पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३२२

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मंदग २६१३ मंदानि मंदग-वि० [सं०] [स्त्री० मंदगा ] धीमा चलनेवाला । मक होती है और पानी में बहुत दिनों तक रहने पर भी खराब संज्ञा पुं० महाभारत के अनुसार शफ द्वीप के अंतर्गत चार नहीं होती। यह खेरी, गोरखपुर, अजमेर और मध्यप्रांत के जनपदों में से एक। जंगलों में होती है। इसके बीज बरसात में बोए जाते हैं। मंदगति-संज्ञा स्त्री० [सं० ] ग्रहों की गति की वह अवस्था जब मंदसान--संज्ञा पुं० [सं०] (1) अमि । (२) प्राण । (३) निद्रा। ___ वे अपनी कक्षा में घूमते हुए सूर्य से दूर निकल जाते हैं। मंदसानु-संज्ञा पुं० [सं०] (७) स्वम । (२) जीव ।। मंदट-संज्ञा पुं० [सं०] देवदाह । मंदा-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) सूर्य की यह संक्रांति जो उत्तरा मंदता-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) आलस्य । (२) धीमापन । (३) फल्गुनी, उत्तराषाढा, उत्तराभाद्रपद और रोहिणी नक्षत्र में क्षीणता । पड़े। ऐसी संक्रांति में संक्रमणानंतर तीन देर तक पुण्य मंदधूप-संज्ञा पुं० [हिं० मंद+धूप ] काला धूप । काला रामर । काल होता है। (२) बाल्लीकरंज । लताकरंज। वि० [सं० मंद ] [स्त्री० मंदी ] (1) धीमा । मंद । मंदपरिधि-संज्ञा स्त्री० [सं०] मंदोच वृत्ति। क्रि०प्र०—करना ।—पड़ना ।—होना । मंदफल-संज्ञा पुं० [सं०] गणित ज्योतिष में ग्रहगति का एक भेद। (२) ढीला । शिथिल । (३) सामान्य मूल्य से कम मूल्य मंदभागी-वि० [सं०] अभागा । हतभाम्य । पर बिकनेवाला । जो महँगा न हो। जिसका दाम योगा मंदभाग्य-वि० [सं०] दुर्भाग्य । अभाग्य । हो। सस्ता । उ०-मधुकर याँ नाहिन मन मेरो । गयो जु मंयंती-संशा स्त्री० [सं० ] दुर्गा। संगनंद नंदन के बहुरि न कीन्हीं फेरो। उन नैनन मुसु- मंदर-संज्ञा पुं० [सं०] (1) पुराणानुसार एक पर्वत जिससे देव कानि मोल लै कियो परायो मेरो ।जाके हाथ परेउ ताही ताओं ने समुद्र को मथा था। (२) मंदार । (३) स्वर्ग । को बिसरेउ बास बसेरो। को सीखै ता विनु सुनु सूरज (1) मोती का वह हार जिसमें आठ वा सोलह लड़ियाँ हों। योगज काहे केरो। मंदो परेउ सिधाउ अनत ले यहि निर्गुण (५) मुकुर । ६षण । आईना । (३) कुशद्वीप के एक पर्व मत मेरो।--सूर। (४) खराब । निकृष्ट । उ०-योग वियोग का नाम । (७) वृहत्संहिता के अनुसार प्रासादों के बीस भोग भल मंदा। हित अनहित मध्यम भ्रमफंदा ।-सुलसी। भेदों में दूसरा । वह प्रासाद जो छकोना हो और जिसका (५) बिगड़ा हुआ । नष्ट । भ्रष्ट । विस्तार तीस हाथ हो। इसमें दस भमिकाएँ और अनेक | मंदाकिनी-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) पुराणानुसार गंगा की वह केंगूरे होते हैं। (८) एक वर्ण वृत्त का नाम जिसके प्रत्येक धारा जो स्वर्ग में है। ब्रह्मवैवर्त के अनुसार इसकी धार एक चरण में एक भगण (I) होता है। अयुत योजन रूबी है। (२) आकाश गंगा । (३) एक छोटी वि० (1) मंद । धीमा । (२) मठा। नदी का नाम जो हिमालय पर्वत में उत्सर काशी में बहती मंदरगिरि-संज्ञा पुं० [सं०] (1) मंदराचल पर्वत । (२) एक है और भागीरथी में मिलती है। (४) महाभारत आदि के छोटे पहार का नाम जो मुंगेर के पास है। इस पर्वत पर अनुसार एक नदी का नाम जो चित्रकूट के पास बहती है। हिंदुओं, जैनों और बौद्धों के अनेक मंदिर हैं और सीताकुंद : इसे अब पयस्विनी कहते हैं। उ०-राम कथा मंदाकिनी नामक प्रसिद्ध गरम जल का कुंर है। चित्रकूट चित चारु । तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर मँदा-वि० [सं० मंदर मि० पं. मदरा-नाटा ] [ सी० मैंदरी | बिहारु । -तुलसी । (५) हरिवंश के अनुसार द्वारका के नाटा । ठिंगना । उ-त्रियाँ नाटी मैंदरी और मदों से भी पास की एक नदी का नाम । (६) संक्रांति के सात भेदों जियादः मजबूत होती हैं। शिवप्रसाद । में से एक । (७) बारह अक्षरों की एक वर्णवृत्ति जिसके प्रत्येक मंदरा-संशा पुं० [सं० मंडल ] एक प्रकार का बाजा । उ० घरण में दो नगण और दोरगण होते हैं (1,151S,sis) | मंदरा तवल सुमरु खंजरी ढोलक धामक ।-सूदन । मंदाक्रांता-संज्ञा स्त्री० [सं०] सत्रह अक्षरों के एक वर्णवृत्त का मैंदरी-संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] खाजे की जाति का एक पेदा इसकी नाम जिसके प्रत्येक चरण में मगण, भगण, नगण और तगण लकड़ी मजबूत होती है और खेती के सामान तथा गावियाँ और अंत में दो गुरु होते हैं। अर्थात् ५, ६, ७, ८ और ९ बनाने के काम आती है। छाल से चमका सिझाया जाता तथा १२ और १३ अक्षर लघु और शेष गुरु होते हैं । (sss है, फल खाए जाते हैं और पत्तियाँ पशुओं के चारे के काम sun ssssss) उ.-मेरी भक्ति सुलभ तिहि को शुन्छ भाती हैं। इसी की जाति का एक और पेव होता है जिसे है बुद्धि जाकी। मेंबली कहते हैं। इसकी छाल पर, जब वे छोटे रहते हैं, कोटे मंदाग्नि-संशा स्त्री० [सं०] एक रोग जिसमें रोगी की पाचनशक्ति होते है पर ज्यों ज्यों बना होता है, छाल साफ होती जाती मंद-पर जाती है और अन नहीं पा सकती । हारीत है। इसकी लकड़ी की तौल प्रति घन फुट २०से ३० सेर | का मत है कि मंदानि वात और श्लेष्मा से होती है। माधव