पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३२७

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मकाल २६१८ मक्षिका मकल्लु-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का स्त्री-रोग जिसमें प्रसव के हो । (२) अनौचित्य या दोष की ओर ध्यान न देना। अनंतर प्रसूता स्त्री की नाभि के नीचे, पसली में, मूत्राशय दोप या पाप की उपेक्षा करके वह दोष या पाप कर डालना। में वा उसके ऊपर वायु की एक गाँठ सी पद जाती है और नाक पर मक्खी न बैठने देना=किसी को अपने ऊपर एह- पीड़ा होती है। इस रोग में पकाशय फूल जाता है और सान करने का तनिक भी अवसर न देना । अभिमान के मूत्र रुक जाता है। कारण किसी के सामने न दबना । मक्खी की तरह निकाल मका-संशा पुं० [अ० ] अरब का एक प्रसिद्ध नगर जहाँ मुहम्मद या फेंक देना=किसी को किसी काम से बिलकुल अलग साहब का जन्म हुआ था। यह मुसलमानों का सबसे बड़ा कर देना । किसी को किसी काम से कोई संबंध न रहने देना। तीर्थ-स्थान है। हज करने के लिये मुसलमान यहीं जाते हैं। मक्खी छोडना और हाथी निगलना छोटे छोटे पापों या संशा पुं० [ देश. ] एक प्रकार की ज्वार । बड़ी जोहरी । अपरायों से बचना और बड़े बड़े पाप या अपगध करना। मकई । वि० ० "जवार"। मकावी मारना या उदाना-बिलकुल निकम्मा रहना । कुछ मक्कार-वि० [अ० ] मकर करनेवाला । फरेबी । कपटी । छली। भी काम धंधा न करना। मक्कारी-संज्ञा स्त्री० [अ० ] छलाधोखेबाजी। दगाबाज़ी। फरेव । (२) मधुमक्वी । मुमाखी । (३) बंदूक के अगले भाग में मकी-संज्ञा स्त्री० दे० "मक्का"। वह उभरा हुआ अंश जिसकी सहायता से निशाना साधा मक्ख न-संहा। पुं० [सं० मन्थ ] दूध में की, विशेषतः गौ या जाता है। भैस के दूध में की, वह चरबी या सार भाग जो दही या | मक्खीचूस-संज्ञा पुं० [हिं० मवावी+चूमना ] धी आदि में पड़ी मठे को मथने पर अथवा और कुछ विशिष्ट फियाओं से हुई मक्खी तक को चूस लेनेवाला व्यक्ति । बहुत अधिक निकाला जाता है और जिसको तपाने से घी बनता है। कृपण । भारी कंजूस। वैधक में इये शीतल, मधुर, बलकारक, संग्राहक, कांति- मक्खीमार-संज्ञा पुं० [हिं० मक्खा+मारना ] (१) एक प्रकार का वर्धक, ऑग्यों के लिये हितकर और सब दोषों का नाश बहुत छोटा जानवर जो प्रायः मक्खियाँ मार मारकर खाया करनेवाला माना है । नवनीत । नैन । करता है। (२) एक प्रकार की छड़ी जिसके सिरे पर चमड़ा मुहा०-कलेजे पर मक्खन मला जाना-शत्र को हानि दंग्य लगा होता है और जिसकी सहायता से लोग प्रायः मक्खियों कर शान्ति या प्रसन्नता होना । कलेज। ठंदा होना। उड़ाते हैं। (३) बहुत ही घृणित व्यक्ति । मक्खा -संज्ञा पुं० [हिं० मकवा ] (1) बड़ी जाति की मक्खी। (२) मक्खीलेट-संज्ञा स्त्री • [हिं० मक्खी+लेट ? ] एक प्रकार की जाली नर मक्खी । | जिसमें बहुत छोटी छोटी बूटियाँ होती हैं। मक्खी -संक्षा स्त्री० [सं० मक्षिका ] (1) एक प्रसिद्ध छोटा कीड़ा मकदर-संा पुं० [अ० ] (1) सामर्थ्य । ताक़त । शक्ति। बल। जो प्रायः सारे संसार में पाया जाता है और जो साधारणतः जोर । जैसे, यह अपने अपने मकदूर की बात है। घरों और मैदानों में सब जगह उड़ता फिरता है। इसके मुहा०-फतूर से बाहर पाँच रखना सामर्थ्य या योग्यता से छ:पैर और दो पर होते हैं। मक्षिका। बढ़कर काम करना। विशेष-मक्खी प्रायः कूड़े कतवार और सड़े गले पदार्थों पर | (२) वश । काबू । बैठती है, उन्हीं को खाती और उन्हीं पर बहुत से अंडे देती मुहा०दर चलना=चस चलना । काबू चलना । है। इन अंडों में से बहुधा एक ही दिन में एक प्रकार का (३) समाई । गुंजाइश । (४) दौलत । धन । पूंजी। दोला निकलता है, जो बिना सिर पैर का होता है। यह यौ०- दूरवालाधनवान् । संपन्न । अमीर । दोला प्राय: दो सप्ताह में पूरा बढ़ जाता है और तब कि मक्सी-संज्ञा पुं॰ [देश॰] (1) वह सब्जा घोड़ा जिस पर काले सूग्वे स्थान में पहुँचकर अपना रूप परिवर्तित करने लगता फूल पा दाग हो । (२) बिलकुल काले रंग का घोड़ा। है। प्रायः १०-१२ दिन में वह साधारण मक्खी का रूप : मक्ष-संज्ञा पुं० [सं०] (१) अपने दोप को छिपाना । अपना ऐब धारण कर लेता है और इधर उधर उड़ने लगता है। मक्खी जाहिर न होने देना । (२) कोध । गुस्सा । (३) समूह। के पैरों में से एक प्रकार का तरल और लसदार पदार्थ मक्षग-संज्ञा पुं० [सं० मत्स्यदृग ] एक प्रकार का मोती जिसके निकलता है, जिसके कारण वह चिकनी से चिकनी चीज विषय में लोगों की यह धारणा है कि इसके पहनने से पुष पर पेट ऊपर और पीठ नीचे करके भी चल सकती है। । मर जाता है। यौ०-मक्खीचूस । मक्खीमार । मक्षवीर्य-संज्ञा पुं० [सं०] पियार नाम का वृक्ष । मुहा०-जीती मक्खी निगलना=(१) जान बूझकर कोई ऐगा | मक्षिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) साधारण मक्सी। (२) शहद अनुचित कृत्य या पाप करना जिसके कारण पीछे से हानि की मक्खी। ! मदर