पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३२३

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मंदान मउरोराई निदान के मत से कफ की अधिकता से मंदाग्नि होती है। मंदोदरी-संशा स्त्री० [सं०] रावण की पटरानी का नाम । यह इस रोग में अमन चने के अतिरिक्त रोगी का सिर और मय की कन्या थी। उदर भारी रहता है, उसे मतली आती है, शरीर शिथिल , वि० सूक्ष्म पेटवाली। रहता है और पसीना आता है । यह रोग दुःसाध्य माना मंद्र-संज्ञा पुं० [सं०] (1) गंभीर धनि । (२) संगीत में स्वरों जाता है। बदहजमी । अपच । के तीन भेदों में से एक । इस जाति के स्वर मध्य से अवरो. मंदान-संशा पुं० [?] जहाज़ का अगला भाग । (ल.) हित होते हैं। इसे उदारा वा उतार भी कहते हैं। (३) मंदानल-संज्ञा पु० [सं० ] मंदाग्नि । हाथी की एक जाति का नाम । (४) मृदंग। मंदार-संशा पुं० [सं०] (1) स्वर्ग के पांच वृक्षों में से एक देव वि० (१) मनोहर । सुदर । (२) प्रसन्न । हृष्ट। (३) वृक्ष । (२) फरहद का पेड़। नहसुत । (३) आफ । मदार । गंभीर । (४) धीमा । (शब्द आदि) (४) स्वर्ग। (५) हाथ । (६) धतूरा । (७) हाथी । (८) मंद्राज-संज्ञा पुं० [सं० मंद्र ] [ स्त्री० मंदाजिन ] दक्षिण का एक हिरण्यकशिपु के एक पुत्र का नाम । (९) मंदराचल पर्वत। प्रधान नगर जो पूर्व घाट के किनारे पर है। इस नाम से (१०) विंध्य पर्वत के किनारे के एक तीर्थ का नाम । दक्षिण का पूर्वीय प्रदेश भी क्यात है। मंदारमाला-संशा स्त्री० [सं०] बाइस अक्षरों की एक वर्णवृत्ति मंद्राजी-वि० [हिं० मंद्राज ] (1) मंदाज में उत्पन्न वा मंदाज का का नाम जिसके प्रत्येक चरण में सात तगण और अंत में रहनेवाला । (२) मंदाज संबंधी । (३) मंद्राज का बना एक गुरु होता है। उ०-मेरी कही मान ले मीत तू जन्म हुगा । जैसे, मंदाजी दुपट्टा । जावं वृथा आपको तार ले। मंसना-क्रि० स० सं० मनम् ] (1) इच्छा करना । मन में मंदारपष्टी-संशा भी01 सं० एकात जो माघ शुक्ल षष्ठी के संकल्प करना । (२) दे० "मनसना"। दिन पड़ता है। मंसब-संशा पु० [अ०] (1) पद । स्थान । पदवी । (२) काम । मंदालसा-संशा स्त्री० दे० "मदालसा"। फर्तव्य । (३) अधिकार । मंदिकुक्कुर-संपुं० [सं०] एक प्रकार की मछली। मंसा-संज्ञा स्त्री० [सं० मनम् ] (1) इच्छा । चाहना । अमिरुचि । मंदिर-संज्ञा पुं॰ [सं०] (1) वासस्थान । (२) घर । (३) देवा उ.-कह गिरधर कविराय केलि की रही न मसा।-गि. लय । (४) नगर । (५) शिविर । (६) शालिहोत्र के अनु दा०। (२) संकल्प । (३) आशय । अभिप्राय । सार घोड़े की जाँघ का पिटला भाग। (७) समुद्र । (८) विशेष—यह श द संस्कृत 'मनस्' से निकला है; पर कुछ एक गंधर्व का नाम । लोग भ्रमवश से अरबी 'मंशा' से निकला हुआ समझते हैं। मंदिग्पशु-संज्ञा पुं० [सं०] बिल्ली। मंसूख-वि० [अ० ] ख़ारिज किया हुआ। रद । काटा हुआ। मंदिरा-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) घोषसाल । अश्वशाला। (२) मंसूबा-संज्ञा पुं० दे० "मनसूया"। मजीरा नामक बाजा। म-संशा पुं० [सं०] (8) शिव । (२) चंद्रमा (३) ब्रह्मा । (५) मंदिल*1-संशा पुं० [सं० मंदिर ] (१) घर । (२) देवालय। (३) यम। (५) समय । (६) विष । जहर । (७) मधुसूदन । प्रत्येक रुपए या थान आदि के पीछे दाम में से काटा मट-सर्व० दे० "मैं"। जानेवाला वह अल धन जो किसी मंदिर या धार्मिक कृत्य मइका-संज्ञा पुं० दे० "मायका" या "मैका"। के लिये दूकानदार दाम देते समय काटते हैं। , माइमंत*-वि० [सं० मदमत्त, प्रा. मधमत्त] मदोन्मत्त । मतवाला । क्रि० प्र०-कटना।-काटना । दे. "मैमंत" । उ०-जोबन अस मइमत न कोई । नर्वेद मंदी-संज्ञा स्त्री० [हिं० मंद ] भाव का उतरना । महंगी का हसति जउ आँकुप होई ।--जायसी। उलटा । सम्ती। माझ्या -संज्ञा स्त्री० दे. "मैया"। मंदीर-संज्ञा पुं० [सं०] (1) एक ऋषि का नाम । (२) मंजीर। मई-संज्ञा स्त्री० [सं० मयी] (1) मय जाति की स्त्री। (२) ऊँटनी । मंदील-संज्ञा पुं० [हिं० मुंड ] एक प्रकार का सिरबंद जिस पर संशा स्त्री० [ अं० मे ] अँगरेजी पाँचवाँ महीना जो अप्रैल के काम बना रहता है। उपरांत और जून से पहले आता है। यह सदा ३१ दिन मंदुरा-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) अश्वशाला । घोड़साल। (२) का होता है और प्रायः बैशाख में पड़ता है। बिछाने की घटाई। । मउरा-संशा पुं० [सं० मौलि ] फूलों का बना हुआ वह मुकुट या मंदुरिक-संज्ञा पुं० [सं० ] साईस । सेहरा जो विवाह के समय दूल्हे के सिर पर पहनाया जाता मंदोच्च-संक्षा पुं० [सं०] ग्रहों की एक गति जिससे राशि आदि है। मौर । का संशोधन करते हैं। मउरछोराई-संज्ञा स्त्री० [हिं० मउर+छुड़ाई ] (1) विवाह के