पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३२८

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मक्षिकामल २६१९ मगण मक्षिकामल-संज्ञा पुं॰ [सं०] मोम । मयसूस-वि० [अ०] जो किसी विशिष्ट कार्य के लिये अलग कर मक्षिकासन-संशा पुं० [सं०] शहद की मक्खी का छत्ता। । दिया गया हो। खास तौर पर अल्लग किया या बनाया हुआ । मख-संशा पुं० [सं० ] यज्ञ। मखस्वामी-संशा पुं० [सं० ] यज्ञ के स्वामी, विष्णु । मखज़न-संशा पुं० [अ० ] खज़ाना । भंडार । कोष। मखाना-संज्ञा पुं० दे. "ताल मखाना"। मखतूल-संक्षा पुं० [सं० महर्घ तूल ] काला रेशम । मखान-संशा पुं० [सं०] ताल मखाना । भएषतूली-वि० [हिं० मखतूल+ई (प्रत्य॰)] काले रेशम से बना मखालय-संज्ञा पुं० [सं०] यज्ञशाला । हुआ। काले रेशम का। मखी*-संशा पुं० [सं०] दे. "मक्वी" । मखत्राता-संशा पुं० [सं० मखत्रात ] (8) वह जो यज्ञ की रक्षा | मखेश-संज्ञा पुं॰ [देश॰] राजसूय यज्ञ । करता हो। (२) रामचंद्र जिन्होंने विश्वामित्र के यज्ञ की | भरखोना-संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का कपड़ा । उ०- रक्षा की थी। कफवा चीर मखोना लोने । मोति लाग औ छापे सोने । मरषदम-संशा पुं० [40] (1) वह जिसकी खिदमत की जाय । -जायसी। (२) स्वामी। मालिक। मग-संज्ञा पुं० [सं० मार्ग प्रा० मग्ग ] (1) रास्ता। राह । वि० सेवा के योग्य । पूज्य । मुहा०—के लिये दे. "घाट" और "रास्ता"। मखद्वेषी-संज्ञा पुं० [सं० मम्वद्वेपिन् । राक्षस । संज्ञा पुं० [सं०] (1) एक प्रकार के शाकद्वीपी ब्राह्मण । मखधारी-संज्ञा पुं० [सं० मग्वधारिन् ] यज्ञ करनेवाला । वह जो (२) मगह देश । मगध । उ०—कासी मग सुरसरि कवि यज्ञ करता हो। नासा । मरु मारव महिदेव गवासास-तुलसी । (३) मगध मखन*-संज्ञा पुं० दे. "मायन"। का निवासी । (४) पिप्पलीमूल । मखना-संशा पुं० दे० "मकुना" । । मगज-संज्ञा पुं० [अ० मन्ज ] (1) दिमाग । मस्तिष्क । मरखनाथ-संज्ञा पुं० [सं०] यश के स्वामी, विष्णु । यौ०-मगजपची। मखनिया -संज्ञा पुं० [हिं० मक्खन+श्या (प्रत्य० ] मक्खन बनाने । मुहा०-मगज खौलना-(१) कार्य की अधिकता के कारण या बेचनेवाला। दिमाग का कुछ काम न करना । (२) क्रोध को मारे दिमाग वि. जिसमें से मक्खन निकाल लिया गया हो । जैसे, खराब होना । (३) दिमाग में गरमी आ जाना । पागल हो मखनिया दूध, मखनिया दही । जाना । मगज स्वाना-बक कर तंग करना । मगज उपना या मखनी-संशा स्त्री० [हिं० मक्खन ] प्रायः एक बालिश्त लंबी एक भिमाना-दुर्गध या शोर के कारण दिमाग खराब होना । प्रकार की मछली जो मप भारत की नदियों में पाई मगज उदाना-बहुत बक बककर दिक्क करना । मगज खाली जाती है। करना--दे. "मगज़ पचाना"। मगज़ चाटना-चक बक कर मखमय-संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु । तंग करना । मगज चलना--(१) बहुत अभिमान होना । मखमल-संज्ञा स्त्री० [ अं०] (१) एक प्रकार का बहुत बढ़िया ! (२) पागल होना । मगज़ पचाना=(१) बहुत अधिक दिमाग रेशमी कपका जो एक और से रूखा और दूसरी ओर से लड़ान। । सिर खपाना । (२) समझाने के लिये बहुत बकना। बहुत चिकना और अत्यंत कोमल होता है। इस ओर छोटे (२) गिरी । मींगी। गूदा। छोटे रेशमी रोएँ भी उभरे रहते हैं। (२) एक प्रकार की मगजचट-संज्ञा पुं० [हिं० मग ज+चाटना ] वह जो बहुत कता रंगीन दरी जिसके बीचोबीच एक गोल चंदोआ बना हो। बकवादी । रहता है। मगजचट्टी-संज्ञा स्त्री० [हिं० मगज+चाटना ] यकवाद । बकबक । मखमली-वि० [अ०मखमल+ (प्रत्य॰)] (1) मखमल का बना मगजपची-संज्ञा स्त्री० [हिं० मगज+पचाना ] किसी काम के हुआ। जैसे, मखमली टोपी । (२) मखमल का सा। लिये बहुत दिमाग लड़ाना । सिर खपाना । मखमल की तरह का । जैसे, मखमली किनारे की धोती। मगजी-संशा स्त्री० [ देश० ] कपड़े के किनारे पर लगी हुई पतली मखमित्र--संज्ञा पुं० [सं०] विष्णु । गोट। महराज-संशा पुं० [सं०] यशों में श्रेष्ठ, राजसूय यज्ञ । मगण-संशा पुं० [सं०] कविता के आठ गणों में ये एक जिसमें मखलूक-संशा पुं० [अ० ] ईश्वर की सृष्टि । परमेश्वर के बनाए ३ गुरु वर्ण होते हैं। लिखने में इसका स्वरूप यह है-ss । हुए प्राणी। इसका छैद के आदि में आना शुभ माना जाता है। कहते मखवस्क्य -संज्ञा पुं. दे. “याशवस्क्य"। हैं कि इसका देवता पृथ्वी है और यह लक्ष्मीदाता है। मखशाला-संक्षा स्त्री० [सं०] यज्ञ करने का स्थान । यज्ञशाला।। जैसे, आमोदी, काकोली, दीवाना।