पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३२०

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मंत्रकार मंत्रसंस्कार द्वारा उसकी स्तुति आदि की जाती है, वे आध्यास्मिक कह- मंत्रदर्शी-वि० [सं० मंत्रदर्शिन् ] वेदवित् । वेदश । लाते है। मंत्रों के विषय प्राय: स्तुति, आशीर्वाद, शपथ, | मंत्रदीधिति-संज्ञा पुं० [ मे० ] अग्नि । अभिशाप, परिदेवना, निंदा आदि होते है । मीमांसा के अनु- ! मंत्रम-मंज्ञा पुं० [सं० ] चाक्षुष मन्वंतर के इंद्र का नाम । सार वेदों का वह वाक्य जिसके द्वारा किसी कर्म के करने | मंत्रधर-संज्ञा पुं० [सं०] मंत्री। की प्रेरणा पाई जाय, मंत्रपद वाच्य है। मीमांसक मंत्र को मंत्रपति-मंशा पुं० [सं०] मंत्र का देवता । मंत्र का अधिष्ठाता ही देवता मानते हैं और उसके अतिरिक्त देवता नहीं मानते। .. देवता। वैदिक मंत्र गद्य और पच दोनों रूपों में पाए जाते हैं। मंत्रपूत-वि० [सं०] जो मंत्र द्वारा पवित्र किया गया हो। गद्य को यशु और पद्य को ऋचा कहते हैं। जो पच गाए मंत्रवीज-संज्ञा पु० [सं० 1 मूल मंत्र । जाते हैं, उन्हें साम कहते हैं। इन्हीं तीन प्रकार के मंत्रों मंत्रमूल-संज्ञा पुं० [सं०] राज्य । द्वारा यज्ञ के सब कर्म संपादित होते हैं। मंत्रयान-संज्ञा पुं० [सं०] बौद्धधर्म की एक शाखा जिसका प्रचार (३) वेदों का वह भाग जिसमें मंत्रों का संग्रह है। संहिता। तिब्बत, नेपाल, भूटान आदि में है। इस संप्रदाय के ग्रंथों (४) तंत्र के अनुसार वे शब्द वा वाक्य जिनका जप भित्र में अनेक तंत्र ग्रंथ हैं जिनके अनुसार तांत्रिक उपासना होती मिन देवताओं की प्रसन्नता वा भिन्न भित्र कामनाओं की है। इस मत के प्रधान आचार्य सिमा नागार्जुन माने जाते सिद्धि के लिये करने का विधान है। ऐसा शब्द या वाक्य हैं। इसे वज्रयान भी कहते है। जिसके उच्चारण में कोई दैवी प्रभाव या शक्ति मानी जाती ! मंत्रयोग-संज्ञा पुं० [ मं० ] मंत्र का प्रयोग । मंत्र पढ़ना। हो।(इन मंत्रों में एकाक्षर मंत्र जो अविसष्टार्थ हों, बीज मंत्रवादी-वि० [सं० मंत्रयादिन् । (१) मंत्रज्ञ । (२) जो मंत्रो. मंत्र कहलाते है)। वारण करे। क्रि० प्र०-पढ़ना। मंत्रविद्-वि० [सं०] (१) मंत्र । (२) वेदज्ञ । (३) जो राज्य यौ---मंत्र यंत्र वा गंत्र मंत्र जादू टोना । उ०-डाकिनी के रहस्यों को जानता हो। साकिनी खचर भूचर यंत्र मंत्र भंजन प्रबल कल्मषारी। मंत्रविद्या-संशा स्त्री० [सं०] तंत्रविद्या । भोजविद्या | मंत्रशास्त्र। -तुलसी। तंत्र। मंत्रकार-संज्ञा पुं० [सं०] मंत्र रचनेवाला ऋषि । । मंत्रसंस्कार-संज्ञा पुं० [सं०] (1) विवाह परकार । मंत्रकृत-वि० [सं०] (१) परामर्शकारी। सलाह देनेवाला।। यौ०-मंत्र संस्कारकृत्-विवाह करनेवाला । विवाहित । (२) दौत्यकारी। (२) तंत्रानुसार मंत्रों का वह संस्कार जिसके करने का संज्ञा पुं० [सं० ] वेदमंत्र रचनेवाला ऋषि । मंत्रकार। विधान मंत्र ग्रहण के पूर्व है और जिसके बिना मंत्र फलप्रद मंत्रगूड-संज्ञा पुं॰ [सं० ] गुप्तचर । नहीं होते। ऐसे संस्कार दम है जिनके नाम ये है-- मंत्रगृह-संज्ञा पुं० [सं०] वह स्थान जहाँ मंत्र वा सलाह की (१) जनन-मंत्र का मातृका यंत्र से उद्धार करना । इसे जाती हो । परामर्श करने के लिये नियत स्थान । मंत्रोद्धार भी कहते हैं। मंत्रजल-संज्ञा पुं० [सं०] मंत्र से प्रभावित किया हुआ जल । (२) जीवन-मंत्र के प्रत्येक वर्ण को प्रणव से संपुट करके मंत्रजिद-संज्ञा पुं० [सं०] अग्नि । सौ सौ बार जपना। मंत्र-वि० [सं०] (१) मंत्र जाननेवाला । (२) जिसमें परा (३) ताइन-मंत्र के प्रत्येक वर्ण को पृथक पृषक लिखकर मर्श देने की योग्यता हो । जो अच्छा परामर्श देना जानता लाल कनेर के फूल से वायु वीज पढ़ पढ़कर प्रत्येक वर्ण को हो। (३) भेद जाननेवाला। सौ सौ बार मारना। संज्ञा पुं० (१) गुप्तचर । (२) घर । दूत । (१) बोधन-मंत्र के लिखे हुए प्रत्येक वर्ण पर" बीज से मंत्रण-संश पुं० [सं०] परामर्श । मंत्रणा। सलाह । राय। सौ सौ बार लाल कनेर के फूल से मारना। मशवरा। (५) अभिषेक-मंत्र के प्रत्येक वर्ण को लाल कनेर के फूल मंत्रणा-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) परामर्श । सलाह मशवरा । से " धीज द्वारा अभिमंत्रित कर यथाविधि अभिषेक करना। क्रि० प्र०—करना ।—देना ।—लेना । (६) विमलीकरण-सुषुम्ना नादी में मनोयोगपूर्वक मंत्र (२) कई आदमियों की सलाह से स्थिर फिया हुआ मत । की रिता करके मंत्रों के प्रत्येक वर्ण के ऊपर अश्वत्थ के मंतम्य। पल्लव से ज्योति मंत्र द्वारा जल सींचना । मंत्रद-वि० [सं०] परामर्श देनेवाला । (७) अय्यापन-ज्योतिर्मंत्र द्वारा सोने के जल, कुशोदक या संज्ञा पुं० मंत्र देनेवाला, गुरु । पुरुषोदक से मन्त्र के वर्णों को सींचना ।