पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३३०

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मघवाजित् मच्छ चक्रवर्तियों में से एक । (३) पुराणानुसार सात द्वापर के क्रि० ०० "मचकना" 130-यह सुनि हसत मश्चत भ्यास का नाम । (४) पुराणानुसार एक दानव का नाम । अति गिरधर डरत देखि अति नारि--सूर । मधवामित्-संहा पुं० [सं० ] रावण का बड़ा पुत्र इंद्रजित जिसने | मचरंग-संशा पुं० [ देश० ] किलकिला पक्षी। इंद्र को जीत लिया था। मेघनाद । मचऋक-संशा पुं० [सं०] (1) महाभारत के अनुसार एक यक्ष मघवान-संज्ञा पुं० [सं० मघवन् ] इंद्र। (दि.) का नाम । (२) कुरुक्षेत्र के पास का एक पवित्र स्थान मघवाप्रस्थ-संज्ञा पुं॰ [सं०] इंद्रप्रस्थ नामक प्राचीन नगर । उ. जिसकी रक्षा उक्त यक्ष करता है। फिरि आए हस्तिनपुर पारथ मघवाप्रस्थ बसायो। सूर। मचर्चिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] उत्तमता । श्रेष्ठता। मघवारिपु-संसा पुं० [हिं० मधवा+रिपु-शत्रु ] इंद्र का शत्रु, वि. जो सबसे उत्तम हो । सर्वश्रेष्ठ । मेघनाद। मचल-संशा स्त्री० [हिं० मचलना ] मचलने की क्रिया या भाव। मघा-संहा सी० [सं०] (1) अभिनी आदि सत्ताईस नक्षत्रों में मचलना-कि० अ० [ अनु० किमी चीज़ को लेने अथवा न देने से दसवाँ नक्षत्र जिसमें पाँच तारे है । यह चूहे की जाति के लिये जिद बाँधना । हठ करना । अबना । (विशेषतः का माना जाता है और इसके अधिपति पितृगण कहे गए बालकों अथवा स्त्रियों के विषय में बोलते हैं।) हैं। जिस समय सूर्य इस नक्षत्र में रहता है, उस समय संयो० कि०--जाना।-पहना। खूब वर्षा होती है और उस वर्षा का जल बहुत अच्छा | मचला-वि० [हिं० मचलना अ० पं० मचला) जो बोलने के अवसर माना जाता है । उ०—(क) मनहुँ मघा-जल उमगि उदधि पर जान बूझकर चुप रहे । अनजान बननेवाला । रुष चले नदी नद नारे।-तुलसी। (ख) दस दिसि रहेमचलाना-क्रि० अ० [ अनु० ] के मालूम होना । जी मतलाना । बान नभ छाई । मानहुँ ममा मेघ झरि लाई।-तुलसी। ओंकाई आना। (ग) मघा मकरी, पूर्वा डाँस । उत्तरा में सबका नास। क्रि० स० किसी को मचलने में प्रवृत्त करना। (कहावत) (२) एक प्रकार की ओषधि ।

  • +कि० अ० दे० "मचलना"।

मघाना-संज्ञा पुं० [ देश. ] एक प्रकार की बरसाती पास । वि. मचवा-संज्ञा पुं० [सं० मंच ] (1) खाट । पलंग । मंझा । (२) खटिया वा चौकी का पावा । (३) नाव । किश्ती। (क.) मघाभव-संशा पुं० [सं०] शुक्र ग्रह । मचाँगा-संज्ञा स्त्री. दे. "मचान"। मघारना--क्रि० स० [हिं० माघ+आरना (प्रत्य॰)] आगामी वर्षा मचान-संज्ञा स्त्री० [सं० मंच+आन (प्रत्य॰)] (1) चार खंभों पर ऋतु में धान बोने के लिये माघ के महीने में हल चलाना। बांस का हर बाँधकर बनाया हुआ स्थान जिम्म पर बैठकर मघोनी*-संशा स्त्री० [सं० मघवन् ] इंद्राणी । इंद्रपत्नी । शची। शिकार खेलते वा खेत की रखवाली करते हैं। मंच। मचक-संज्ञा स्त्री० [हिं० मचकना ] दबाव । बोझ । दाब । उ.--- (२) कोई ऊँची बैठक । (३) दीया रखने की टिकठी। बरजे दूनी है पद ना सकुचै न संकाय । टूटति कटि हुमची दीयट । मचक लचकि लचकि बचि जाय।--बिहारी मचाना-क्रि० स० [हिं० मचना का स० ) मचना का सकर्मक मचकना-क्रि० स० [मच मच से अनु.] किसी पदार्थ को, विशेषतः रूप । कोई ऐसा कार्य आरंभ करना जिसमें हुलन हो। एकड़ी आदि के बने पदार्थ को, इस प्रकार जोर से दबाना जैसे, दिलगी मचाना, होली मचाना । कि उसमें से मच मच शम्न निकले। उ.---यों मिचकी ! मचामच-संज्ञा स्त्री० [ अनु० ] किसी पदार्थ को दबाने से होने- मञ्चको न इहालचकै करिहाँमध मिचकी के।-भाकर वाला मचमच शब्द । हुमचने का शब्द ।। क्रि. १० इस प्रकार दबना जिसमें मध मच शब्द हो। मचिया--संज्ञा स्त्री० [सं० मंच+श्या (प्रत्य॰)] ऊँचे पायों की एक झटके से हिलमा । उ०—उचकि चलत हरि दचकनि दध- आदमी के बैठने योग्य छोटी पारपाई पलँगड़ी। पीढ़ी। कत मंच ऐसे मचकत भूतल के थल थल । -केशव। मचिलई *-संज्ञा स्त्री० [हिं० मचलना ] (1) मचलने का भाव । मचका-संशा पुं० [हिं० मचकना ] [स्त्री० अस्पा० मचकी ] (१) । (२) इतराहट । (३) मचलापन । झोंका । धक्का । झटका मचन । (२) झूले की पेंग। मधेरी-संशा स्त्री॰ [देश॰] बैलों के जूए के नीचे की लकदी। मचना-क्रि० अ० [ अनु] (1) किसी ऐसे कार्य का आरंभ या मचोला-संज्ञा पुं० [ देश० ] बंगाल की खारी दलदलों में होने प्रचलित होना जिसमें कुछ शोर-गुल हो । जैसे,—क्या वाला एक पौधा जिससे सुहागा बनता है। दिलगी मचा रखी है। (२) छा जाना । फैलना । जैसे,- मच्छ-संज्ञा पुं॰ [सं० मत्स्य, प्रा० मच्छ] (1) बड़ी मछली । होली मच गई। उ०-नागी निकसि ससिबदनी बिहसि (२) दोहे के सोलहवें भेद का नाम । इसमें ७ गुरु और तह को हमें गनत माही माह में मचति सी।-देव। ३४ लघु मात्राएँ होती है। (३) दे."मत्स्य" ।