पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३७०

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मरनि २६६१ . मरल फल का मरना। (५) मृतक के समान हो जाना । लजा, | मग्भुक्खा -वि० [हिं० मरना भूख! ] (१) भूग्व का मारा हुआ। संकोच या घृणा आदि के कारण सिर न उठा सकना । भुक्खद। (२) कंगाल । दरिद्र । उ.-(क) यहि लाज मरियप्त ताहि तुम मो भयो नासो मग्म-संज्ञा पुं० दे० "मर्म"। नाथ जू । अब और मुख निरखै न ज्यों रयों राखिये रखुनाथ मरमती-संज्ञा स्त्री/देश.] एक प्रकार का वृक्ष जिसकी लकड़ी जू । केशव । (ख) तब सुधि पदुमावति मन भई । संवरि कड़ी और बहुत टिकाऊ होती है और ग्वती के औजार और विछोह मुरछि मरि गई। जायसी। (५) किसी पदार्थ का । घर के सँगहे आदि बनाने के काम आती है। यह पेय किसी विकार के कारण काम का न रह जाना । जैसे, आग छोटा होता है और भारतवर्ष के प्रायः सभी भागों में का मरना, धूने का मरना, सुहागा मरना, धूल मरना।। मिलता है। यह बीजों से उत्पन्न होता है। मुहा०—पानी मरना=(१) पानी का दीवार का नांव में धंसना। मरमर-संज्ञा पुं० [ यू. एक प्रकार का दानेदार चिकना पत्थर (२) किसी के सिर कोई कैलक आना । उ.-पुनि पुनि पानि जिस पर घोटने में अच्छी चमक आती है। इसमें चूने का वहीं ठाँ मरे । फेर न निकसे जो तहँ पर। जायसी। अंश अधिक होता है और इसे जलाने से अच्छी कली निक- (६) खेल में किसी गोटी वा लड़के का खेल के नियमानु. लती है। यद्यपि संसार के भिन्न भिन प्रदेशों में अनेक रंगों सार किसी कारण से सेल से अलग किया जाना । जैसे, के मरमर मिलते हैं, पर सफेद रंग के मरमर ही को लोग गोटी का मरना, गोइयाँ का मरना इत्यादि। (७) किसी विशेष कर मरमर या संगमरमर कहते हैं। ओमरर काला वेग का शांत होना । बना । जैसे, भूख का मरना, प्यास होता है, उसे संग मूसा कहते हैं। मरमर पत्थर की का मरना, फुल का मरना, पित्तका मरना इत्यादि। उ० मूर्तियाँ, खिलाने, बरतन आदि बनाए जाते हैं और उसकी मुंह मोरे मोरे ना मरति रिसि केशवदास मारहु धौ कहे पटिया और ढोंके मकान बनाने में भी काम आते है। कमल खनाल सों -केशव। (6) आह करना । जलना । अच्छा मरमर इटली से आता है; पर भारतवर्ष में भी यह (९) झनखना ! पछताना । रोना। (१०) हारना । वर्श.. जोधपुर, जयपुर, कृष्णगढ़ और जबलपुर आदि स्थानों में भूत होना । पराजित होना। उ.--तू मन नाथ मार के मिलता है। स्वाँसा । जो वैमरहिं आप कर नासा । चारिहु लोक चार ' मरमरा-संज्ञा पुं० [हिं० मल या अनु. वह पानी जो थोड़ा कहु बासा । गुप्त लाव मन जो सो राता।-जायसी। खारा हो। मरनि* --संज्ञा स्त्री. दे "मरनी"। संशा पुं० [ अनु.] एक पक्षी का नाम । मरनी-संशा स्त्री० [हिं० मरना ] (1) मृत्यु । मौत। (२) दु:ख । वि० जो सहज में टूट जाय। ज़रा सा दबाने पर मर मर कष्ट । ईरानी। उ०—सुनि योगी की अम्मर करनी। शब्द करके टूट जानेवाला। न्योरी विरह बिथा की मरनी।-जायसी । (३) वह शोक मरमगना-त्रि० अ० [अनु०] (१) मरमर शब्द करना । (२) जो किसी के मरने पर उसके संबंधियों को होता है। अधिक दवाव पाकर पेड़ की शाखा व सकपी आदि का (१) वह कृत्य जो किसी के मरने पर उसके संबंधी लोग मरमर शब्द करके देवना। 30-भयो भूरि भार धरा करते हैं। घलत जरा कुमार करत तिकार चार दिग्गज सहित सोग । यौ०-मरनी करनी-मृत्यु और मृतक की अंत्येष्टि क्रिया । गिरिधरदास भूमि मंडल मरमरात अति घबरात से परात मरबुली-संज्ञा स्त्री० [देश॰] एक प्रकार का कंद जो पहावी प्रदेशों हैं दिसन लोग। परम बिसेस भार सहि ना सकत सेस में उत्पन्न होता है । इसके टुकड़े गज़ गज भर के गड्ढे खोद एक सिर ब्रह्म अंश सहस धरन जोग। लटकि लटकि सीस कर बोए जाते हैं। बोवाई सदा हो सकती है पर गर्मी के झटकि सटकि चित्त अकि अटकि डार कि पकि दिनों में इसमें पानी देने की आवश्यकता होती है। यह दो भोग।-गोपाल। प्रकार की होती है-मीठी और तीक्ष्ण या गला काटनेपाली। मरम्मत-संज्ञा स्त्री० [अ० ] किसी वस्तु के टूटे फूटे अंगों को ठीक दोनों ने तीखुर बनाया जाता है। इसकी जद को आलवा ___ करने की क्रिया वा भाव । दुरुस्ती। जीर्णोद्धार । जैसे, कंद भी कहते हैं। केंद को धोकर उसके लण्छे बनाते हैं। मकान की मरम्मत, घड़ी की मरम्मत । फिर लच्छे को दवाकर वा कुचलकर रस निकालते है । मुहा०-मरम्मत करना=(१) टूटे फूटे अंशो को दुरुस्त करना जिसे सुखाकर सत्त बनता है जो तीसुर कहलाता है। रस वा सँवारना । (२) पीटना । ठोंकना । मारना । निकाले हुए खोइए को भी सुखा और पीसकर कोका के मरल-संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार की मछली । यह दो हाथ नाम से बेचते हैं। इसकी खेती पहाड़ों में अधिकता से तक लंबी होती है और दलदलों या ऐसे तालाबों में पाई होती है। आती है जिनमें घास फूस अधिक उगता है।