पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३०८

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भोग २५९९ भोग्यभूमि भोग-संज्ञा पुं० [सं०] (1) सुख या दु:ख आदि का अनुभव कान में पहनने का गहना। (४) वह छोटी पतली पोली करना या अपने शरीर पर सहना । (२) सुख । विलास । कील जो लौंग या कान के फूल आदि को अटकाने के लिये (३) दु:ख । कष्ट । (४) स्त्री संभाग। विषय । (५) साँप का उसमें लगाई जाती है। (५) चपटे तार या बादले का बना फन । (६) साँप । (७) धन । (4) गृह । घर। (९) हुआ सलमा जिससे दोनों किनारों के बीच की जंजीर बनाई पालन । (10) भक्षण । आहार करना । (११) देह। (१२) जाती है। कॅगनी । मान। परिमाण । (१३) पाप या पुण्य का वह फल जो सहन भोगवती-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) पाताल गंगा । (२) गंगा । (३) किया या भोगा जाता है। प्रारब्ध। (१४) पुर । (१५) एक पुराणानुसार एक तीर्थ का नाम । (५) महाभारत के अनु- प्रकार का सैनिक स्यूह । (१६) फल । अर्थ। उ०-क्योंकि सार एक प्राचीन नदी का नाम । (५) नागों के रहने का गुण वे कहासे हैं जिनसे कर्मकांडादि में उपकार लेना होता स्थान । नागपुरी। (६) कार्तिकेय की एक मातृका का नाम । है। परंतु सर्वत्र कर्मकार में भी इष्ट भोग की प्राप्ति के लिये | भागवना*-क्रि० अ० [सं० भाग ] भोगना । उ०--सनि फजल परमेश्वर का स्याग नहीं होता।-दयानंद । (१७) मानुष ! वख मष लगनि उपज्यो सुदिन सनेह । क्यों न नृपति है प्रमाण के तीन भेदों में से एक । भुक्ति (हज़ा)। (१८) भोगवै लहि सुदेस सब देह । -बिहारी । देवता आदि के आगे रखे जानेवाले खाद्य पदार्थ । नैवेद्य। भोगवान्-संज्ञा पुं० [सं०] (1) साँप । (२) नाट्य । (३) गान। उ०—ायो है महल माँझ टहल लगाये लोग लागे होन | गीत। भोग जिय शंका तनु छीजिये ।-नाभा । भांगवाना-क्रि० स० [हिं० भोगना का प्रे० रूप] भोगने में दूसरे क्रि० प्र०-लगाना। को प्रवृत्त करना । भोग कराना । (१९) भादा। किराया।(२०) सूर्य आदि ग्रहों के राशियों भोगविलास-संञ्चा पुं० [सं० ] आमोद प्रमोद । सुम्ब चैन । में रहने का समय। भागांतराय-संज्ञा पुं० [सं० ] वह अंतराय जिसका उदय होने से भोगदेह-संशा पुं० खी० [सं०] पुराणानुसार वह सूक्ष्म शरीर जो मनुष्य के भोगों की प्राप्ति में विघ्न पड़ता है। वह पाप कर्म मनुरुप को मरने के उपरांत स्वर्ग या नरक आदि में जाने के जिनके उदित होने पर मनुष्य भोगने योग्य पदार्थ पाकर भी लिये धारण करना पड़ता है। उनका भोग नहीं कर सकता । (जैन) भोगना-कि० अ० [सं० भोग ] (1) सुख-दुःख या शुभाशुभ | भीगाना-क्रि० स० [हिं० भोगना का प्रे० ] भोगने में दूसरे को कर्मफलों का अनुभव करना । आनंद या कष्ट आदि को अपने । प्रवृत्त करना । भोग कराना । ऊपर सहन करना । भुगतना। (२) सहन करना । सहना। भोगिन-संज्ञा स्त्री० दे० "भोगिनी"। (३) स्त्री-प्रसंग करना। भोगिनी-संज्ञा स्त्री० [सं० ] (१) राजा की उपपत्नी । राजा की भोगपति-संज्ञा पुं० [सं० ] किसी नगर या प्रांत आदि का प्रधान रखेली स्त्री । (२) नागिन । शासक या अधिकारी। मांगींद्र-संज्ञा पुं० [सं०] पतंजलि का एक नाम । भोगप्रस्थ-संज्ञा पुं० [सं० ] बृहत्संहिता के अनुसार एक देश जो भोगा-संज्ञा पुं० [सं० भागिन् या भागान ] (1) भोगनेवाला । वह जो उत्तर दिशा में माना गया है। भोगता हो । (२) माँप । (३) ज़मींदार । (४) नृप । राजा। भोगबंधक-संशा पुं० [सं० भोम्य+हिं० बंधक रेहन ] बंधक या (५) नापित । नाउ । नाई। (६) शेषनाग । (हिं.) रेहन रखने का वह प्रकार जिसमें उधार लिए हुए रुपए का । वि० (१) सुखी । (२) इंद्रियों का सुख चाहनेवाला । (३) ग्याज नहीं दिया जाता और उस व्याज के बदले में रुपया भुगतनेघाला । (४) विषयासक। (५) आनंद करनेवाला । उधार देनेवाले को रेहन रखी हुई भूमि या मफान आदि बिलामी (६) विषयी। भोगासक्त। व्यसनी । ऐयाश । भोग करने अथवा किराए आदि पर चलाने का अधिकार (७) खानेवाला। प्राप्त होता है। दृष्टगंधक का उलटा । | भोगीन-संज्ञा पुं० दे० "भोगी"। भोगलदाई-संशा स्त्री० [हिं० भोग+लदाई ! ] खेत में कपास भोगेश्वर-संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार एक तीर्थ का नाम । का सब से बड़ा पौधा जिसके आस पास बैठफर देहाती भोग्य-वि० [सं०] (1) भोगने योग्य । काम में लाने योग्य । लोग उसकी पूजा करते हैं। (२) जिपका भोग किया जाय । (३) खाद्य (पदार्थ) । भांगलिप्सा-संज्ञा स्त्री० [सं०] व्यसन । लत । संज्ञा पुं० [सं०] (१) धन । (२) धान्य । (३) भोगबंधक । भोगलियाल-संशा खी० [हिं० ] कटारी नाम का शस्त्र । भोग्यभूमि-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) बिलास की भूमि । आनंद भोगली-संज्ञा स्त्री० [देश॰] (1) छोटी नली। पुपली । (२) का स्थान । (२) वह भूमि जिसमें किए हुए पाप-पुण्यों से नाक में पहनने का कौंग । (३) टेटका या तरकी नाम का | सुख दुःख प्राप्त हों। मर्त्य लोक ।