पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३१७

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मँगाना २६०८ मंशा तो भेज दीजिएगा। (ख) एक रुपए की मिठाई मैंगवा लो। मंजी-संहा स्त्री० दे. "मंजरी"। संथो०क्रि०-देना ।रखना । लेना। मंजीर-संशा पुं० [सं०] (1) नूपुर।हुंघरू। (२) वह खंभा या मँगाना-क्रि० स० [हिं० माँगना का प्रे०] (1) दे. "मैंगवाना"। लकड़ी जिसमें मथानी का डंडा बंधा रहता है। (३) एक (२) मॅगनी का संबंध कराना । विवाह की बात चीत पक्की पहावी जाति जो पश्चिमी बंगाल में रहती है। कराना। मंजु-वि० [सं०] सुदर । मनोहर । मॅगेतर-वि० [हिं० मॅगनी+एतर (प्रत्य॰)] जिसकी किसी के मंजुकेशी-संज्ञा पुं० [सं० मंजुकेशिन् ] श्रीकृष्ण । साथ मॅगनी हुई हो । किमी के साथ जिसके विवाह की मंजुगर्स-संज्ञा पुं० [सं०] नेपाल देश का प्राचीन नाम । बातचीत पकी हो गई हो। मंजुघोष-संज्ञा पुं० [सं०] (१) तांत्रिकों के एक देवता का नाम। मँगोल-संशा पुं० [मंगोलिया प्रदेश से] मध्य एशिया और उसके पूरब कहते है कि इनका पूजन करने से मूर्खता दूर होती है। की ओर ( तातार, चीन, जापान में ) बसनेवाली एक जाति (२) एक प्रसिद्ध बौद्ध आचार्य जो बौद्ध धर्म का प्रचार जिसका रंग पीला, नाक चिपटी और चेहरा चौड़ा होता है। करने के लिये चीन गए थे। कहा जाता है कि जिस विशेष-पृथ्वी के मनुथ्यों के जो प्रधान चार वर्ग किए गए हैं। स्थान पर आजकल नेपाल देश है, उस स्थान पर पहले जल उनमें एक मंगोल भी है जिसके अंतर्गत नेपाल, तित्रत, चीन, भा।न्होंने मार्ग बनाकर वह जल निकाला था और उस जापान आदि के निवासी माने जाते हैं। आज से छः सात देश को मनुष्यों के रहने के योग्य बनाया था। इन्हें मंजुदेव सौ वर्ष पहले इस जाति के लोगों ने एशिया के बहुत बड़े __ और मंजुश्री भी कहते हैं। और युरोप के कुछ भाग पर भी अधिकार कर लिया था। मंजुघोषा-संशा स्त्री० [सं०] एक अप्सरा का नाम । मंच, मंचक-संशा पु० [सं०] (१) खाट । खटिया । (२) खाट ! मंजुदेव-संज्ञा पुं० दे. "मंजुघोष (२)"। की तरह बुनी हुई बैठने को छोटी पीढ़ी । मॅचिया । (३) ' मंजुनाशी-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) दुर्गा का एक नाम । (२) ऊँचा बना हुआ मंडल जिस पर बैठकर सर्वसाधारण के इंद्राणी का एक नाम । सामने किसी प्रकार का कार्य किया जाय। जैसे, रंगमंच मंजुपाठक-संशा पुं० [सं० ] तोता । मंचपत्री-मंज्ञा स्त्री० [सं०] सुरपत्री नाम की लता। मंजुप्राण-संज्ञा पुं॰ [सं०] बझा। मंचकाश्रय-संज्ञा पुं० [सं०] खटमल। मंजुभद्र-संज्ञा पुं० दे० "मंजुघोष (२)" । मंचकासुर-संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार एक असुर का नाम 1 | मंजुल-वि० [सं०] सुदर । मनोहर । खूबसूरत । मंचमंडप-संज्ञा पुं० [सं०] खेतों में बनी हुई वह मचान जिस संशा पुं० (१) नदी या जलाशय का किनारा । (२) कुंज। पर खेतिहर लोग बैठकर पशुओं आदि से खेतों की रक्षा मंजला-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक नदी का नाम । मंजुषन-संज्ञा पुं० [सं०] बौद्धों के एक देवता का नाम । मंजर-संज्ञा पुं॰ [सं०] (1) मोती। (२) तिल का पौधा । । मंजुश्री-संज्ञा पुं. दे. "मंजुघोष (२)"। मंजरिका-संज्ञा स्त्री० दे० "मजदी"। मंजूर-वि० [अ०] जो मान लिया गया हो। स्वीकृत । मंजरी-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) छोटे पौधे या लता आदि का नया मंजूरी-संज्ञा स्त्री० [अ० मनजूर+ई (प्रत्य॰)] मंजूर होने का भाव। निकला हुआ काला । कोंपल । (२) कुछ विशिष्ट वृक्षों या स्वीकृति। पौधों में फूलों या फलों के स्थान में एक सीके में लगे हुए क्रि०प्र०-देना।—पाना। मांगना ।—मिलना।—लेना। बहुत से दानों का समूह । जैसे, आम की मंजरी, तुलम्पी | मंजूषा-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) छोटा पिटारा या रिब्बा। की मंजरी । (३) मोती । (४) तिल का पौधा। (५) लता। पिटारी। (२) पत्थर । (३) मजीठ । बेल । (६) तुलसी। मंजूसा-संशा पुं० दे० "मंजूषा"। मंजरीक-संज्ञा पुं० [सं०] (1) तुलसी । (२) मोती । (३) तिल मंझा वि० [सं० मध्य-पा० मज्म ] मध्य का । बीच का । जो का पौधा । (४) बेत (लता)।(५) अशोक का वृक्ष । दो के बीच में हो। मंजि-संशा खी० दे० "मंजरी"। संज्ञा पुं० (१) सूत कातने के चरखे में वह मध्य का अवयव मंजिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] वेश्या । रंडी। जिसके ऊपर माल रहती है । मुंडला । (२) अटेरन के बीच मंजिफला-संज्ञा स्त्री० [सं०] केला । की लकपी । मझेरू। मंजिष्ठा-संज्ञा स्त्री० [सं०] मजीठ । संज्ञा स्त्री. वह भूमि जो गोयंड और पालों के बीच में हो। मंजिष्ठामेह-संज्ञा पुं० [सं०] सुश्रुत के अनुसार एक प्रकार का सशा पुं० [सं० मंच ] (1) चौकी । (२) पलंग। खाट । प्रमेह जिसमें मजीठ के पानी के समान मूत्र होता है। (पंजाब)