पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३१४

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भ्रमरातिथि २६०५ भ्रामक - भ्रमरातिथि-संज्ञा पुं० [सं०] चंपा का वृक्ष । आया हुआ। भूला हुआ। (२) म्याकुल । अबराया हुआ । भ्रमरावली-संज्ञा स्त्री० [सं०] (8) भवरों की श्रेणी । (२) एक हक्का बक्का । (३) उन्मत्त । (४) हुमाया हुआ। वृत्त का नाम जिसे नलिनी या मनहरण भी कहते हैं। भ्रांतापहनुति-संशा स्त्री० [ स०] एक काव्यालंकार जिसमें किसी इसके प्रत्येक पाद में पाँच सगण होते हैं। उ०—ससि सों! भ्रांति को दूर करने के लिये सत्य वस्तु का वर्णन होता है। सु सखी रघुनंदन को बदना । लखिकै पुलकी मिथिलापुर | भ्रांति-संज्ञा स्त्री० [सं० ] (1) भ्रम । धोखा । (२) संदेह । की ललना । तिनके सुख में दिश फूल रहीं दशहूँ। पुर मैं संशय । शक । (३) भ्रमण । (४) पागलपन। (५) भंवरी। नलिनी विकसी जनु ओर चहूँ। -जगनाथ । घुमेर । (६) भूलचूक । (७) मोह । प्रमाद । (4) एक भ्रमरी-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) जसुका नामक लता । पुत्रदात्री। प्रकार का काव्यालंकार इसमें किसी वस्तु को, दूसरी वस्तु घट पदी । (२) मिरगी रोग । (३) पार्वती । (४) भौंरे की | के साथ उसकी समानता देखकर, भ्रम से वह दूसरी वस्तु मादा। भौंरी। ही समझ लेना वर्णित होता है। जैसे,-अटारी पर नायिका भ्रमरेष्ठ-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का श्योनाक । को देखकर कहना है ! यह चंद्रमा कहाँ से निकल आया! भ्रमरेष्टा-संशा स्त्री० [सं०] (1) भुई-जामुन । (२) भारंगी। | भ्राज-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का साम जो गवामयन सत्र भ्रमवात-संज्ञा पुं० [सं०] आकाश का वह वायुमंडल जो सर्वदा में विषुव नामक प्रधान दिन में गाया जाता था। घूमा करता है। उ०—सूखिगे गात श्वले नभ जात रे भ्राजक-संज्ञा पु० [सं०] वैद्यक के अनुसार स्वचा में रहनेवाला भ्रमवात न भूतल आए ।-तुलसी। पिस । शरीर में जो कुछ तेल आदि मला जाता है, उसका भ्रमात्मक-वि० [सं०] जिसमे अथवा जिसके संबंध में भ्रम | परिपाक इसी पित्त के द्वारा होना माना जाता है। उत्पन्न होता हो । संदिग्ध । भ्राजना*-क्रि० अ० [सं० भ्राजन दीपन ] (1) शोभा पाना । भ्रमाना*-क्रि० स० [हिं० भ्रमना का स०] (1) चुमाना।। शोभायमान होना । उ०—(क) उर आयत भ्राजत विविध फिराना । (२) धोखे में डालना । भटकाना। बाल विभषन बीर ।-सुलसी। (ख) केकी पच्छ मुकुट भ्रमासक्त-संज्ञा पुं॰ [सं०] वह जो अस्त्र शल आदि साफ़ सिर भाजत । गौरी राग मिले सुर गावत ।-सूर । करता हो। भ्राजमान*-वि० [हिं० भ्राजना+मान (प्रत्य०) ] शोभायमान । भ्रमित-वि० [सं०] (1) जिम्मे भ्रम हुआ हो। शंकित । (२) भ्राजिर-संशा पुं० [सं० ] पुराणानुसार भौत्य मन्वंतर के एक घूमता हुआ। प्रकार के देवता। भ्रमितनेत्र-वि० [सं०] एंचासाना। भ्रात*-संज्ञा पुं० दे० "भ्राता"। भ्रमी-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) धूमना-फिरना । भ्रमण । (२) चक्कर भ्राता-संज्ञा पुं० [सं० भ्रातृ ] सगा भाई । सहोदर । लगाना । फेरी देना । (३) मेना की वह रचना जिसमें भ्रातृक-संज्ञा पुं० [सं०] वह धन आदि जो भाई से मिला हो। सैनिक मंडल बाँधकर खड़े होते हैं। (४) तेज़ बहते हुए भ्रातृज-संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० भ्रातृजा ] भाई का लड़का । पानी में का भौर । नांद। (५) कुम्हार का चाक । । भतीजा। वि० [सं० भ्रमिन् ] (1) जिसे भ्रम हुआ हो। (२) भ्रातृजाया-संज्ञा स्त्री० [सं०] भाई की स्त्री । भौजाई । भाभी। चकित । भौचक। उ०—किधी वेदविद्या प्रभाई भ्रमी भ्रातृत्व-संशा पुं० [सं०] भाई होने का भाव या धर्म ।भाईपन । सी। केशव । भ्रातृद्वितीया-संशा स्त्री० [सं०] कार्तिक शुक्ल द्वितीया । यम भ्रष्ट-वि० [सं०] (1) नीचे गिरा हुआ। पतित । (२) जो द्वितीया । भाई दूज। खराब हो गया हो। जो अच्छी दशा में या काम का न रह विशेषस दिन यम और चित्रगुप्त का पूजन किया जाता गया हो। बहुत बिगवा हुआ। (३) जिसमें कोई दोष आ है, बहनों से तिलक लगवाया जाता है, इन्हीं के दिए हुए गया हो । दूषित । (४) जिसका आचरण खराब हो गया पदार्थ खाए जाते हैं और उन्हें कुछ द्रव्य दिया जाता है। हो । धुरी चाल-चलनवाला । बढ़-चलन । दुराचारी। भ्रातृपुत्र-संज्ञा पुं० [सं०] भाई का बकाभतीजा। भ्रष्टा-संज्ञा स्त्री० [सं०] मुश्चली। कुलटा । छिनाल। भ्रातृभाष-संज्ञा पुं० [सं०] भाई का सा प्रेम या संबंध । भाई- भ्रांत-संज्ञा पुं॰ [सं०] (1) तलवार के ३२ हाथों में से एक । चारा । भाईपन। तलवार को गोलाकार घुमाना। इसके द्वारा दूसरे के चलाए भ्रातृवधू-संज्ञा स्त्री० [सं०] भौजाई । भाभी । भावज । हुए शव को व्यर्थ किया जाता है। (२) राज-धतूरा । (३)| भ्रातृव्य-संज्ञा पुं० [सं० ] भाई का लड़का । भतीजा । मस्त हामी । (४) घूमना-फिरना । भ्रमण । भ्रातृश्वसुर-संज्ञा पुं० [सं० ] पति का बड़ा भाई । जेठ । भसुर । वि० [सं०] (1) जिसे भ्रांति या भ्रम हुआ हो। धोखे में | भ्रामक-वि० [सं०] (1) भ्रम में डालनेवाला । बहकानेवाला। rost Graduate Library ॥