, सा, रि, वालों या छोटों के लिये संबोधन शब्द । उ.--(क) पितु ग, म है । (७) ताल के साठ मुख्य भेदों में से एक । समीप तय जायेहु भैया । भइ बदि बार जाइ बलि मैया। (4) कपाली । (२) भयानक शब्द । (१०) वह जो मदिरा -~-तुलसी । (ख) कहै मोहि मैया मैं न मैया भरत की पीते पीते वमन करने लगे । (तांत्रिक) बलैया लहाँ भैया तेरी मैया कैकेई है।--तुलसी। भैरवमस्तक-संशा पु० [सं० ] ताल के माठ मुख्य भेदों में मे संज्ञा पुं० [?] नाव की पट्टी या तख्ती। एक । उ०-न चतुक बिना शब्दं ताले भैरवमस्तके ।- भैयाचारा-संज्ञा पुं० दे० "भाईचारा"। सं० दा। भैयाचारी-सज्ञा स्त्री० दे० 'भाईचारा"। भैरवांजन-संशा ५० [सं०] आँखों में लगाने का एक प्रकार का भैयादोज-संशा स्त्री० [सं० भात द्विताया ] कार्तिक शुक्ल द्वितीया। अंजन। (वैषक) भाईज । भैरवी-संज्ञा स्त्री० [सं०] (8) तांत्रिकों के अनुसार एक प्रकार की विशेष-दस दिन वहिने अपने भाइयों को टीका लगाती और . देवा जो महाविद्या की एक मूर्ति मानी जाती है । चामुंडा । भोजन कराती है। विशेष-भरवी की कई मूर्तियाँ मानी जाती है। जैसे, वाषा ६५०