पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३१

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२३२४ फूटना (३) नष्ट होना। बिगबना । जैसे, आँख फूटना। भाग्य फूले मनो मदन विटप की हार ।-सूर । (१) (ख) मोहन मोहनी अंग सिंगारत । बेनी ललित ललित कर गूंथत । निरखत सुदर । माँग सँवारत सीसफूल धरि पारि पोंछस दन झवा निहारत ।-सूर। यौ०-फूंद (दारा-फुदनेवाला । फुलरेवाला । उ०-हाय हरी हरी छाजै छरी अरु जूनी चड़ी पग फंद फुदौरी। देव । (२) फुफुदी। फ्राई-संज्ञा स्त्री० [हिं० फह। ] (1) घी का फूल या बुलबुलों का समूह जो तपाते समय ऊपर आ जाता है। (२) फफूंदी। फ्रट-संज्ञा स्त्री० [हिं० फूटना ] (1) फूटने की क्रिया या भाव । (२) वर । विरोध । विगाय । अनबन । क्रि० प्र०-कराना।—होना । यौ०-फूट फटक-अनबन । विगाद।। मुहा०-फूट डालना भेद डालना । भेद भाव या विरोध उत्पन्न करना । अगढ़ा डालना । उ.-नारद है ये बड़े सयाने घर घर हारत फूट ।-सूर। (३) एक प्रकार की बड़ी ककड़ी जो सेतों में होती है और पकने पर फट जाती है। मुहा०-फूट सा खिलना-पक कर या खरना होकर दरकना । फूटन-संज्ञा स्त्री० | हि० फूटना ] (1) टुकड़ा जो फूट कर अलमा हो गया हो। (२) शरीर के जोड़ों में होनेवाली पीदा। जैसे, हरफूटन । फूटना-कि० अ० [सं० स्फुटन, प्रा० फुडन ] (1) खरी या करारी वस्तुओं का दबाव या आघात पाकर टूटना । खरी वस्तुओं का खंड खंड होना । भन्न होना । करकना । दरकना । जैसे, घड़ा फूटना, चिमनी फूटना, रेवड़ी फूटना, बताशा फूटना, पत्थर फूटना। संयो० क्रि०-जाना। मुहा०---उँगलियाँ फूटना खीचने या मोड़ने से उगलियों के जोड का खट बट बोलना । उगलिया चटकाना । विशेष-इस क्रिया का प्रयोग खरी या करारी वस्तुओं के लिये होता है, चमड़े, लकड़ी आदि धीमद वस्तुओं के लिए नहीं होता। उ०-(क) यह तन काँचा कुभ है लिए फिर था साथ । उपका लागा फुटि गया, कळू न आया हाथ ।- कबीर । (ख) कविरा, राम रिमाह ले मुख अमरित गुन गाइ । फूटा नग ज्यों जोरि मन संधिहि संधि मिलाइ।- कबीर। (२) ऐसी वस्तुओं का फटना जिनके ऊपर छिलका या आवरण हो और भीतर या तो पोला हो अथवा मुलायम या पतली चीज़ भरी हो । जैसे, कटहल फूटना, सिर फूटना, फोदा फूटना। मुहा०-फूटी आँख का तारा-का बेटों में बचा हुआ एक बेटा । बहुत प्यारा लड़का । फूटी आँखों न भाना-तनिक भी न सुहाना । बहुत बुरा लगना । अत्यंत अप्रिय लगना । जैसे, अपनी चाल से यह फूटी भाँस्खों नहीं भाता। (त्रि.)। फूटी आँखों न देख सकना-बुरा मानना । जलना । कुढ़ना । जैसे, वह मेरे लड़के को फूटी आँखों नहीं देख सकती। (नि.) फूटे मुँह से न बोलना-दो बात भी न करना । अत्यंत उपेक्षा करना। (४) भेद कर निकलना । भीतर से झोंक के साथ बाहर आना । जैसे, सोता फूटना, धार फूटना । (५) शरीर पर दाने या घाव के रूप में प्रकट होना। फोड़े आदि की सरह निकलना । जैसे, दाने फूटना, कोड़ फूटना, गरमी फूटना । (६) कली का खिलना। प्रस्फुटित होना । (७) जुड़ी हुई वस्तु के रूप में निकलना । अवयव, जोड़ या वृद्धि के रूप में प्रकट होना । अंकुर, शारवा आदि का निकलना। जैसे, कसा फूटना, शाखा फूटना । उ०—बिरवा एक सकल संसारा। पेच एक फूटी बहु-बारा ।—कबीर । (4) अंकुरित होना । फटकर अखुवा निकलना । जैसे, बीज फूटना । (९) शाखा के रूप में अलग होकर किसी सीध में जाना । जैसे,-थोड़ी दूर पर सड़क से एक और रास्ता फूटा है। (१०) बिखरना । फैलना । व्याप्त होना । उ०—(क) दिसन दिसन सों किरन फूटहि । सब जग जानु फुलझरी छूटहिं ।-जायसी । (ख) रेड़ा रूख भया मलयागिरि चहुँ दिसि फूटी बास ।-कधीर । (११) निकलकर पृथक होना। संग या समूह से अलग होना। साथ छोड़ना । जैसे, गोल से फूटना । (१२) पक्ष छोड़ना । दूसरे पक्ष में हो जाना। जैसे, गवाह फूटना। (१३) अलग अलग होना । विना होना । संयुक्त न रहना। मिलाप की दशा में न रहना । जैसे, जोड़ा फूटना, संग फूटना । उ॰—(क). जिनके पद केशव पानि हिये सुख मानि सबै दुख दूर किये। तिनका सैंग फूटत ही फिट रे फटि कोटिक टूक भयो न हिये ।- केशव । (ख)तू जुग फूट न मेरी भटू यह काहू कयोसखिया सखियान से। फैज से पानि से पासे परे असुभा गिरे खंजन सी अखियान तें। नृपशंभु । (१४) शन्न का मुंह से निकलना । जैसे, मुँह से बात फूटना। मुहा०-फूट फूट कर रोना=विलख विलख कर रोना । बहुत विलाप करना । फूट बहना रो पड़ना : (१५) बोलना । मुंह से शब्द निकलना । जैसे, कुछ तो फूटो। (नि.)। (१६) व्यकहोना । प्रकट होना। प्रकाशित होना । 7-अंग अंग छवि फूटि काप्ति सब निरखत पुर