पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३६३

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मने २६५४ मनोरम है। यह धातुओं को गलाने की पुरानी धरियों को कूटकर ! वित्री । (३) मदिरा । शराब । (५) बाँस ककोला। बनाई जाती है। आवर्तकी। मनो-वि० दे० "मना"। उ०—(क) जानि नाम जान लीन्हे मनोदंड-संज्ञा पुं० [सं०] मन की वृत्तियों का निरोध । वित्त नरक जापुर कने ।—तुलसी । (ख) शिव सुपूजन माह मने को चंचलता से रोककर एकाग्र करमा। मन का निग्रह। करे । मनहु सो अपकीरति सों भरे ।-गुमान । मनोदाही-वि० [सं० मनोदाहिन् ] [ स्त्री. मनोदाहिनी ] मन को मनजर-संवा पुं० • ] किसी कार्यालय आदि का वह प्रधान . जलानेवाला । हृदयदाही। अधिकारी जिसका काम सब प्रकार की व्यवस्था और देख मनोदुष्ट-वि० [सं०] जिसका मन दूषित हो। जो मन ही से रेग्य कर हो । प्रबंधकर्ता। पापी हो। जिसका अंत:करण कलुषित हो। दुष्ट या खराब मनों-श्रव्य० [हिं० मानना ] मानो। जैसे। उ०-(क) मनो हृदयवाला। सर्व स्त्रीन में कामवामा । हनूमन ऐसी लखीरापरामा।- मनोदेवता-संज्ञा पुं० [सं०] अंतरात्मा । विवक । केशव । (ब) मकराकृत गोपाल के कुंडल सोहत कान। मनोध्यान-संज्ञा पुं० [सं० ] संपूर्ण जाति का एक राग जिसमें धस्यो सनी हिय घर समर व्योढ़ी लसत निसान ।-: सथ शुद्ध स्वर लगते हैं। बिहारी। मनोनिग्रह-संशा पुं० [सं०] चित्त की वृत्तियों का निरोध । मनोकामना-संक्षा ली [हिं० मन+कामना ] इच्छा । अभिलाषा। मन का निग्रह । मन को वश में रखना । मनोगुप्ति । मनोगत-वि० [सं०] को मन में हो। मन में आया हुआ।। मनोमोत-वि० [सं०] (१) जो मन के अनुकूल हो। पसंद। (२) बुना हुआ। मनांगति-संशा ० [सं०] (१) मन की गति । चिस-वृत्ति । · मनोभय-संज्ञा पुं० [सं०] कामदेव । (२) इरछा । आंतरिक अभीष्ट । वाहिश । उ.-किंतु मनोभिराम-वि० [सं०] मनोज्ञ । सदर । विधिना की यही मनोगति थी।-दुर्गेशनंदिनी । मनोभू-संज्ञा पुं० [सं०] कामदेव । मदन । मनोगवी-संशा ० [सं०] इच्छा। अभिलाषा । मनोभूत-संज्ञा पुं० [सं०] चंद्रमा । उ--मनोभूत कोटिप्रभा श्री मनोगुना-संशा स्त्री० [सं० ] मैनसिल । शरीरम् । —तुलसी। मनांगुप्ति-संशा सी० [सं०] जैन शास्त्रानुसार मन को अशुभ मनोमथन-संशा ली. [सं.] कामदेव । प्रवृत्ति में हटाने की क्रिया वा भाव । मन मय-वि० [सं०] मनोरूप । मानसिक । मनांज-संज्ञा पु० [सं०] कामदेव । मदन । मनोमयकांश-संशा पुं० [सं० ] वेदांत शास्त्रानुसार पाँच कोशों मन जव-वि० [सं०1 (1) मन के समान वेगवान् । अत्यंत में से तीसरा कोश । मन, अहंकार और कर्मेंद्रियाँ इस कोश वेगवान् (२) पितृतुल्य। के अंतर्भत मानी जाती हैं। इसे बौद्ध दर्शन में संज्ञा स्कंध संज्ञा पुं० (१) विष्णु । (२) अनिल वा वायु के एक पुत्र का नाम जो उम्पको शिवा नाम की पी से उत्पन्न हुआ था। मन योग-संज्ञा पुं० [सं०] मन को एकाग्र करके किसी एक (३) रुद्र के एक पुत्र का नाम । (४) एक तीर्थ का नाम । पदार्थ पर लगाना । चित्त की वृत्ति का निरोध करके एकान (५) छठे मन्वंतर में होनेवाले इंद्र का नाम । करना और उसे एक पदार्थ पर लगाना । भनं जवा-संज्ञा स्त्री० [सं०) (१) कलिहारी। करियारी। मनायोनि-संज्ञा पुं० [सं०] कामदेव । (२) मार्कण्य पुराणानुसार अग्नि की एक जिह्वा का नाम । मनोरंजन-संज्ञा पुं० [सं०] [वि. मनोरंजक, मनोरंजनीय ] (1) (३) स्कंद की माता का नाम । (५) कौंच द्वीप की एक मन को प्रसन्न करने की क्रिया वा भाव । मनः संप्रसादन। नदी का नाम । मनोविनोद । दिल बहलाव । (२) एक बैंगला मिठाई का मनोजवी-वि० [सं० मनोजविन् ] मनोजव । अति वेगवान् । नाम। बहुत तेज चलनेवाला ।

मनोरथ-संज्ञा पुं० [सं०] अभिलापा । बांका । इच्छा।

मनांजवृद्धि-संज्ञा स्त्री० [सं०] कामवृद्धि, नामक क्षुप। इसे मनोरथतृतीया-संशा स्त्री० [सं०] एक व्रत का नाम जो चैत्र कर्णाट में कामज कहते हैं। शुक्ल तृतीया को होता है। मनोश-वि० [सं०] मनोहर । सुदर। मनोरथद्वादशी-संशा स्त्री० [सं०] एकत का नाम जो चैत्र संज्ञा पुं० (१) कुंद नामक फूल। शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन पड़ता है। मन शता-संशा श्री० [सं०] सुदरता । मनोहरता । खबसूरती । मनोरन-संशा स्त्री० [देश॰] एक प्रकार की कपास । मनोशा-संज्ञा स्त्री० [सं०] (8) कलौंजी । मैंगरैला । (२) जा. | मनोरम-वि० [सं०] { स्त्री. मनोरमा ] मनोज्ञ । मनोहर। सुदर।