पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३४८

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मधुकाश्रय २६३९ मधुमक्खी मधुकाश्रय-संज्ञा पुं० [स. ] मोम। वि० मधु पीनेवाला। मधुकुंभा-संज्ञा स्त्री० [सं० ] कार्तिकेय की अनुचरी एक मातृका मधुपटल-संज्ञा पुं० [सं० ) शहद की मक्खी का छता। का नाम । मधुपति-संशा पुं० [सं० ] श्रीकृष्ण । मधुकुल्या-संशा खी० [सं०] पुराणानुसार कुश द्वीप की एक नदी मधुपर्क-संशा पुं० [सं०] (1) दही, घी, जल, शहद और चीनी का नाम । का समूह जो देवताओं को चढ़ापा जाता है और जिससे मधुकैटभ-संज्ञा पुं॰ [सं०] पुराणानुसार मधु और कैटभ नाम के दो . देवता बहुत संतुष्ट होते हैं। यह भी कहा गया है कि इसका दैत्य जो दोनों भाई थे और जिन्हें विष्णु ने मारा था। दान करने से सुग्व और सौभाग्य की वृद्धि तथा मोक्ष की मधुकोष-संशा पुं० [सं० ] शहद की मक्खी का छत्सा । मधुचक । प्राप्ति होती है। पूजा के सोलह उपचारों में से देवता पा मधुक्षीर-संश पुं० [सं०] खजूर का पेड़ । पूज्य के सामने मधुपर्क रखना भी एक उपचार है। (२) मधुगंध-संज्ञा पुं० [सं० ] (१) अर्जुन का वृक्ष । (२) वकुल।। तंत्र के अनुसार घी, दही और मधु का प्यमह जिसका उप- मौलसिरी। योग तांत्रिक पूजन में होता है। मधुगुंजन-संज्ञा पुं० [सं०] सहजन का वृक्ष । | मधुपर्का-वि० [सं०] मधुक देने के योग्य। जिसके सामने मधग्रह-संज्ञा पुं० [सं०] वाजपेय यज्ञ में का एक होम जो मधुन मधुपर्क रक्खा जा सके। से किया जाता है। मधुपर्णी-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) गुरुच । (२) गंभारी नामक मधुघोष-संज्ञा पुं० [सं० ] कोकिल । कोयल । वृक्ष । (३) नीली नामक पौधा । मधुचक्र-संशा पुं० [सं०] शहद की मक्वी का छत्ता। मधुगयी-संभ पु० [सं० मधुपायिन् ] भौंरा । मधुच्छंदा-संशा पुं० [अ० भभुच्छंद्रम् ] विश्वामित्र के एक पुत्र का मधुपालिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] गंभारी नामक वृक्ष । नाम जो ऋग्वेद के अनेक मंत्री के द्रष्टा थे। मधुपिंग-संज्ञा पुं॰ [सं०] पुराणानुसार एक मुनि का नाम । मधुन्छदा-संशा स्त्री० [सं० ) मोरशिग्ना नाम की बूटी। मधुपीलु-संज्ञा पुं॰ [सं०] महानीलु । अविराट । मधुज-संज्ञा पु० [सं०] मोम । मधुपुर-संज्ञा पुं० [सं०] मधुरा नगर का प्राचीन नाम । मधुजा-संशा स्त्री० [सं० ] पृथ्वी। मधुपुरी-संज्ञा स्त्री० [सं०] मथुरा का प्राचीन नाम । विशेष-पुराणानुसार पृथ्वी की उत्पत्ति मधु नामक राक्षस के : मधुपुष्प-संक्षा पुं० [सं०] (१) महुभा । (२) सिरिय का पेड़। ___ मेद मे हुई थी, इसी से उनका यह नाम पड़ा। (३) अशोक वृक्ष । (४) सौलागिरी। मधुजीरक-संशा पुं० [सं० ] सौंफ । | मधुपुष्पा-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) नागदंती । (२) धौ। मधुजीवन-संज्ञा पुं० [सं०] बहेने का वृक्ष । - मधुप्रमेह-संज्ञा पुं॰ [सं.] एक प्रकार का प्रमेह रोग जिसमें मधुतृण-संशा पुं० [सं०] ईख । उम। । पेशाब में शक्कर आती है। वि० दे० 'मधुमेह"। मधुत्रय-संज्ञा पुं० [ 10 ] शहद, घी और चीनी इन तीनों का मधुप्रिय-संज्ञा पुं० [सं०1(१) बलराम । (२) भुई-जामुन । मधुफल-संशा पुं० [सं०] (1) दाख । (२) कॅटाय या विकत मधुत्व-संज्ञा पुं० [सं० ] मधु वा मधुर होने का भाव । मिठास । | नामक वृक्ष । मीठापन । मधुफलिका-संशा सी० [सं०] मोटी ग्वजूर । मधुदीप-संशा पुं० [सं० ] कामदेव । मधुबन-संज्ञा पुं० [सं०] (1) वांग के एक दन का नाम । मधुदुत-संज्ञा पुं० [सं० ] आम का पेड़। (२) सुग्रीव का बगीचा जिसमें अंगूर के फल बहुत होते थे। मधुदूती-संशा स्त्री० [सं०] पाटला वृक्ष । मधुबहुल-संज्ञा पुं० [सं०] (1) वासंती लता । (२) सफेद जूही। मधुद्र-संज्ञा पुं० [सं० ] भौंरा । मधुबिंधी-संज्ञा स्त्री० [ मं०] कुंदरू। मधुद्रव-संशा पुं० [सं० ] लाल सहजन का वृक्ष । मधुबीज-संशा पुं० [सं०] अनार । मधद्रम-संशा पुं० [सं०] महुए का पेड़ । मधमार-संज्ञा पुं० [सं०] एक मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक धरण मधुधारी--संज्ञा पुं० [सं० ] सोना मक्खी । में आठ मात्राएँ होती है और अंत में जगण होता है। जैसे- मधुधूलि-संज्ञा स्त्री० [सं०] खाँद । शकर । प्रभुही सुदीन । तुम ही प्रयीन । जग महूँ महेश । हरिये मधुनी-संशा स्त्री० [सं० ] एक प्रकार का क्षुप जिसे धृतमंदा और | कलेश। सुमंगला भी कहते हैं। मधुमक्खी -संज्ञा स्त्री० [सं० मधुमक्षिका ] एक प्रकार की प्रसिद्ध मधुनेत्रा-संशा पुं० [सं० मधुनेतृ ] भ्रमर । भौंरा। मक्खी जो फूलों का रस चूसकर शहद एकत्र करती है। मधुप-संज्ञा पुं० [सं०] (1) भौरा । (२) शहद की मक्खी । मुमाखी।