पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३२४

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मउरी २६१५ मकर उपरांत मौर खोलने की रस्म । (जब घर कोहबर में पहुँच मकड़ियाँ इतनी बड़ी होती है कि छोटे मोटे पक्षियों तक का जाता है, तब ससुराल की सियाँ उसको कुछ देकर मौर शिफार कर लेती है। मकड़ियाँ प्राय: उछलकर एक स्थान उतार लेती हैं और उसे दही गुरु खिलाकर कुछ नगद से दूसरे स्थान पर जाती है। इसकी कुछ प्रसिद्ध जातियों देकर विदा करती है।) (२) वह धन जो वर को मौर के दाम इस प्रकार है-जंगली मकड़ी, जल मकड़ी, राम- खोलने के समय दिया जाता है। मकड़ी, कोष्टी ककड़ी, जहरी मकड़ी आदि। (२) मकड़ी के मउरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० मौर ] एक प्रकार का काग़ज़ का बना विष के सर्श से शरीर में होनेवाले दाने जिनमें जलन होती हुभा तिकोना छोटा मौर जो विवाह के समय कन्या के सिर है और जिनमें से पानी निकलता है। पर रखा जाता है। मकतब--संज्ञा पुं० [अ० ] छोटे बालकों के पढ़ने का स्थान । पाठ- मउलसिरी-संज्ञा स्त्री० दे. "मौलसिरी"। शाला । घटसाल । मदरया । मउसी-संज्ञा स्त्री० [हिं० मासी माता की बहिन । मासी। , मकता-संज्ञा पुं० [सं० मगध ] मगध देश । (आईन अफथरी में मकई संज्ञा स्त्री० [हिं० मका ] ज्वार नामक अन्न । मगध का यही नाम दिया गया है।) मकड़ा-संज्ञा पुं० [हिं० मकड़ा ] बड़ी मकड़ी। मक दूर-संज्ञा पुं० [अ० ] सामर्थ्य । ताकत । शक्ति। संज्ञा पुं० [ देश० ] एक प्रकार की घास जो बहुत शीघ्रता मनातीस-संज्ञा पुं० [अ० ] चुवक परथर । से बढ़ती है। यह पशुओं और विशेषतः घोड़ों के लिये बहुत | मफफूल-वि० [अ० ] रेहन किया हुआ। गिरों रखा हुआ। पुष्टिकारक होती है। यह दस बरस तक सुखाकर रखी जा मय बग-संज्ञा पुं० [अ० ] वह इमारत जिसमें किसी की लाश सकती है। कहीं कहीं गरीब लोग इसके बीज अनाज की गाड़ी गई हो । रौजा । मबार । समाधि। भाँति खाते हैं । मधाना । वमकरा । मनसा । म.बृज़ा-वि० [अ० करता किया हुआ । अधिकृत । मकड़ी-संज्ञा स्त्री० [सं० मर्कटक ] (१) एक प्रकार का प्रसिद्ध : मकरंद-संज्ञा पुं० [सं०] (1) फूलों का रस जिग्न मधुमक्खियाँ कीया जिसकी सैकड़ों हजारों जातियाँ होती है और जो और भौरे आदि चूमने हैं । (२) एफ वृत्त का नाम जिसके प्रायः सारे संसार में पाया जाता है । इसका शरीर दो प्रत्येक चरण में सात जगण और एक यगण होता है। भागों में विभक्त हो सकता है। एक भाग में सिर और इसको 'राम' 'माधवी' और 'मंजरी' भी कहते हैं। छाती तथा दूसरे भाग में पेट होता है । साधारणत: इसके उ.-जुलोक यथामति वेद पर आगम श्री दश आठ आठ पैर और आठ आँखें होती हैं। पर कुछ स्कदियों को स्याने । (३) ताल के ६० मुख्य भेदों में से एक । (४) केवल छ', कुछ को चार और किसी किसी को केवल दो ही कुंद का पौधा । (५) किंजल्क । फूल का केसर । आँखें होती हैं। इनकी प्रत्येक टाँग में प्राय: सात जोड़ होते मकर-संज्ञा पुं० [सं० ] (1) मगर या घड़ियाल नामक प्रvि हैं। प्राणिशास्त्र के ज्ञाता इसे कीट वर्ग में नहीं मानते; जलजंतु। यह कामदेव की पूजा का चिह्न और गंगाजी तथा क्योंकि कीटों को केवल चार पैर और दो पंख होते हैं। वरण का वाहन माना जाता है। (२) बारह राशियों में से कुछ जाति की मकड़ियाँ विषली होती हैं और यदि उनके दसवीं राशि जिसमें उत्तरापाढा नक्षत्र के अंतिम तीन पाद, शारीर से निकलनेवाला तरल पदार्थ मनुष्य के शरीर से पूरा श्रवण नक्षत्र और धनिष्ठा के आरंभ के दो पाद है। इसे स्पर्श कर जाय, तो उस स्थान पर छोटे छोटे दाने निकल । पृष्ठोदय, दक्षिण दिशा का स्वामी, रुक्ष, भूमिचारी, शीतल आते हैं जिनमें जलन होती है और जिनमें से पानी निकल-' स्वभाव और पिंगल वर्णका, वैश्य, वात-प्रकृति और शिथिल ता है । कुछ मकड़ियाँ तो इतनी जहरीली होती हैं कि अंगोवाला मानते हैं। ज्योतिष के अनुसार इस राशि में कभी कभी उनके काटने से मनुष्य की मृत्यु तक हो जाती जन्म लेनेवासा पुरुष पर-स्त्री का अभिलाषी, धन उगाने- है। मकड़ी प्राय: परों में रहती है और अपने उदर से एक घाला, प्रतापशाली, यात चीत में बहुत होशियार, बुद्धिमान् प्रकार का तरल पदार्थ निकालकर उसके तार से घर के और वीर होता है । (३) फलित ज्योतिष के अनुसार एक कोनों आदि में जाल बनाती है जिसे जाला या झाला एन । (४) सुश्रत के अनुसार कीबों और छोटे जीवों का कहते हैं। उसी जाल में यह मक्खियाँ तथा दूसरे छोटे छोटे एक वर्ग। (५) कुबेर की नौ निधियों में से एक । (६) कीरे फंसाकर खाती है। दीवारों की संधियों आदि में यह अन शव आदि को निष्फल बनाने के लिये उन पर पका अपने शरीर से निकाले हुए चमकीले, पतले और पारदर्शी : जानेवाला एक प्रकार का मंत्र। (७) एक पर्वत का नाम । पदार्थ का घर बनाती है और उसी में असंख्य अंडे देती है। (4) एक प्रकार का म्यूह जिसमें सैनिक लोग इस प्रकार साधारणत: नर से मावा बहुत बड़ी होती है और संभोग खड़े किए जाते हैं कि उनकी समष्टि मकर के आकार की जान के समय मादा कभी कभी नर को खा जाती है। कुछ पड़ती है। (९) माघ मास । (10) मछली । उ.-श्रुति