पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३१०

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भोजपरीक्षक २६०१ भोक मान जाता है। वैद्यक में इसे बलकारक, कफनाशक, कटु, म्पाल एक ताल सान सुर को वधान बीच च रही।- कषाय और उष्ण माना गया है। रघुनाथ । (२) लिस होना । लीन होना । (३) आसक पर्यायी । बहुलवल्कल । छत्रपत्र । शिव । स्थिरच्छद । होना । अनुरक्त होना। मृदुत्वक । पत्रपुष्पक । भुज । बहुपट । बहुत्वक । संयोकि०-जाना-पहना। भोजपरीक्षक-संज्ञा पुं० [सं० ] रसोई की परीक्षा करनेवाला । भोपा-संशा पुं॰ [ भी मे अनु० ] (1) एक प्रकार की तुरही या क वह जो इस बात की परीक्षा करता हो कि भोजन में विष कर बजाया जानेवाला बाजा । भोंपू। (२) मूर्ख । बेवकूफ। आदि तो नहीं मिला है। भोबरा-संज्ञा पुं० [ देश० ] एक प्रकार की घास जिसे मेरन भी भोजपुरिया-संशा पुं० [हिं० भाजपुर+इया (प्रत्य॰)] भोजपुर का | कहते हैं। निवासी । भोजपुर का रहनेवाला । भोम-संज्ञा स्त्री० [सं० भूमि ] पृथ्वी । ( डि.) वि० भोजपुर संबंधी। भोजपुर का । भोमी-संज्ञा स्त्री० [सं० भूमि ] पृथ्वी । (डि.) भोजपूरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० भोजपुर+ई (प्रत्य॰)] भोजपुर की भोर-संज्ञा पुं० [सं० विभावरी ] प्रात:काल । सबेरा तड़का । उ.- भाषा । संज्ञा पुं० भोजपुर का निवासी। जागे भोर दौषि जननी ने अपने कंठ लगायो।—सूर । वि. भोजपुर का । भोजपुर संबंधी। संशा पुं० [देश० ] (1) एक प्रकार का बड़ा पक्षी जिसके भोजराज-संज्ञा पुं० दे. "भोज"। पर बहुत सुंदर होते हैं। यह जल तथा हरियाली को बहुत भोजविद्या-संज्ञा स्त्री० [सं० भोज+विधा ] इंद्रजाल । बाजीगरी । पसंद करता है। यह फल फूल तथा कीड़े मकोड़े खाता भोजी-संज्ञा पुं० [सं० भोजन ] खानेवाला । भोजन करनेवाला । और खेतों को बहुत अधिक हानि पहुँचाता है। रात के भोज-संज्ञा पुं० [सं० भोजन ] भोजन । आहार । समय ऊँचे वृक्षों पर विश्राम करता है। (२) खमो नामक भोजेश-संज्ञा पुं॰ [सं०] (1) भोजराज । (२) कैस । (३) दे. सदा बहार वृक्ष। "भोज (६)"। वि० दे. "स्वमो"। भोज्य-संज्ञा पुं० [सं० ] भोजन के पदार्थ । खाद्य पदार्थ ।

  • सिंज्ञा पुं० [सं० भ्रम ] धोखा । भूल । श्रम । उ०-(क)

वि० खाने योग्य । जो वाया जा सके। की दुहुँ रानि कौसिलहिं परिगा भोर हो।-तुलसी। (ख) भोट-संज्ञा पुं० [सं० भोटग ] (1) भूटान देश । (२) एक प्रकार हसत परस्पर आयु में चली जाहि जिय भोर ।-सूर । का बड़ा पत्थर जो प्रायः ॥रंच मोटा, ५ फुट लंबा और वि० चकित । स्तंभित । उ०-सूर प्रभु की निरखि सौभा १॥ फुट चौड़ा होता है। भई तरुनी भोर ।-सूर। भोटिया-संशा पुं० [हिं० भोर+इया (प्रत्य॰)] भोट या भूटान * वि० [हिं० भाला ] भोला । सीधा । सरल । 30- देश का निवासी। थाती राखि न मांगेउ काऊ । बिसरि गयउ मोहि भोर संज्ञा स्त्री० भूटान देश की भाषा । सुभाऊ ।-तुलसी। वि० भूटान देश संबंधी। भूटान का। जैसे,—भोटिया टटु। भोरा-संशा पुं० [देश॰] प्राय: एक फुट लंधी एक प्रकार की मछली भोटिया बादाम-संज्ञा पुं० [हिं० भोटिया+झा० बादाम ] (१)। जो युक्तप्रांत, मद्रास और ब्रह्म देश की नदियों में पाई जाती है। आलूबुखारा । (२) मूंगफली।

  • संज्ञा पुं० दे. "भोर"।

भोटी-वि० [हिं० भोट+ई (प्रत्य॰)] भूटान देश का।

  • +-वि. भोला । सीधा । सरल।

भोडरा-संज्ञा पुं० [ देश० ] अभ्रक । अबरक। उ०—पायल पाय| भोराई -संज्ञा स्त्री० [हिं० भोरा+ई (प्रत्य॰)] भोलापन । लगी रहै लगे अमोलक लाल । भोडर की भासिहै बैंदी सिधाई। सरलता। भामिनि माल ।-बिहारी । (२) अभ्रक का चूर जो होली! भोराना*-क्रि० स० [हिं० भोर+आना (प्रत्य॰)] भ्रम में डालना। आदि में गुलाल के साथ उड़ाया जाता है। दुका । (३) बहकाना । धोखा देना। उ.-सूरवास लोगन के भोरए एक प्रकार का मुश्क बिलाव । काहे कान्ह अब होत पराए।-सूर। भोडल-संज्ञा पुं० दे० 'भवरक"। कि० अ० भ्रम में पड़ना । धोखे में माना। भोडागार-संज्ञा पुं० [सं० भाडागार ] भंडार । (सिं.) भोरानाथ*-संज्ञा पुं॰ [हिं० भोलानाथ ] शिव । उ०-गौरीनाथ भोण-संज्ञा पुं० [सं० भवन ] गृह । घर । मकान । (दि.) भोरानाथ भवत भवानीनाथ विश्वनायपुर फिरि आन कलि- भोना*-क्रि० अ० [हिं० भीनना] (1) भीनना । संचरित होना। काल की। तुलसी । उ०-(क) रेख कछू कडू अंजन की का संजन की अरुलाई भोरी-संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] अफीम का एक रोग। रही म्वै।-रखुनाथ । (ख) तब लागी गावन विभास बीच | भोरु*-संज्ञा पुं० दे० "भोर"।