पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३१२

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२६०३ भौमिक क्रि० प्र०—पड़ना। भौतिक-संज्ञा पुं० [सं०] (1) महादेव । (२) मुक्का । मोती। (२) विवाह के समय घर-वधू का अग्नि की परिक्रमा करना। (३) उपद्रव । (४) आधि-व्याधि । (५) आँख, नाक भाँवर । आदि इंद्रियाँ। क्रि०प्र०-पड़ना । लेना। वि० (७) पंचभूत संबंधी। (२) पाँचों भूतों से बना हुआ। (३) तेज बहते हुए जल में पड़नेवाला चक्कर । आवर्स । पार्थिव । उ०-भौतिक देह जीय अभिमानी देखत ही क्रि० प्र०-पड़ना। दुख लायो।-सूर । (३) शरीर संबंधी। शरीर का । (४) अंगाकड़ी । बाटी। ( पकवान) यौ०-भोतिक सृष्टि। भौंह-संज्ञा स्त्री० [सं० 5 ] आँख के ऊपर की हड्डी पर जमे हुए (४) भूतयोनि से संबंध रखनेवाला। रोएँ या काल । भृकुटी। भौं । भव । यौ०-भौतिक विधा। मुहा०-भौंह चढ़ाना या तानना-(१) नाराज होना । क्रुद्ध होना। भौतिक विद्या-संशा स्त्री० [सं०] वह विद्या जिसके अनुसार भूत उ.-वदत्त काहू नहीं निधरफ निदरि मोहिं न गनत । प्रेत आदि से बात की जाती है और उनके अद्भुत व्यापार बार बार बुझाइहारी भौंह मोपर तनत । -सूर । (२) त्योरी जाने अथवा रोके जाते हैं। भूतों-प्रेतों को बुलाने और दर चढ़ाना । बिगड़ना। भौंह जोहना-प्रसन्न रखने के लिये करने का विद्या। संकेत पर चलना । खुशामद करना। उ.--अकारन को भौतिक सृष्टि-संशा स्त्री० [सं०] आठ प्रकार की देव-योनि, पाँच हितू और को है। विरद गरीबनेवाज कौन को भौंह जासु प्रकार की तिर्यग योनि और मनुष्य योनि, इन सबकी समष्टि। जन जोहै।--तुलसी। भौंह ताकना=किसी की प्रवृत्ति भौती-संज्ञा स्त्री० [सं०] रातात्रि । रजनी।। या विचार का ध्यान रखना । रुख देखना । नसशा स्त्री॰ [देश॰] एक बालिस्त लंबी और पसली लकड़ी भौ*-संशा पुं० [सं० भव ] संसार । जगत । दुनियाँ। जिसकी सहायता से ताने का चरखा घुमाते हैं। भेडेती। संज्ञा पुं० [सं० भय ] घर । खौफ । भय । उ०—मेरो भलो | (जुलाहा) कियो राम आपनी भलाई। ............"लोक कहैं राम को भौत्य-संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार भूति मुनि के पुत्र और गुलाम हौं कहावौं । ए तो बदो अपराध मन भौ न पाचौं । | चौदहवें मनु का नाम । -सुलसी। भौन*-संज्ञा पुं० [सं० भवन ] घर । मकान । भौका-संशा पुं० [ देश. ] [ सी. भौकी ] बढ़ी दौरी । टोकरा। भौना*1-क्रि० अ० [सं० भ्रमण ] चक्कर लगाना । धूमना । भौगिया*-संज्ञा पुं० [हिं० भोग+इया (प्रत्य॰)] संसार के सुखों भौम-वि० [सं०] (१) भूमि संबंधी । भूमि का । (२) भूमि से का भोग करनेवाला । वह जो सांसारिक सुख भोगता हो। उत्पन्न । पृथ्वी से उत्पन्न । जैसे, मनुष्य, पशु, वृक्ष आदि। भौगोलिक-वि० [सं०] भूगोल संबंधी। भूगोल का । संज्ञा पुं० (१) मंगल ग्रह । (२) बर । (३) लाल पुनर्नवा । भौचक-वि० [हिं० भय+चकित ] जो कोई विलक्षण बात या (४) योग में एक प्रकार का आसन । (५) वह केतु या आकस्मिक घटना देखकर घबरा गया हो । हका बका । पुच्छल तारा जो दिथ्य और अंतरिक्ष के परे हो। चकपकाया हुआ। स्तंभित । भौमदेव-संज्ञा पुं० [सं०] ललितविस्तर के अनुसार प्राचीन काल क्रि०प्र०-रह जाना।--होना। की एक प्रकार की लिपि भौचाला-संज्ञा पुं० दे. "भूकंप"। भौम प्रदोष-संश पुं० [सं०] वह प्रदोष व्रत जो मंगलवार को भौज*-संज्ञा स्त्री० [हिं० भावज ] भाई की पत्नी । भौजाई। पड़े। वह प्रयोदशी जो मंगलवार के सायंकाल में पड़े। भावज । उ.-ननद भौज परपंच रच्यो है मोर नाम इस प्रदोष का माहात्म्य साधारण प्रदोष की अपेक्षा कुछ कहि लीन्हा। कधीर । विशेष माना जाता है। भौजाई-संज्ञा स्त्री० [सं० भातृजाया ] भाई की भार्या । भ्रातृवधू । भौमरन-संज्ञा पुं० [सं०] मूंगा। भावज । भाभी। भौमराशि-संशा स्त्री० [सं०] मेष और वृष राशियाँ । भौज्य-संज्ञा पुं॰ [सं०] वह राज्य प्रबंध जिसमें प्रजा से राजा | भौमवती-संवा स्त्री० [सं०] भौसासुर की स्त्री का नाम । लाभ तो उठाता हो, पर प्रजा के स्वत्वों का कुछ विचार न | भौमवार-संज्ञा पुं० [सं०] मंगलवार । करता हो। बह राज्य जो केवल सुख-भोग के विचार से | भौमासुर-संज्ञा पुं० [सं०] नरकासुर नाम का असुर । वि० दे० होता हो, प्रजा-पालन के विचार से नहीं। इसमें प्रजा सदा | ! "नरकासुर" दुःखी रहती है। भौमिक-संज्ञा पुं० [सं०] भूमि का अधिकारी या स्वामी । भौठा-संशा पुं॰ [देश॰] छोटा पहायटीला । पहादी। जमींदार।