पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३३२

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मजकूरी २६२३ मजा मजकूरी-संशा पुं० [फा०] (1) तालुकेदार । (२) चपरासी। जमाव । भीड़भार। जमघट । (३) वह मनुष्य जिसको चपरासी अपनी ओर से अपने मजमुना--वि० [अ० } इकट्ठा किया हुआ । जमा किया हुआ सम्मन वगैरह की सामील के लिये रख लेते हैं। (४) एकत्र किया हुआ। संगृहीत । बिना वेतन का चपरासी। (५) वह ज़मीन जिसका बँटवारा संज्ञा पुं० [अ01(1) एक ही प्रकार की बहुत सी चीज़ों न हो सके और जो सर्वसाधारण के लिये छोड़ दी। का समूह । जखीरा । खजाना । (२) एक प्रकार का इत्र गई हो। जो कई इत्रों को एक में मिलाकर बनता है। यह प्रायः मजदूर-संज्ञा पुं॰ [फा०] [स्त्री० मजदूरनी, मजदूरिन ] (1) बोझ जमा हुआ होता है। दोनेवाला । मजूरा । कुली । मोटिया । (२) हमारत आदि मज़मून-संशा पुं० [अ० ] (1) विष, जिस पर कुछ कहा या या कल-कारखानों में छोटा मोटा काम करनेवाला आदमी। जिग्वा जाय ।। जैसे, राज-मजदूर, मिलों के मजदूर । मुहा०-मज़मून बाँधना-किसी विषय अथवा नवीन विचार मज़दूरी-संशा स्त्री० [ फा ] (8) मज़दर का काम । बोझ ढोने ! को गद्य या पथ में लिखना । मजमून मिलना या लबना का या इसी प्रकार का और कोई छोटा मोटा काम । (२): दो अलग अलग लखका या कवियों के बाणत विषयों या खोन दोने या और कोई छोटा मोटा काम करने का पुरस्कार। भावा का मिल जाना। (३) वह धन जो किसी को कोई नियत कार्य करने पर (२) लेग्व। मिले। परिश्रम के बदले में मिला हुआ धन । उजरत । मजरिया-वि० [फा०] जो जारी हो । प्रवर्तित । (कच्च.) पारिश्रमिक । (४) जीविका निर्वाह के लिये किया जानेवाला मजरी--संशा भी० [३०] एक प्रकार का झाद जिसके उठलों से कोई छोटा मोटा और परिश्रम का फाम । टोकरे बनाए जाते है। यह पिंध और पंजाब में अधिकता मजना* --कि० अ० [सं० मज्जन ] (1) इबना। निमजित होना से होता है। (२) अनुरक्त होना। उ.-मानत नहीं लोक मर्यादाहरि केरंग मजरूआ-वि० [फा०] जोता और बोया हुआ। (त) मजी । सूर स्याम को मिलि चूने हरदी ज्यों रंगरजी।-सूर । मजरूह-वि० [अ० ] चोट ग्वाया हुआ। घायल । जावमी। मजनूँ-संज्ञा पुं०.[ अ० ] (1) पागल । खिची। बावला । दीवाना। | मजल-संज्ञा स्त्री [फा० मजिल ] मंजिल । पड़ाव । टिकान । सौदाई । (२) अरव के एक प्रसिद्ध सरदार का लड़का । मुहा०-मजल मारना=(१) बहुन दर में पटल. लकर आना । जिसका वास्तविक नाम कैस था और जो लैला नाम की (२) कोई बड़ा काम करना । एक कन्या पर आसक्त होकर उसके लिये पागल हो गया। मजलिस-संज्ञा स्त्री० [ अ. ] (१) बहुत से लोगों के बैठने की था; और इसी कारण जो "मजनूं" प्रसिद्ध हुआ था। जगह । वह स्थान जहाँ बहुत मे मनुष्य एकन्न हों। लैला के साथ मजनूं के प्रेम के बहुत से कथानक प्रसिद्ध (२) सभा। समाज । जलप्पा । हैं। (३) आशिक । प्रेमी। आसक्त । (४) बहुत दुबला क्रि० प्र०-जमना ।—जुदना । —लगना । पतला आदमी। सूखा हुआ मनुष्य । अति दुर्बल मनुष्य । (३) महफिल । नाच-रंग का स्थान । (५) एक प्रकार का वृक्ष जिसकी शाखाएँ झुकी हुई होती मजलिसी-संज्ञा पुं० [अ० ] नेवता देकर मजलिस में बुलाया है। इसे 'बेद मजनूँ' भी कहते हैं। वि०० "बेद मजनूं"। हुआ मनुष्य । निमंत्रित व्यक्ति। मज़बूत-वि० [अ०] (१) हरू । पुष्ट । पक्का । (२) अटल । वि० (१) मजलिय संबंधा। मजलिम का । (२) ओ अचल । स्थिर । (३) बलवान् । सबल । तगड़ा । हृष्टपुष्ट । मजलिस में रहने योग्य हो । खव को प्रसन्न करनेवाला । मज़बूती-संशा त्री० [अ० मजबूत+ई (प्रत्य॰)] (1) मज़बृत का मज़लूम-वि० [ अ.] जिस पर जुल्म हुआ हो । सताया हुआ। भाव ।दता । पुष्टता । पक्कापन । (२) ताकत । बल । __अत्याचार पीड़ित । (३) हिम्मत । साहस । | मज़हब-संज्ञा पुं० [अ०] धार्मिक संप्रदापथ । मत । मजबूर-वि० [अ० ] जिस पर जन किया गया हो। विवश । मजहबी-वि० [अ० ] किसी धार्मिक मत पा संप्रदाय से संबंध लाचार । जैसे,—आपको यह काम करने के लिये कोई रखनेवाला। मजबूर नहीं कर सकता। संशा पुं० मेहतर सिक्ख । भगा सिक्ख । मजबूरन-क्रि० वि० [अ० ] विवश होकर । लाचारी से। मज़ा-संक्षा पुं० [फा० ] (१) स्वाद । लज़्ज़त । जैसे, अब मजबूरी-संज्ञा श्री० [अ० मजकूर+5 (प्रत्य॰)] असमर्थता। आमों में कुछ मज़ा नहीं रह गया। लाचारी। बे-घसी। मुहा०—मज़ा परषाना किसी को उसके किए हुए अपराध मजमा-संज्ञा पुं० [अ०] बहुत से लोगों का एक स्थान में | का दंड देना । बदला लेना । किसी चीज़ का मज़ा बना-