पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३१६

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मंगल २६०७ मैंगवाना मंगल-संज्ञा पुं० [सं०] (1) अभीष्ट की सिद्धि । मनोकामना का मंगलप्रस्थ-संशा पुं० [सं० ] पुराणानुसार एक पर्वत का नाम । पूर्ण होना । (२) कल्याण । कुमाल । मलाई । जैसे,- मंगलवाद-संशा पुं० [सं०] आशीर्वाद । आशीष। आपका मंगल हो । (३) सौर जगत का एक प्रसिद्ध प्रह मंगलवार-संशा पुं० [सं०] सात बारों में तीसरा पार जो सोम- जो पृथ्वी के उपरांत पहले पहल पड़ता है और जो सूर्य | | वार के उपरांत और बुधवार के पहले पड़ता है। भौमवार । से १४,१५,००,००० मील दूर है। यह हमारी पृथ्वी से मंगलसूत्र-संशा पु० [सं० ] वह तागा जो किसी देवता के प्रसाद बहुत ही छोटा और चंद्रमा से प्रायः दूना है। इसका वर्ष रूप में किसी शुभ अवसर पर कलाई में बाँधा जाता है। अथवा सूर्य की एक बार परिक्रमा करने का काल हमारे | मंगलस्नान-संज्ञा पुं० [सं०] वह स्रान जो मंगल की कामना से ६८७ दिनों का होता है और इसका दिन हमारे दिन की | अथवा किसी शुभ अवसर पर किया जाता है। अपेक्षा प्रायः आध घंटा बड़ा होता है। इसके साथ दो | मंगला-संज्ञा स्त्री० [सं० ] () पार्वती । (२) सफ़ेद दूध । (३) उपग्रह या चंद्रमा है जिनमें से एक प्रायः आठ घंटे में | पतियता श्री। (५) एक प्रकार का करंज । (५) हलदी। और दूसरा प्रायः तीस घंटे में इसकी परिक्रमा करता है। (६) नीली दूध । इसका रंग गहरा लाल है। अनुमान किया जाता है कि मंगलाचरण-संशा पु० [सं०] वह श्लोक या पद आदि जो किसी इस ग्रह में स्थल और नहरों आदि की बहुत अधिकता है। शुभ कार्य के आरंभ में मंगल की कामना से पढ़ा, लिखा और यहाँ का जल-वायु हमारी पृथ्वी के जल-वायु के बहुत या कहा जाय । कुछ समान है। पुराणानुसार यह ग्रह पुरुष, क्षत्रिय, साम- मंगलामुखी-संज्ञा स्त्री० [सं० मंगल+मुखी ] वेश्या ।रडी। वेदी, भरद्वाज मुनि का पुत्र, चतुर्भुज, चारों भुजाओं में शक्ति, | मंगलारंभ-संज्ञा पुं० [सं० ] गणेश । वर, अभय तथा गदा का धारण करनेवाला, पित्त प्रकृति, ! मंगलालय-संज्ञा पुं॰ [सं०] परमेश्वर । युवा, कर, वनचारी, गेरू आदि धातुओं तथा लाल रंग के । मंगलाघ्रत-संज्ञा पुं० [सं०] (1) शिव । (२) एक मत जो स्त्रियाँ समस्त पदार्थों का स्वामी और कुछ अंगहीन माना जाता पार्वती के उद्देश्य से करती हैं। है । इसके अधिष्ठाता देवता कार्तिकेय कहे गए हैं और यह ! मंगली-वि० [सं० मंगल (ग्रह) ] जिसकी जन्मकुंडली के चौथे, अर्घ ति देश का अधिपति बतलाया गया है । ब्रह्मवैवर्स पुराण आठवें या बारहवें स्थान में मंगल ग्रह पड़ा हो। (ऐसा में लिखा है कि एक बार पृथ्वी विष्णु भगवान् पर आसक्त स्त्री या पुरुष, फलित ज्योतिष के अनुसार, कई बातों में होकर युवती का रूप धारण करके उनके पास गई थी। पुरा और विशेषतः विवाह संबंध के लिये बहुत ही बुरा जब विष्णु उसका शृंगार करने लगे, तब वह मूर्छित हो और अनुपयुक्त समाना जाता है; और वर या कन्या में से गई। उसी दशा में विष्णु ने उससे संभोग किया, जिससे जो मंगली होता है, वह दूसरे पर भारी माना जाता है।) मंगल की उत्पत्ति हुई । अपुराण में लिखा है एक बार मंगल्य-वि० [सं०] (१) मंगलकारक। मंगल या कल्याण करने- विष्णु का पपीना पृथ्वी पर गिरा था जिसमे मंगल की | वाला । (२) सुदर । (३) साधु । उत्पत्ति हुई । मत्स्यपुराण में लिखा है कि दक्ष का नाश संज्ञा पुं० (१) प्रायमाणा लता । (२) अश्वत्य । (३) बेल । करने के लिये महादेव ने जिस वीरभद्र को उत्पन्न किया (४) मसूर । (५) जीवक वृक्ष । (६) नारियल। (७) कैथ । था, वही वीरभद्र पीछे से मंगल हुआ। इसी प्रकार भिन्न (6) रीठा करंज । (९) दही। (10) चंदन । (११) सोना। भिन्न पुराणों में इसकी उत्पत्ति के संबंध में अनेक प्रकार (१२) सिंदूर । की कथाएँ दी हुई है। मंगल्यकुसुमा-संज्ञा स्त्री० [सं०] शंखपुष्पी । पर्या-अंगारक। भौम । कुज । वक । महीसुत । लोहितांग। मंगल्या-संज्ञा स्त्री० [सं०] () एक प्रकार का अगरु जिसमें ऋणांतक । आवनेय । चमेली की सी गंध होती है। (२) शमी। (३) सफ़ेद (५) एक वार जो इस ग्रह के नाम से प्रसिद्ध है। मंगल बच । (४) रोचना । (५) शंखपुष्पी । (६) जीवती । (७) पार । (५) विष्णु। ऋद्धि लता। (6) हल्दी। (९) दूध । (१०) दुर्गा का मंगलचंडिका-संशा स्त्री० [सं०] दुर्गा का एक नाम । एक नाम। मंगलच्छाय-संज्ञा पुं० [सं०] बद का पेड़।। मँगवाना-क्रि० स० [हिं० माँगना का प्रे० ] (1) मांगने का काम मंगलपाठक-संज्ञा पुं० [सं०] वह जो राजाओं की स्तुति आदि | दूसरे से कराना। किसी को माँगने में प्रवृत्त करना । जैसे, करता हो। वंदीजन। -तुम्हारे ये लक्षण तुमसे भीख मँगवाकर छोडेंगे। (२) किसी मंगलप्रद-वि० [सं०] जिससे मंगल होता हो। मंगल करनेवाला। को कोई चीज़ मोल खरीदकर या किसी से माँगकर लाने मंगलप्रदा-संशा स्त्री० [सं०] (1) हलदी । (२) शमी का वृक्ष ।! में प्रवृत्त करना । जैसे,---(क) अगर मैं किताब मैंगवाऊँ, जलस