पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३३८

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मणिरत २६२९ मतवाला मणिरत-संज्ञा पुं० [सं०] एक बौख भाचार्य का नाम । इसके पोर लंबे और सुरद होते हैं। इसको दीमक नहीं मणिरथ-संज्ञा पुं० [सं०] एक घोधिसत्व का नाम । खाती। मणिराग-संज्ञा पुं० [सं०] हिंगुल । शिंगरफ। मतंगी-संशा पुं० [सं० मतिगिन् ] हामी का सवार । उ०—तिमि मणिरंग-संशा पुं० [सं० ] पुरुषेदिय का एक रोग जिसमें लिंग लच्छ मतंगी स्वच्छ भट सरी निखंगी अति भले।- के अगले भाग का चमड़ा उसके मस्तक पर चिपक जाता गोपाल। है और मूत्र मार्ग कुछ चौड़ा होकर उसमें से मूत्र की महीन | मत-संज्ञा पुं० [सं०] (1) निश्चित सिद्धांत । सम्मति । राय । धारा गिरती है। मुहा०-*मत उपानासम्मति स्थिर करना । उ०—करना मणिशैल-संशा पुं० [सं०] पुराणानुसार एक पर्वत का नाम जो लखि कहना-निधान ने मन यह मती उपायो। मंदराचल के पूर्व में है। (२) धर्म पंथ। मज़हब । संप्रदाय । (३) भात्र । आशय । मणिश्याम-संज्ञा पुं० [सं०] इंद्रनील नामक मणि । नीलम। मतलब । (४) ज्ञान । (५) पूजा । मणिसर-संज्ञा पुं० [सं०] मोतियों की माला। वि० (१) जिसकी पूजा की गई हो। पूजित । (२) कुरिसत । मणिस्कंध-संज्ञा पुं० [सं०] महाभारत के अनुसार एक नाग खराब । बुरा। का नाम । क्रि० वि० [सं० मा ] निषेधवाचक शब्द ।न। नहीं। मणी-संज्ञा पुं० [सं० मणिन् ] सर्प । जैसे,—(क) वहाँ मत जाया करो। (ख) इनसे मत बोलो। संशा स्त्री० दे. "मणि" 1 मतना*-क्रि० अ० [सं० मति+ना (प्रत्य॰)] सम्मति निश्चित मणीचक-संशा पुं० [सं० ] (1) चंद्रकांत नामक मणि । (२) करना । राय कायम करना। उ.-विनय करहिं जेते गढ़- पुराणानुसार शक के एक वर्ष का नाम । (३) एक । पत्ती । का जिउ कीन्ह कौन मति मती।-जायसी । प्रकार का पक्षी। क्रि० अ० [सं० मत्त ] नशे आदि में चूर होना । मस मणीयक-संज्ञा पुं० [सं०] पुष । फूल । होना। मतंग-संशा पुं० [सं०] (1) हाथी । (२) बादल । (३) एक मतरिया -संज्ञा स्त्री० [हिं० माता ] दे. "माता" या "माँ"। दानव का नाम । (५) एक प्राचीन तीर्थ का नाम । (५): मुहा०-मतरिया बहिनिया करना-माँ बहन की गाली देना। कामरूप के अतिकोण के एक देश का प्राचीन नाम । (६) *वि० [सं० मंत्र] (1) मंत्र देनेवाला । मंत्री । सलाहकार । एक ऋषि का नाम जो शवरी के गुरु थे। महाभारत में | (२) मंत्र से प्रभावित । मंत्रित । लिखा है कि ये एक नापित के वीर्य से एक बारणी के | मतलब-संज्ञा पुं० [अ०] (1) तात्पर्य । अभिभाय । आशय । गर्भ से उत्पन्न हुए थे। उस ब्राह्मणी के पति ने इन्हें अपना (२) अर्थ । मानी। (३) अपना हित । निज का लाभ । ही पुत्र और ब्राह्मण समझकर पाला था। एक बार ये गधे स्वार्थ। के रथ पर सवार होकर पिता के लिये यज्ञ की सामग्री लाने मुहा०—मतलब का यारः-अपना भला देखनेवाला । स्वाधी । जा रहे थे। उस समय इ-होंने गधे को बहुत निर्दयता से मतलब गाँठना या निकालना-स्वार्थ साधन करना। मारा था। इस पर उस गधे की माता गधी से इन्हें मालूम (४) उद्देश्य । विचार । जैसे,—आप भी किसी मतलब से हुआ कि मैं प्राह्मण की संतान नहीं है, चांराल के कार्य से आए हैं। उत्पन्न हूँ। इन्होंने घर आकर पिता से सब समाचार कहे मुहा०-मतलब हो जाना-(१) सफल मनोरथ होना । (२) और प्राह्मणत्व प्राप्त करने के लिये घोर तपस्या करने लगे। बुरा हाल हो जाना । (३) मर जाना। तब इंद्र ने आकर समझाया कि माह्मणत्व प्राप्त करना सहज (५) संबंध । वास्ता । जैसे,—अब तुम उनसे कोई मतलब नहीं है। उसके लिये लाखों वर्षों तक अनेक जन्म धारण न रखना। करके तपस्या करनी पड़ती है। तब इन्होंने पर मांगा कि | मतलबिया-वि. दे. "मसलधी"। मुझे ऐसा पक्षी बना दीजिए जिसकी सभी वर्णवाले पूजा | मतलबी-वि० [अ० मतलब+ (प्रत्य॰)] जो केवल अपने हित करें; मैं जहाँ चाई, वहाँ जा सके और मेरी कीर्ति अक्षय का भान रखता हो । स्वार्थी । खुदगरज । हो। इंद्र ने इन्हें यही वर दिया और ये छंदोदेव के नाम | मतवार, मतवारा*-वि० दे. “मतवाला"। से प्रसिद्ध हुए। कुछ दिनों के उपरांत इन्होंने शरीर स्याग मतवाला-वि० पुं० [सं० मत्त+वाला (प्रत्य॰)] [स्त्री० मतवाली ] कर उत्तम गति प्राप्त की। (3) नशे आदि के कारण मस्त । मदमस्त । नशे में चूर । मतंगा-संशा पुं० [सं० मंसग ] एक प्रकार का बांस जिसे मूल (२) उन्मत्त । पागल । (३) जिसे अभिमान हो । व्यर्थ अह. भी कहते हैं। यह वंगाल और बरमा में बहुत होता है। कार करनेवाला । '.. Tibrary