पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३६६

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ममकार मया महाराज सुम तो ही साध । मम कन्या ते भयो अपराध । रामायण के उत्तर कार में मय को दिति का पुत्र 'देस्य' लिखा है। मायावी और दुदुभि को उसका पुत्र और ममकार-संज्ञा पुं॰ [सं.] किसी की निश्री संपत्ति । अपनी कमाई मंदोरी को उसकी क. या लिखा है । (७) अमेरिका के हुई संपत्ति। मेक्सिको नामक देश के प्राचीन अधिवासी जो किसी समय ममता-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) 'यह मेरा है' इस प्रकार का बहुत अधिक उन्नत और सभ्य थे और जिनकी सभ्यता भाव । किसी पदार्थ को अपना समझने का भाव । मम्व। भारतवासियों की सभ्यता से बहुत कुछ मिलती जुलती है। अपनापन । (२) स्नेह । प्रेम । (३) वह स्नेह जो माता प्रत्य० [सं०] [ली. मयी] तद्धित का एक प्रत्यय जो तप, का पुत्र के साथ होता है। (४) मोह । लोभ । (५) गर्व । विकार और प्रार्य अर्थ में शब्दों के साथ लाया जाता अभिमान। है। जैसे, आनंदमय । उ०-(1) तप-सिया-राममय ममतायुक्त-वि० [सं०] (१) अभिमानी । (२) कृपण । (३) ! सब जग जानी। कों प्रणाम जोरि जुग पानी । -तुलसी। जिरमें ममता हो। (२) विकार-अमिय मूरिमय चूरन चारू । समन सकल ममन्व-संशा पुं० [सं०] (१) ममता । अपनापन । (२) स्नेह । भव रुज परिवारू। तुलपी। (३) प्राचुर्य--मुद-मंगल- (३) गर्व । अभिमान । मय संत समाजू । जो जग जंगम तीरथराजू।—तुलदी। ममरी-संज्ञा स्त्री० [सं० बरबरी ] बनतुलस। । बबई। संज्ञा स्त्री० ३. "मै"1 ममिया-वि० [हिं० मामा+इया (प्रत्य॰)] जो संबंध में मामा अव्य. दे."मै" के स्थान पर पड़ता हो । मामा के स्थान का। जैसे, मरगल-संज्ञा पुं० [सं० मंदकल, प्रा. मयगल ] मत्त हाथी । मद्- ममिया ससुर, ममिया मास । (इपका प्रयोग संबंधसूचक . मस्त हाथी। शब्दों के साथ होता है।) मयन-संज्ञा पुं० [सं० मदन ] कामदेव । उ--कुंद इंदु सम देह, मामयाउरी-संज्ञा पुं० दे० “ममियौरा"। उमारमन कहना अयन । जाहि दीन पर नेह, करहु कृपा ममियौरा--संज्ञा पुं० [हिं० मामा+औरा (प्रत्य॰)]मामा का घर। मर्दन मयन |-तुलसी। ममाना। मयना-संशा सी०३. "मैना"। मीरा-संज्ञा पुं० [अ० मामीरान ] हलदी की जाति के एक पौधे . मयमंत, मयमस-वि० [सं० मदमस ] मस्त । मदमस । उ० (क) की जय जिसकी कई जातियाँ होती है । यह आँख के रोगों महाराज दसरथ पुनि सोवत । हा रघुपति लटिमन वैदेही की अपूर्व ओपधि मानी जाती है । यह पौधा मशीतोष्ण सुमिरि सुमिरि गुण रोवत । त्रिया चरित मयत न सूझत प्रदेशों में होता है। आसाम के पूर्व के देशों के पहादी उठि पखाल मुख धोवत । महा विपरीत रीत कछु और स्थानों में भी यह बहुत होता है। कुछ दूसरे पौधों की बार बार मुख जोवत ।-सूर। (ख) जोबन अस मयत न जय भी, जो इसमें मिलती जुलती होती हैं, मीरे के नाम कोई । नवे हस्ति जो आँकुस होई ।---जायसी । से विकती है और उन्हें नकली ममीरा कहते है। मयष्ठ, मयष्टक-संशा पुं० [सं०] बनमूंग। मयंक-संज्ञा पुं० [सं० मृगांक ] वद्रमा । उ०-परद-मयंक बदन | मयस्सर-वि० [अ० ] (१) मिलता या मिला हुआ। प्राप्त । छबि सीवाँ । चारु कपोल चिबुक दर प्रीवाँ। तुलसी। उपलब्ध । सुलभ । उ०-सयद महमूद ने यह कहकर मयंद-संज्ञा पुं० [सं० मृगेंद्र ] (1) सिंह। उ.--मानि यो बैठो | पंडितजी को प्रसन्न किया कि आपके इस धूलि-धूकर नरिंद अरि दहि मानो मयंद गयंद पछायो।-भषण । जूते की धूलि ही के प्रसाद से यह कालीन मुझे मयार (२) राम की सेना के एक बानर अधिनायक का नाम । हुआ है। द्विवेदी। उ.-द्विविद मयंद नील नल अंगदादि विकटासि । दधि क्रि० प्र०-होना। मुख केहरि कुमुद गव जामवंत बलरासि । मुहा०-मयस्सर आना-मिलना, प्राप्त होना । मयंदी-संशा स्त्री० [देश. ] लोहे की छोटी सामी जो गाली में मया-संज्ञा स्त्री० [सं०] चिकित्सा । चक्के की नाभि के दोनों ओर उस छेद के मुंह पर खोदकर * संज्ञा स्त्री० [सं० माया ] (1) माया । भ्रमजाल। इंद्र बैठाई जाती है, जिसमें धुरे का सिरा रहता है। सामी। जाल । (२) जगत । संसार । (३) जीव और शरीर का मय-संज्ञा पुं० [सं०] (1) ऊँट । (२) अश्वतर । खच्चर । (३) संबंध जीवन । उ.-तुम जिय में तन जौ लहि मया । घोड़ा। (१) सुख । (५) एक देश का नाम । (७) पुराणा कहे जो जीव करै सो कया ।—जायसी । (४) प्रेम-पाश । नुसार एक प्रसिद्ध दानव का नाम जो बड़ा शिल्पीया।। प्रेम-बंधन । मोह। उ०---(क) बहुत मया सुनि राका इसे असुरों और दैत्यों का शिल्पी कहते हैं। वाल्मीकीय फूला । बला साथ पहुँचा भूला -जायसी । (ख) का रानी