पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३५९

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मनसाना २६५० विचारत मन में होई । मनमा पाप न लागत कोई । —सूर । मनसेधू-संज्ञा पुं० [सं० मनुष्य ] पुरुष । आदमी। कि. वि. मन से । मन के द्वारा। उ.-मनसा वाचा - मनस्क-सज्ञा पुं० [सं०] मन का अल्पार्थक रूप । इसका प्रयोग कर्मणा हम सो छाँबहु नेह। राजा को विपदा परी तुम समस्त पदों में देखा जाता है। जैसे, अन्य मनस्क । तिनकी सुधि लेहु। केशव । मनस्कत-वि० [सं०] (1) मनोनीत । मन के अनुकूल । (२) संज्ञा पुं० दे० "मसी"। प्रिय। प्यारा। मनसाना-क्रि० अ० [हिं० गनसा ] उमंग में आना। तरंग में आना संश पुं० मन को अभिलाषा । मनोरथ । क्रि० स० [हिं० मनपना का प्रेर० मनसने का काम दूसरे मनस्काम-संज्ञा पुं० [सं०] मन की अभिलाषा मनोरथ । से कराना । संकल्प का मंत्र आदि पकर या पढ़ाकर दुसरे मनस्ताप-संशा पुं० [सं०] (1) मनःचीदा। आंतरिक दुःख । से दान आदि कराना। (२) अनुताप । पश्चात्ताप । पछतावा । मनसा पंचमी-संज्ञा स्त्री० [सं० } आपाढ़ की कृष्णा पंचमी । इस मनस्ताल--संश पुं० [सं०] (1) हरताल। (२) दुर्गा देवी के दिन मनग्य देवी का उत्सव होता है। सिंह का नाम । मनसायना-वि० [हिं० मानुस मनुष्य+आयन (प्रत्य)} (9) मनस्तोका-संज्ञा स्त्री० [सं०] दुर्गाजी का एक नाम । वह स्थान जहाँ मन-बहलाव के लिये कुछ लोग हों। मनस्विनी-संवा स्त्री० [सं०] (1) मृकंडु ऋषि की पली का मुहा०-मनसायन करना या रखना-बात चीत आदि के नाम । (२) प्रजापति की एक स्त्री का नाम जिससे सोम द्वारा इस प्रकार किसी का मन बहलाना जिसमे उसे अकेले । की उत्पत्ति हुई थी। होने का कष्ट न जान पड़े। मनस्वी-व० [सं० मनस्विन् ] [स्त्री. मनस्विनी ] (1) श्रेष्ठ मन (२) मनोरम स्थान । गुलज़ार । से संपन्न । पुद्धिमान् । उच्च विद्यारवाला । (२) मनमौजी। मनसिज-संज्ञा पुं० [सं०] कामदेव । स्वेच्छाचारी। मनसूख-वि० [अ०] (१) जो अप्रामाणिक ठहरा दिया गया हो। संज्ञा पुं० शरभ । अतिवर्तित । जैसे, दिगरी मनसूख कराना । (२) परित्यक्त। मनहंस-संशा पुं० [हिं० मन+हंम ] पंद्रह अक्षरों के एक वर्णिक त्यागा हुआ । जैसे, हमने वहां जाने का इरादा मनसूग्य छंद का नाम जिसके प्रत्येक चरण में सगण, फिर दो जगण, कर दिया। फिर भगण और अंत में रगण होता है ( स ज ज भ र ) मनसूखी-संशा स्त्री० [अ० ] मनसूख होने का भाव या क्रिया। इसे मासहस भी कहते हैं उ०—बिरहीन को पलस्वात भनमूया-संज्ञा पुं० [अ० ] (१) युक्ति। आयोजन । ढंग। उ०-- हो यहि नाम साँ। पहि ते पलाश प्रसिद्ध हो गति वाम (क) अब कीजै कैसा मनसूबा । है हैरान सीगरे सूथा।-. सों । कछु फूल लागत लाल है तेहि हेतु सों। इमि देखि के लाल । (ख) लंक की विशालता ले उरज उतंग भये रंग' पुहुमी पुरंदर चेत सों। कवि ठूलह है तेरे मनसूबे को। दूलह । मनहर-वि० [i० मन+हरन। व। सं० मनोहर ] मन हरनेवाला । क्रि०प्र०—करना ।ठानना । —होना। मनोहर । मुहा०—मनसूबा पाँधना=युक्ति निकालना । हग सोचना। सा पुं० घनाक्षरी छंद का एक नाम । दे. "धनाक्षरी"। उ०—उसने पक्का मन्सूका बांधा था कि यदि लड़ाई हो तो मनहरण-सं. पुं० [हिं० मन+हरण ] (1) मन हरने की क्रिया आप धनुष धान लेके हाथों पर फौज के साथ जावे।-शिव वा भाव । (२) पंद्रह अक्षरों का एक वर्णिक छंद जिसके प्रसाद। प्रत्येक चरण में पांच सगण होते हैं। इसे नलिनी और (२) इरादा । विचार । उ०-शकटार अपने मनसूबे का भ्रमरावली भी कहते हैं। उ०-दुर्जन की हानि विरधाप- ऐसा पक्का था कि शत्रु से बदला लेने की इछा से अपने नोई कर पर गुण लोप होत इक मोतिन को हारही। प्राग नहीं त्याग किये। हरिश्च'द्र। वि. मनोहर । सुदर । मनसूर-संशा १० [अ० ] एक प्रसिद्ध मुसलमान साधु जो सूफी मनहरन*-संज्ञा पुं० दे० "मनहरण" । मत का आचार्य माना जाता है। यह नवीं शताब्दी में वि० [स्त्री० मनहरनी] मन हरनेवाला । उ.--जदपि बैजानगर में हुसेन हलाज के घर उत्पन्न हुआ था। यह पुराने बक तऊ सरवर निपट कुचाल । नये भये तु कहा भये "अनलहक" अर्थात् "अहं ब्रह्मास्मि" कहा करता था। ये मनहरन मराल ।-बिहारी। बग़दाद के खलीफ़ा मकतदिर ने इसे इस्लाम धर्म का विरोधी मनहार-वि० दे. "मनोहारी"। समझकर सन् ९१९ ईस्वी में सूली पर चढ़ा दिया और मनहारि-वि० दे० "मनोहारी" इसके शव को भस्म करा दिया था। मन-अव्य० [हिं० मानना या मानों ] मानों । जैसे। यथा।