पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३१८

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२६०९ मंडलपत्रिका संज्ञा पुं० [हिं० माँजना ] वह पदार्थ जिससे रस्सी वा पतंग मँडराना-क्रि० अ० [सं० मंडल ] (1) मंडल बाँधकर उपना । की और को मांजते हैं। माँझा। किसी वस्तु के चारों ओर घूमते हुए उड़ना । चकर देते हुए मुहा०--मंशा देना=माँजना । लेस चदाना । उड़ना । जैसे, चील का मँडराना। उ०-हंस को मैं मंठ-संज्ञा पुं० [सं०] प्राचीन काल का एक प्रकार का मैदे का अंश राण्यो काग कत मैंडराय -सूर । (२) किसी के बना हुआ पकवान जो शारे में डुबोया हुआ होता था। चारों ओर घूमना । परिक्रमण करना । उ.-मंडप ही में मंड-संज्ञा पुं० [सं०1 (8) उबले हुए चावलों आदि का गाढ़ा फिर मैंरात न जात कहूँ तजि नेह को ओनो।—पनाकर । पानी । भात का पानी । माद। (२) विच्छ । सार । (३) (३) किसी के आस पास ही घूम फिरकर रहना । उ.- एरंड वृक्ष । अंडी । (४) भूषा । सावट । (५) मेंढक देखहु जाय और कार को हरि पै सबै रहित मैडरानी । (६) एक प्रकार का साग । मंडक-संज्ञा पुं० [सं०] (1) एक प्रकार का पिष्टक । मैदे की एक ! मंडरी-संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] पयाल की बनी हुई गोंदरी या चटाई। प्रकार की रोटी । माँदा । (२) माधवी लता । (३) गीत मंडल-संशा पुं० [सं०] (1) चक्र के आकार का घेरा। किसी एक का एक अंग। विंदु से समान अंतर पर चारों ओर घूमी हुई परिधि । मंडन-संशा पुं० [सं०] (1) श्रृंगार करना । अलंकरण । सजाना। चक्कर । गोलाई । वृत्त ।। सँवारना । (२) युक्ति आदि देकर किसी कथन या सिद्धांत मुहा-मंडल बाँधना=(१) चारों ओर वृत्त की रेखा के रूप का पुष्टीकरण । प्रमाण आदि द्वारा कोई बात सिद्ध करना। में फिरना । चकर काटना । जैसे, मंडल बाँधकर नाचना । 'साडन' का उलटा । जैसे, पक्ष का मंडन । (२) चारों ओर घेरना। चारों ओर से छा जाना । जैसे, मंडना*-क्रि० स० [ मं० मंडन ] (1) मंडित करना । सुसज्जित बादलों का मखल बाँधकर बरसना । (३) अंधेरे का चारों करना । संवारना । भूषित करना । श्रृंगार करना । (२) । ओर छा जाना। युक्ति दि देकर सिद्ध या प्रतिपादित करना । समर्थन या । (२) गोल फैलाव । वृत्ताकार या अंडाकार विस्तार । गोला । पुष्टिकरण करना। जैसे, भूमंडल। (३) चंद्रमा वा सूर्य के चारों ओर पड़ने- क्रि० स० [सं० मर्दन ] मर्दित करना। दलित करना। वाला घेरा जो कभी कभी आकाश में बादलों की बहुत माँड़ना । उ०-प्रवल प्रचंड बरिचंड बाहुदंड खंडि मंति हलकी तह या कुहरा रहने पर दिखाई पड़ता है। परिवेश । मेदिनी को मंडलीक-लीक लोपिहैं।-तुलसी। (1) किसी वस्तु का वह गोल भाग जो अपनी रष्टि के मंडप-संज्ञा पुं० [सं०] (1) ऐसा स्थान जहाँ बहुत से लोग सम्मुख हो । जैसे, चंद्रमंडल, सूर्यमंडल, मुग्धमंडल । धूप, वर्षा आदि से बचते हुए बैठ सके। विश्राम स्थान । (५) चारों दिशाओं का घेरा जो गोल दिखाई पड़ता है। घर । जैसे, देव मंडप । (२) बहुत से आदमियों के बैठने । क्षितिज 1 (६) बारह राज्यों का समूह । योग्य चारों ओर से खुला, पर ऊपर से छाया हुआ रमान ।। यो०--मंडलेश्वर। बारहदरी। (७) चालीस योजन लंबा और बीस योजन चौड़ा भूमिवंश विशेष—ऐसा स्थान प्रायः पटे हुए चबूतरे के रूप में होता वा प्रदेश । (4) समाज । समूह । समुदाय । जैसे, है जिसके ऊपर खंभों पर टिकी छत या छाजन होती है। मित्रमंडल । उ०-गोपिन मंडल मध्य विराजत निसि दिन देवमंदिरों के सामने नृत्य, गीत आदि के लिये भी ऐसा स्थान करत बिहार । -सूर । (१) एक प्रकार का उथूह । सेना की प्रायः होता है। वृत्ताकार स्थिति । (१०) कूकुर । कुत्ता । (11) एक प्रकार (३) किसी उत्सव या समारोह के लिये बांस, फूस आदि का सर्प। (१२) एक प्रकार का गंधद्रव्य । म्याघनखा। से छाकर बनाया हुआ स्थान । जैसे, यहामंडर, विवाह यधनही। (१३) एक प्रकार का कुष्ट रोग जिसमें शरीर में मंडप । (४) देवमंदिर के उपर का गोल या गावदुम कत्ते से पच जाते हैं। (१४) शरीर की आठ संधियों में हिस्मा । (५) बँदोवा । शामियाना। से एक। (सुश्रुत०) (१५) ग्रह के घूमने की कक्षा । (11) मंडपिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] छोटा मंडप । गेंद । (खेलने का) (१७) कोई गोल दाग वा चिह्न। (10) मंडपी-संज्ञा स्त्री० [सं० मंडप ] छोटा मंडप । मदी। ऋग्वेद का एक खंर । (१९) चक । चाक । पहिया । मंडर*-संशा पुं० दे. "मंडल"। मंडलक-संज्ञा पुं० [सं०] (1) दे. "मंडल" । (२) दर्पण । मँडरना-क्रि० अ० [सं० मंडल ] मरल बाँधकर छा जाना। चारों मंडलनत्य-संज्ञा पुं० [सं० ] गति भेदानुसार नृत्य का एक भेद । ओर से घेर लेना। उ०–झाँश ताल सुर मररे रंग हो हो वृत्त की परिधि के रूप में घूमते हुए नाचना । होरी।-सूर। मंडलपत्रिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] रक पुनर्नवा लाल गवह पूरना ।