पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३४

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फूलढोंक २३२७ फूलसंपेल कृष्ण चंद्र के लिए फूलों का डोल का झूला सजाया जाता इतराना । जैसे,—ज़रा तुम्हारी तारीफ कर दी बस सुम फूल है। मथुरा और उसके आस पास के स्थानों में यह उत्सव गए। उ०—(क) कबहुंक बैठ्यो रहसि रहसि के टोटा गोद मनाया जाता है। खेलायो । कबहुँक फूलि सभा में धैठया मूलनि ताव फूलढोक-संज्ञा पुं० [१] एक जाति की मछली जो भारत के . दिखायो । ---सूर । (ख) बैठि जाइ सिंहासन फूली । अति सभी प्रांतों में पाई जाती है और हाथ भर तक लंबी होती है। अभिमान बास पब भूली।-तुलसी। फूलदान-संज्ञा पुं० [हिं० फूल+दान (प्रत्य॰)] (1) पीतल आदि मुहा०-फूला फिरना-गर्व करते हुए घूमना । घमंड में रहना । का बना हुआ बरतन जिसमें फूल सजाकर देवताओं के उ०—मनवा तो फूरा फिर कहै जो करता धर्म। कोटि सामने रखा जाता है। (२) गुलदस्ता रखने का काँच, : करम सिर पर चढ़ चेति न देखै मर्म। कबीर । पीतल, चीनी मिट्टी आदि का गिलास के आकार । (4) प्रफुल्ल होना। आनंदित होना। उल्लास में होना। का बरतन। बहुत खुश होना। मगन होना। उ०—(क) परमानंद फूलदार-वि० [हिं० फूल+दार (प्रत्य॰)] जिस पर फूल पो । प्रेम सुख फूले । बीथिन फिरें मगन मन भूले ।--तुलगी। और बेल बूटे काढ़कर, बुनकर, छापकर वा खोदकर बनाए (ख) अति फूले दशरथ मन ही मन कौशल्या सुम्ख पायो। गए हों। सौमित्रा कैकयि मन आमद यह सब ही सुत जायो।- फूलना-त्रि.० अ० [हिं० फूल+ना (प्रत्य०)] (1) फूलों से युक्त सूर । (ग) फूलै फरकत ले फरी पल कटाच्छ करवार । करत, होना। पुपित होना । फूल लाना । जैसे,-यह पौधा । बचावत पिय नयन पायक धाय हजार-विहारी। वसंत में फूलेगा । उ०—(क) फूलै फर न बेत जदगि मुहा०-फूला फिरना या फूला फूला फिरना-प्रसन्न मन।। सुधा बरसहि जलद । तुलसी । (ख) तरुवर फूलै फल : आनंद में रहना । उलास में रहना । उ०-(क) जसुमति परिहर अपनो कालहि पाह।-सूर। रानी देति बधाई भवन स्तन अपार । फूली फिरति संयो० क्रि०-जाना ।-उठना ।-आना । रोहिणी मैया नखमिव किए सिंगार ।—सूर । (म्ब) आजु मुहा०-फूलना फलना धन, धान्य, संतति आदि से पूर्ण और । दशरथ के आँगन भीर ।"फूले फिरत अयोध्यावासी प्रसन्न रहना । सुखी और संपन्न होना । बढ़ना और आनंद में गनत न स्यागत पार । परिरंभन हँसि देत परस्पर आनंद रगना । उन्नति करना । उ०-फूलौ फरौ रही जहँ चाही नैनन नीर ।-सूर । (ग) फूले फूले फिरत है आज हमारी यहै असीस हमारी ।- सूर । फूलना फलाना-प्रफुल ब्याह ।-(प्रचलित)। फूले अंग न समाना=आनंद का होना । उल्लास में रहना । प्रसन्न होना । उ०-फूली फाली इतना अधिक उद्वेग होना कि बिना प्रकट किए रहा न जाय । फूल सी फिरती विमल विकास । भोर तरयाँ होयगी । अत्यंत आनंदित होगा । उ०-(क) उठा फूलि अंग नाहि चलत तोहि पिय पास । -बिहारी। समाना। कथा दूक टूक भहराना ।--जायसी । (ख) (२) फूल का संपुट खुलना जिससे उसकी पंखड़ियाँ : स्थामंतक मणि जांपवती सह आए द्वारिका नाथ । अति फैल जाय। विकसित होना। खिलना । उ०—(क) आनंद कोलाहल घर घर फूले अँग न ममात ।-सूर । फूले कुमुद केति उजियारे। मानहु उए गगन महँ तारे। (ग) चेरी चंदन हाय के रीझि चढ़ायो गात । विह्वल छिति- जायपी। (ख) फूलि उठे कमल से अमल हितू के नैन, धर डिभ शिशु फुले वपु न ममात ।-केशव । कहै रघुनाथ भरे चैन रस सियरे ।-रघुनाथ । (३) भीतर (९) मुहँ फुलाना । रूठना । मान करना । जैसे, वह तो किसी वस्तु के भर जाने या अधिक होने के कारण अधिक वहाँ फूलकर बैठा है। फैल या बढ़ जाना। डील डौल या पिका पसरना। फूल बिरंज-संज्ञा पुं॰ [हि० फूल+विरंज | एक प्रकार का धान जैसे, हवा भरने से गेंद फूलना, गाल फूलना, भिगोया जिसका चावल अच्छा होता है। यह भादों उतरते कुआर हुआ चना फूलना, पानी पड़ने से मिट्टी फूलना, कड़ाह में के प्रारंभ में ककर काटने योग्य हो जाता है। कचौरी फूलना। (५) सतह का उभरना । आस पास की फूलमती-संज्ञा स्त्री० [हिं० फूल+मत ( प्रत्य०) एक देवी का सतह से उठा हुआ होना। (५) सूजना | शरीर के किसी नाम । शीतला रोग के एक भेद की यह अधिष्ठात्री देवी भाग का आसपास की सतह से उभरा हुआ होना । जैसे,-! मानी जाती है। इसकी उपासना नीच जाति के लोग करते जहाँ चोट लगी वहाँ फूला हुआ है और दर्द भी है। है। यह राजा वेगु की कन्या कही जाती है। संयो० क्रि०-आना। | फूलवारा-संज्ञा पुं॰ [देश॰] चिउली नाम का पेड़। (६) मोटा होना। स्थूल होना । जैसे,—उसका बदन फूलसँपेल-वि० [हिं० फूल+साँप ] (बैल या गाय) जिसका यादी से फूला है। (७) गर्व करना। धर्मर करना। एक सींग दाहनी ओर और दूसरा बाई ओर को गया हो।