पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३५७

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मनजात
मनमोहन
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विसरेउ यो उ उ । मनधीने हरि पायो नाह ।-सूर।. रे।-सूर । (ख) केशोदास मुघर अवन ग्रजसुदरी के (ब) मेरे मन को दुग्य परिहरौ । मनचीतो कारज सच : मानो मनभावने के भाषते भवन है। -केशव । (ग) शंम्ब करौ।-। (ग) पूरी जदपि भयो नहीं मनचीत्यो रति भेरि निशान बाजहि नचहि शुद्ध सुहावनी । भाट बोलें नाह। - णसिंह। विरद नारी बचन कहे मनभावनी ।-सूर । मनजात-संज्ञा पुं० [हिं० मन+सं० जात ] कामदेव । उ०—मन- मनमत* -वि० दे० "मैमंत"। जात किरात निपात किए । मृग लोग कुभोग सरे न हिये। मनमति-वि० [हिं० मन+मति ] अपने मन का काम करनेवाला । --नुलमी। स्वेच्छाचारी। उ०-भाई, ये मनमति होना अच्छा नहीं; मनतारवा-संक्षा ५० | देश० ] एक प्रकार का पक्षी । किसी की बात भी सान लेनी चाहिये । ----श्रद्धाराम । मनन-संशा पु० [सं० 1 (6) विचार । चिंतन । सोचना । (२) : मनमथ-संज्ञा पुं० दे० "मन्मथ"। भली भाँति अध्ययन करना । (३) वेदांत शास्त्रानुसार सुने मनमानता-वि० [हिं० मन+मानना ] मनमाना। मनचाहा। हुए वाक्यों पर बार बार विचार करना और प्रभोत्तर वा मनोवांछित । उ०-मब ग्वालों ने प्रसन्न हो निधनक शंका समाधान द्वारा उसका निश्चय करना । फूल तोड़ मनमानती शोलियां भर लीं। लल्लू। मननशील-वि० [सं० गनन+ शील ] जो किसी विषय पर बहुत : मनमाना-वि० [हिं० मन मानना ] | बी. मनमाना । (१) जिये अच्छी तरह विचार करता हो। विचारशील । विचारवान् । मन चाहे । जो मन को अच्छा लगे। उ०-सुलम्मी विदेह मननाना-क्रि.० अ० [ मन् मन् से अनु० ] गुंजारना । गूंजना। की सनेह की दमा सुमिरि, मेरे मन माने राउ निपट स्याने उ.---मननात भीर भूषण अमोल अननात प्रथा मूलनि हैं।-तुलमी। (२) मन के अनुकूल । मनोनीत । पसंद । परम । ---गुमान। उ.-पालने आन्यो, यहि अति मन मान्यो, नीको सो मनवांछित-वि० दे. "मनोवांछित"। उ०-जागी महरि पुत्र दिन धराइ, सविन मंगल, गवाइ, रंगमहल में पौग्यौ है मुम्ब देउ आनंद तूर बजाई । कंचन कलस हेम द्विज पूजा कन्हैया ।--सूर (३) । यथेच्छ । इच्छानुकल । मनचाहा । चंदन भवन लिगाई। दिन दपही ते बरसे कुसुमनि फूलनि । जैसे-आप किसी की बात तो मानते ही नहीं। हमेशा गोकल छाई। नंद कहै इच्छा सब पूजी मनवांछित फल मनमाना करते है। पाई।-सूर। | मनमुखी - वि० [हिं० मन+मुख्य } मनमाना काम करनेवाला । मनभाया-वि० [हिं० मन+भाना ] [स्त्री० मनभाई ] जो मन को स्वेच्छाचारी। उ.गुरु द्रोही औ मनमुग्वी नारी पुरुष भावे। जो अच्छा लगे । मनोनुकूल । उ०—(क) सूरदास विचार । ते नर चौरासी भ्रमहिं जब लगि शशि दिन कार। प्रभु रसिक शिरोमणि कियो कान्ह ग्वालिनि मन भायो।- --कधीर। सूर । (ग्व) ख्याल मन भाय कहूँ करिके गोगल धरै आये | मनमुटाव-संशा स्त्री० [हिं० मन+मटा ] मन में भेद पहना । अति आलप मढ़ई बड़े तस्के ।—पद्माकर । (ग) करत मन मोटा होना । वैमनस्य होना। सहाय सुहाय मनभाय वर पाय सबै करि चतुराई अधिकाय ! क्रि० प्र०-पड़ना । —होना ।। अधिकात है।-प्रताप । (घ) आतुर है पिय केलि करी मनमोदक-संज्ञा पुं० [हिं० मन+गोदक ] अपनी प्रसन्नता के सुभरी निज अंक करी मन भाई। लिये बनाई हुई असंभव या कल्पित बात । मन का लड्डू। मनभावता-वि० [हिं० मन+भाना ] [स्त्री० मनभावती ] (1) जो! उ०-वृथा मरहु जनि गाल बजाई। मन मोटकन्हि कि मन को भला लगता हो। (२) प्रिय । प्यारा उ०-रूप भूख खुप्ताई। तुलसी। वंत जस दरपन धन तू जाकर फंत । चाही जैस मनोहर मनमोहन-वि० [हिं० मन+महन ] [ सी. मनमोहना ) (1) मिला सो मनभावंत ।-जायसी । (ख) कहि पठई मनभा मन को मोहनेवाला । मन को लुभानेवाला । चित्ताकर्षक । वती पिय अवन की बात। फूली आँगन में फिर आँगन मुग्ध कारक । उ०—रूप जगत मनमोहन जेहि पद्मावति अंग समात ।-बिहारी । (ग) मोहिं तुम्हें न उन्हें न इन्है, नाउँ। कोटि दरब तुहि देहीं आनि करेपि इक ठाउँ।- मनभावती सो न मनावन ऐहै।-पाकर । जायसी । (२) प्रिय । प्यारा । मनभावन-वि० [हिं० मन+भाना ] (1) मन को अच्छा लगने संज्ञा पुं० (१) श्रीकृष्ण चंद्र का एक नाम । उ.--मन- वाला । उ०-चरण धोह चरणोदक लीनो मौगि देउँ मन मोहन शत चौगान द्वारावती कोट कंचन में रच्यो रुधिर भावन । तीन पैर धसुधा ही चाही परणकुटीको छावन ।...-.. मैदान ।-सूर । (२) एक मात्रिक छंद का नाम जिसके सूर । (२) प्रिय । प्यारा । 30-(क) भले सुदिन भये पूत प्रत्येक चरण में चौदह मात्राएँ होती है, जिनमें से अंतिम अमर अजरावन रे । जुग जुग जीवहु काम्ह सबही मनभावन । तीन मात्राओं का लघु होना आवश्यक है। उ०-मुमहि