पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३५५

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मन मन उ०.--दियो शिरपाव नृपराउ ने महर को आप पहरा- बनी सब दिवाए । अतिहि सुभव पाइ के लियौ सिर नाह के हरपि नँदराइ के मन बदाए ।—सूर । मन में बपना-मन मे चुभना । पमंद आना । अच्छा लगना । ना। माना । जैसे,—उनकी सूरत तो मेरे मन में यम । गई है। उ०---गुर के भेला जिब डरे काया छीजनहार। कुमति का मन बी लागु जुवा की लार ।कबीर । . मन बहलाना-म्विन्न वा दुःखी चित्त की किसी काम में । कार मानत करना । दुःग्य छाड़कर आनंद में समय : पाटना । वित्त प्रसन्न करना । जी बहलाना । उ.-ना किमान अन्ध समाचार तहँ आप सुन है। ना नाऊ की बातें सब को मन बहलहै।-श्रीधर पाठक । मन भरना-- पनाति होना । निश्चय या विधान होना । (२) संताप होना । तुष्टि होना । तृप्ति होना । उ०-यह बीसों फूलों पर गया, पर इसका मन न भरा।--अयोध्या । मन । भर जाना (१) अधा जाना । तृप्ति होना । (२) अधिया : प्रवृत्ति न रह जाना। मन भाना-भला लगना । पसंद : होना । सपना। उ.---- (क) बामिन को वामदेव कामिनि को कामदेव रण जयथंभ रामदेव मन ये जू ।केशव ।। (ख) भाँति अनेक विहंगम सुदर फूलै फलें तर ते मन भावें।-प्रताप । (ग) हरिहर प्रक्षा के मन भाई । विवि अक्षर ले युगुति बनाई। कबीर । (घ) कहेहु नीक मोरेहु मन भावा । यह अनुचित नहि नेबत पठावा।--तुलसी। मन भारी करना-दुःब होना । उदास होना । मन मानना (१) मंतोष होना । तसल्ली हाना । उ०—(क) मधुकर कहि कैप मन माने । जिनके एक अनन्य प्रत सूझे : श्यां दूजो उर आने ।—सूर । (ख) राजा भा निश्चै मन माना। याँधा रतन छोषि के आना ।—जायसी । (२) निश्चय होना । प्रतीति होना । उ०---(क) के बिनु सपथ न अर मन मना । सपथ बोलु बाचा परमाना ।-, जायमी। (३) अच्छा लगना । रुचना । पसंद आना । भाना।। उ.-सप्त प्रबंध सुभग सोपाना । ज्ञान नयन निरखत मन माना ।—तुलसी । (४) स्नेह होना । अनुराग होना। उ.-सवीर श्याम सों मन मान्यो । नीके करि चित कमल नैन सो घालि एक ठों सान्यो ।- सूर । किसी से मन मिलना-(१) प्रेम होना । अनुराग होना । (२) मित्रता होना । दोस्ती होना । मन में आना-(१) मन में किसी भाव का उत्पन्न होना। उ.--तामों उन कटु वचन सुनाये । पैताके मन कडून : आये—सूर । (२) समझ पड़ना । ध्यान में आना । उ.- यह तनु क्यों ही दियौ न जाने । और देत कछु मन नहि । आवे।-सूर । (३) अच्छा जान पड़ना । भला लगना। मन में आनना = दे० "मन में लाना"। मन में जमना वा बैठना-(१) टीक जंचना । उचित वा युक्तियुक्त प्रतीत होना । (२) विचार में आना । ध्यान में आन। । मन में ठानना- निश्चय करना। दृढ़ संकल्प करना। मन में धरना-दे. "मन में रखना" । मन में भरना-हृदयंगम करन। । मन में जमाना । मन में रखना=(१) गुप्त रखना । प्रकट न करना । जैसे,-अभी ग्रह बात मन ही में रखना; किसी से कहना मत । (२) स्मरण रखना । जैसे,-हमारी सब बातें मन में रग्बना, भूल न जाना । मन में लाना-विचार करना । मांचन।। ध्यान देना । उ०-कहै पदमाकर झकोर मिली शोरन को मारन को महत न कोऊ मन ल्यावतो।—पभाकर। मन मोहना वा मन को मोहना-किसी के मन को अपनी ओर आकृष्ट करना । लुभाना। अनुरक्त करना । उ.-जग जदपि दिगंबर पुष्पवती नर निरखि निरखि मन मोहै। -केशव । मन मिलनान्दो मनुष्यों की प्रकृति या प्रवृत्तियों का अनुकूल अथवा एक समान होना । जैसे,—-मन मिले का मेला । नहीं तो सबस भला अकेला । मन मारना (१) खिन्न चित्त होना । उदास होना । उ.--(क) भूसुत शत्रु थान किन हेरत लवत मोहि मन मारे । मुनि रिपु पुत्र-वधू किन वैरिन मोकों देत सवाएँ ।-सूर । (ख) मौन गहों मन मारे रही निज पीतम की कहौं कौन कहानी ।- प्रताप । (२) इच्छा को दबाना । मन को वश में करना । उ.-मन नहि मार मना करी सका न पाँच प्रहारि। मील साँच सरधा नहीं अजहूँ इंदि उधारि। कबीर । मन मारे हुए वा मन मारे-दुःखी । उदास । खिन्न चित्त । उ.-(क) कहँ लगि पहिय रहिय मन मारे । नाथ साथ धनु हाय हमारे ।-सुलपी । (ख) प्रिया वियोग फिरत मारे मन परे सिंधु तट आनि । ता सुदरि हित मोहि पठायो सकौं न हौं पहिचानि ।-सूर । (ग) भवन ही मन मारि बैठी महज सखी इक आई । देवि तनु अति विरह व्याकुल कहति बचन बनाई।-सूर । (घ) उर धरि धीरज गयउ दुआरे । पूछहि सकल देखि मन मारे।-तुलसी । मन मैला करना. मन में खिन्न होना । अप्रसन्न या असंतुष्ट होना। उ.-माइ मिले मन का करिही मुंहही के मिले ते किये मन मले। केशव । किमी से मन मोटा होना=किसी से अनवन होना । किसी का मन मोटा होना-विराग होना । उदासीन होना । मन मोदना-प्रवृत्ति या विचार को दूसरी ओर लगाना। उ.-विधाता ने हमारा सुम्हारा वियोग कर दिया; मुझे अब मन मोह लेना पड़ा 1- तोताराम । किसी का मन रखना-किमी की इच्छा पूर्ण करना । किसी के मन में आई हुई बात पूरी करना । 30--यहाँ के राजाओं से सारे वाद- शाह दवते थे और इनका वे लोग सब तरह मन रखते थे।