पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३६१

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मनी आर्डर मनुष सनिधि भावक करत है ताह मन में बास। सनिधि । (1) स्वायम् । (२) स्वारोचिष । (३) उत्तम । (४) तामस ।

  • संज्ञा स्त्री० (१) दे० "मणि"। (२) वीर्य ।

(५) रैवत । (६) चाक्षुष । (७) वैवस्वत । (८) सावर्णि । मनी आर्डर-संज्ञा पुं० [अ० ] रुपए की हुंडी जो किसी के रुपया (९) दक्ष सावर्णि। (१०) ब्रह्म साधर्णि । (११) धर्म दुकाने पर एक डाकखाने से दूसरे डाकखाने में इसलिये सावर्णि। (१२) रुद्ध सावर्णि । (१३) देव सावर्णि और भेजी जाती है कि वह वहाँ के किसी मनुध्य को हुंसी में (१४) इंद्र सावर्णि । वर्तमान मन्वंतर वैवस्वत मनु का लिम्वी राक्रम दुका दे । एक स्थान से दूसरे स्थान पर रुपया है। मनुस्मृति में मनु को विराट का पुत्र लिया है और मनु प्राय: लोग इसी प्रकार डाकबाने की मारफत भेजा करते हैं। से दस प्रजापत्तियों की उत्पत्ति लिखी है । (२) विष्णु । (३) क्रि० प्र०-आना । —जाना।-भेजना। अंतःकरण । मन । () जैनियों के अनुसार एक जिन का मनीक-संज्ञा पुं० [सं०] आँजन । नाम । (५) कृष्णा के एक पुत्र का नाम । (६) मंत्र । मनीरा-संझा स्त्री० [ देश० ] मोरनी। (७) वैवस्वत मनु । (4) अग्नि । (५) एक रुद्र का नाम । मनीषा-संज्ञा स्त्री० [सं०] () बुद्धि । ॐकल। (२) स्तुति। प्रशंसा।। (१०) १४ की संख्या । (११) ब्रहा। मनीषिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] बुद्धि । मनीषा। संज्ञा स्त्री. (१) मनु की स्त्री । मनावी । (२) अनमेथी मनीक्ति-वि० [सं०] मनोभिलषित । वोटित । का साग । पृक्का। मनीपिता-संज्ञा स्त्री० [40] बुद्धिमत्ता । बुद्धिमानी । अन्य ० [हि० मानना ] मानों । जैसे । उ०—(क) रतन मनीषि-वि० [सं०] (1) पंडित । ज्ञानी। (२) बुद्धिमान् । जडित ककण बाजू वैद नगन मुद्रिका सोहै । डार डार मनु मेधावी । अक्लमंद। मदन विपट तरु बिकच देखि मन मोहै ।—सूर । (ख) मनु-संज्ञा पुं० [सं०] (1) ब्रह्मा के पुत्र जो मनुष्यों के मूल पुरुष । मोर मुकुट की चंद्रिकन यो राजत नंदनंद । मनु ससि माने जाते हैं। सेखर की अकस किये लिखर सत चंद।-बिहारी । विशेष-वेदों में मन को यज्ञों का आदि प्रवर्तक लिस्वा है। मनुआँty-संज्ञा पुं० [हिं० मन ] मन । उ०—(क) मनुआँ चाह ऋग्वेद में कण्व और आंग्रे को यज्ञ-प्रवर्तन में मन का देख और भोगू। पंथ भुलाइ विनासै जोग ।-जायसी । सहायक लिखा है। शतपथ ब्राह्मण में लिखा है कि मन (ख) चंचल मनुआँ दुहुँ दिसि धावत अश्चल जाहि ठहरानो। एक बार जलाशय में हाथ धोते थे; उसी समय उनके हाथ कह नानक यहि विधि को जो नर मुक्ति ताहि तुम मानो। में एक छोटी सी मछली आई। उसने मन से अपनी रक्षा --सेगबहादुर। की प्रार्थना की और कहा कि आप मेरी रक्षा कीजिएम संक्षा पुं० [हिं० मानव ] मनुष्य । उ०-खाय काय लुटाय आपकी भी रक्षा करूँगी । उसने मन से एक आनेवाली ले ऐ मनुओं मेजवान । लेना होय सो लेइ ले यही गोड पाद की बात कही और उन्हें एक नाव बनाने के मैदान।-कधीर । लिये कहा । मनु ने उस मछली की रक्षा की; पर वह संज्ञा पुं० [देश॰] देव कयास । नरमा। मनवौं। मछली थोड़े ही दिनों में बहुत बड़ी हो गई । जब बाढ़ . मनुग-संज्ञा पुं० [सं०] प्रियवत के पौत्र और घुतिमान् के पुत्र आई, तब मन अपनी नाव पर बैठकर पानी पर चले और ! का नाम । अपनी नाव उस मछली की आड़ में बाँध दी। मछली मनुज-संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० मनुजा, मनुजी ] मनुष्य।आदमी। उत्तर को चली और हिमालय पर्वत की चोटी पर उनकी : मनजात-वि० [सं०] मनु से उत्पन । भाव उसने पहुँचा दी। वहाँ मनु ने अपनी नाव बाँध दी। उस बड़े ओघ से अकेले मनु ही बचे थे। उन्हीं से | मनुजाद-वि० [सं०] नर-भक्षक । मनुष्यों को खानेवाला । फिर मनुष्य जाति की वृद्धि हुई। ऐतरेय ब्राह्मण में मनु के संज्ञा पुं० [सं०] राक्षस । अपने पुत्रों में अपनी संपत्ति का विभाग करने का वर्णन मनुजाधिप-संज्ञा पुं० [सं०] राजा । मिलता है। उसमें यह भी लिखा है कि उन्होंने नाभानेदिष्ट | मनुज्येष्ठ-संज्ञा पुं० [सं०] (1) तलबार । (२) लाठी। को अपनी संपत्ति का भागी नहीं बनाया था। निघंटु में । मनुयुग-संज्ञा पुं० [सं० ] मन्वंतर। 'मनु' शब्द का पाठ घु स्थान देव-गणों में है और वाजसनेय मनुश्रेष्ठ-संज्ञा पुं० [सं०] विगु । संहिता में मनु को प्रजापति लिखा है । पुराणों और सूर्य मनुष-संज्ञा पुं० [सं० मनुष्य ] (1) मनुष्य । आवमी । उ०- सिद्धांत आदि ज्योतिष के ग्रंथों के सनुसार एक कल्प में कहो तिन तुम्हें हम मनुष जानत नहीं जगतपितु जगत पौदह मनुओं का अधिकार होता है और उनके अधिकार हित देह धान्यो। करोगे काज जो कियो ना कोड नृपत्ति काल को मन्वंतर कहते हैं। चौवह मनुओं के नाम ये हैं किए जस जाय हम दोष सारो।-सूर । (२) पति ।