पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मथित २६३३ मदक दूसरी ओर उन्नतोदर होती है। इसके किनारे पर कटाव चित भाचरिखेहो। तो मथुरही महा महिमा लहि सफल होता है और जिस ओर समतल रहता है, उधर बीच में डेढ़ दरनि दरिबेहो।--तुलसी। दो हाथ लंबी सीजी रहती है । ममते समय खुरिया दही मथौरा-संशा पुं० [हिं० मथना ] एक प्रकार का भद्दा रंदा जिसमे के भीतर पालकर इंडी को खंभे की चूल में लपेटकर रस्सी से बदई लकड़ी को खरादने के पहले छीलकर सीधा करते केवल हार्थों से बट बटकर घुमाते हैं जिससे दही क्षुब्ध हो है। उ०-सार साखे शाम बसूल वरमा रु हथौरा । जाता है और थोड़ा सा पानी डालने पर और मथने से नैनू टॉकी नहनी घनी अरा आरी सु मौरा ।-सूदन । वा मक्खन मट्ठ के ऊपर उतरा आता है, जिसे मथानी से मथौग-संज्ञा स्त्री० [हि माथा+और (प्रत्य०)] एक आभूषण का समेटकर अलग इकट्ठा करते हैं । ई। थिलोनी । महनी। नाम जिसे त्रियां सिर में पहनती हैं। यह अर्द्ध चंद्राकार खैलर । उ०-को अस साज देर मोहिं आनी वासुकि होता है जिसमें कई लटकन लगे रहते हैं। यह जजीर वा दाम सुमेरु ममानी ---जायसी। धागे से बाँधा जाता है। चंद्रिका | चंदक । पर्या-मथान । मय । वैशाख । मथा। मंथन । तक्राह। मथ्था-संज्ञा पुं० दे० "माथा" उ०-भटक्के पटक्कै कटक्क सुमध्य । भकाद। सटक्क चलाईं अटक्कै न तस्य ।-सूदन । मुहा०-मथानी पबना या वहना-खलबली मचना । 30-गद मदंग-संशा पुं० [सं० मृदंग ] एक प्रकार का बांस जो बरमा, ग्वालियर मह वही मथानी । और कंधार मथा मैं आसाम, छोटा नागपुर आदि में होता है। यह खोखला पानी।—जायसी। और मोटा होता है। इससे चटाई, घड्नई आदि बनाई मथित-वि० [सं०] (1) मया हुआ। (२) घोलकर भली भाँति । जाती है और फलटे चीरकर मकान छाए जाते हैं। इसके मिलाया हुआ। आलोक्ति । पोर में लोग चावल पकाते और धीजें भरकर रखते हैं। मथी-वि० [सं० मथिन् ] [ स्त्री० मथिनी ] मथनेवाला। मदंती-संशा स्त्री० [सं०] विकृत धैवत की चार श्रुतियों में से संज्ञा पुं० मथानी । . दूसरी श्रुति का नाम । मथुरा-संशा स्त्री० [सं० मधुपुर--मधुरा ] पुराणानुसार सात पुरियों मर्दध-वि० दे. "मदांध"। में से एक पुरी का नाम । यह बज में यमुना के दाहिने मद-संशा पुं० [सं०] (1) हर्प । आनंद । (२) वह गंधयुक्त द्वार किनारे पर है। रामायण ( उत्तर कांड ) के अनुसार इसे जो मतवाले हाथियों की कनपटियों से बहता है। दान । मधु नामक दैत्य ने बसाया था जिसके पुत्र बाणासुर को (३) वीर्य । (४) कस्तूरी । (५) मद्य । (६) चित्त का वह पराजित कर शत्रुघ्न ने इसको विजय किया था। पाली भाषा उद्वेग वा उमंग जो मादक पदार्थ के सेवन से होती है। के ग्रंथों में इसे मथुरा लिखा है। महाभारत काल में यहाँ . मतवालापन । नशा । (७) उन्मत्तता । पागलपन । शूरसेन वंशियों का राज्य था और इसी वंश की एक शाखा विक्षिप्तता । उ०—सत्यवती छोदरी नारी । गंगातट ठाढ़ी में भगवान् श्रीकृष्णचंद्र का यहां जन्म हुआ था। शूरसेन सुकुमारी । पाराशर ऋषि तहँ चलि आए । विवश होर वंशियों के राज्य के अनंतर अशोक के समय में उनके तिनके महँ धाए ।-सूर । (4) गर्व। अहंकार धिमंड । (१) आचार्य्य उपगुप्त ने इसे बौद्ध धर्म का केंद्र बनाया था। यह अज्ञान । मतिविभ्रम । प्रमाद । (१०) एक रोग का नाम । जैनों का भी तीर्थस्थान है। उनके उन्नीसवें तीर्थकर मल्लिनाथ उन्माद नामक रोग । (११) एक दानव का नाम । (१२) का यह जन्म स्थान है। मौर्य साम्राज्य के अनंतर यह कामदेव । मदन । स्थान अनेक यूनानी, पारसी और शक क्षत्रपों के अधिकार में मुहा०-मद पर आना=(१) उमंग पर आना । (२) कामान्मत्त रहा । महमद गजनवी ने सन् १०१७ में आक्रमण कर इस होना ! गरमाना । (३) युवा होना। नगर को न्यस्त व्यस्त कर डाला था । अन्य मुसलमान बाद वि० मत्त । उ.---मद गजराज द्वार पर ठाडो हरि कहेउ शाहों ने भी इस पर समय समय पर भाक्रमण कर इसे नेक बचाय । उन नहि मान्यो संमुख आयो पकरेउ पूंछ सहस नहस किया था । यहाँ हिदुओं के अनेक मंदिर हैं फिराय।-सूर। और अनेक कृष्णपासक वैष्णव संप्रदाय के आधाग्यौं का संज्ञा स्त्री० [अ०] (1) लम्बी लकीर जिसके नीचे लेखा यह केंद्र है। पुराणानुसार यह मोक्षदायिनी पुरी है। लिखा जाता है । खासा । (२) कार्य वा कार्यालय का मधुरिया-वि० [हिं० मथुरा+झ्या (प्रत्य॰)] मथुरा से संबंध । विभाग। सीगा। सरिश्ता। (३) खाता । जैसे,—इस मद रखनेवाला । मथुरा का । जैसे, मथुरिया बडे। उ.-जो में सौ रुपए खर्च हुए हैं। (४) शीर्षक । अधिकार । (५) पै अलि अंत इहै करिबहो। तो अतुलित अहीर अवलन को ऊँची लहर । ज्वार। हठिन हिये हरिबेहो । जो प्रपंच परिणाम प्रेम फिरि अमु. मदक-संशा स्त्री० [हिं० मद+क (प्रत्य॰)] एक प्रकार का मादक