पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३७७

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मर्दना २६६८ मईन मर्दना-कि० म० ( मं० मईन ! (5) अंग आदि पर कोर में हाथ प्रबंध भी समुचिन नहीं था । भारतवर्ष की ठीक ठीक मनुष्य- फेरना । मालिश करना । मलना । उ०—तन मर्दति पिय। गणना का आरम्भ १८८१ से माना जा सकता है । यह के तिया, दरसावति झुठ रोप-पभाकर । (२) उबटन मनुष्य-गणना १७ फरवरी को हुई थी। तब से प्रति दसवें तेल आदि को अंगों पर चुपड़कर बलपूर्वक चुपड़े हुए . वर्ष प्रत्येक ग्राम और नगर में रहनेवालों का नाम, आयु, स्थान पर बार बार हाथ फेरना जिससे अंग में उसका सार धर्म, जाति, शिक्षा, भाषा, व्यापार आदि का विवरण वा स्निग्ध अंश घुस जाय । मलना । (३) चूर्णित करना ।। लिखा जाता है। तोड़ फोर सलना । (४) मसककर विकृत करना । नाश (२) किसी स्थान में रहनेवाले मनुष्यों की संख्या । जन- करना । कुचलना । रौदना । उ०-(क) कबहुँ विटप संख्या । आबादी। भूधर उपारि पर संन बरकरवे । कबहूँ बाजि सन बाजि मर्दि मर्दुमी-संज्ञा स्त्री० [फा०1 (1) मरदानगी । पौरुष । वीरता । गजराज करकरवे । -तुलसी । (ख) खायेसि फल अरु विटप (२) पुसत्व । उपारे । रच्छक मदि मदि महिसारे।-तुलसी । (ग) जेहि क्रि० प्र०-दिखलाना ।-रखना । शर मधु भद मदि महासुर मर्दन कीन्हो। मायो कर्कश ' मदद-वि. दे. "मरद"। नरक शंख हनि शंग्व सुलीन्हो। -केशव । महक-वि० [सं०] (1) मर्दन करनेवाला । मर्दनकारक । (२) मर्दानगी-संज्ञा स्त्री० दे. "मरदानगी"। दबानेवाला । तिरोभावक । मर्दाना-वि० [फा०] (१) पुरुष संबंधी । (२) मनुष्योचित । मईन-संज्ञा पुं० [सं०] [ वि० मर्दित ] (1) कुचलना । रौंदना । (३) वीरोचित । (४) वीर । साहसी । (५) पुरुष का सा। उ०—(क) भगवान कर, इस दरबार में तुझे वही मिले जो पुरुषवत् । महादेवजी के सिर पर है और तुझे वह शास्त्र पढ़ाया जाय मर्दित-वि० दे. "मति "। जो काँटों को मईन करता है। हरिश्चंद्र । (ख) तेरा नाम मर्दी-संज्ञा स्त्री॰ [फा०] मरदानगी । वीरता । बहादुरी। तभी है, जब तू इस रावण सरीखे शत्रु का मुकुट अपने मदुम-संज्ञा पुं० [फा०] मनुष्य । चरण-तल में मर्दन करे।-राधाकृष्ण । (२) दूसरे के यौ०-मदुमशुमारी। अंगों पर अपने हाथों से बलपूर्वक रगड़ना । मलना। मर्दुमशुमारी-संशा स्त्री० [फा०] (१) किसी देश में रहनेवाले जैसे, तैल मईन करना । उ०—(क) तेल लगाइ मनुष्यों की गणना। मनुष्य-गणना । कियो रुचि मईन वस्त्रादि रुचि रचि धोये। तिलक बनाइ विशेष-यद्यपि भारतवर्ष के मदरास और पंजाब प्रांतों में चले स्वामी है विषयनि के मुख जोये।-सूर । (ख) हरि समय समय पर वहाँ के रहनेवालों की गिनती करने की मिलन सुवामा आयो । विधि करि अरघ पाँवड़े दीन्हे अंतर प्रथा बहुत पूर्व से चली आती थी, पर पाश्रात्य देशों में प्रेम बढायो । आदर बहुत कियो यादवपति मईन करि नवीन प्रणाली की मनुष्य-गणना की प्रथा रोम में आरम्भ अन्हवायो। चोवा चंदन और कुमकुमा परिमल अंग चढ़ायो। हुई है, जहाँ स्वतंत्र मनुष्यों के कुटुंब, संपत्ति, दास और -सूर । (ग) पादप निति मईन करई । तन छाया सम मुखिया की परिस्थिति आदि का विवरण यथासमय लिख निति अनुसरई।--शं. दि०। (३) तेल, उयटन आदि कर मनुष्यों की गणना की जाती थी। इंगलैंड में सबसे शरीर में लगाना ।मलना । उ०-भाव दियो आवेंगे श्याम। पहले मनुष्य-गणना सन् १८०१ में प्रारम्भ हुई और १८११ । अंग अंग आभूषण साजति राजति अपने धाम । रति रण में आयरलैंड में गणना की चेष्टा हुई। पर सन् १८५1 तक जानि अनंग नृपति सों आप नृपति राजति बल जोरति । की मनुष्य-गणना परिपूर्ण नहीं कही जा सकती। सन् अति सुगंध मईन अंग अंग ठनि यनि बनि भूषन भेषति । १८६१ में नियमित रूप से इंगलैंड, स्काटलैंड और आयरलैंड -सूर । (४) वैद्व युद्ध में एक मल्ल का दूसरे मल की गर्दन में मनुष्यगणना प्रारम्भ हुई, जिसमें प्रत्येक गाँव और आदि पर हाथों से घस्सा लगाना । घस्सा । उ०--आकर्षण नगर के मनुष्यों की आयु, वैवाहिक संबंध, पेशे, जन्म महन भुज-बंधन । दाँव करत भेकर धरि धन ।गोपाल । स्थान आदि का सविस्तर विवरण लिखा गया; और सन् (५) बस । नाश | उ.--जेहि शर मधु-मद मदि महासुर १८७1 में व्यवस्थित रूप से राजकीय वा इंपीरियल मनुष्य मईन कीन्हो।मायो कर्कश नरक शंख हनि शंख सुलीन्हो। गणना हुई। ठीक इसी समय अर्थात् सन् १८६७ और -केशव । (६) रसेश्वर दर्शन के अनुसार अठारह प्रकार १८७२ में भारतवर्ष में भी मनुष्य गणना प्रारम्भ हुई। पर के रस-संस्कारों में दूसरा संस्कार । इसमें पारे आदि को उस समय काश्मीर, हैदराबाद, राजपूताने और मध्यभारत ओषधियों के साथ स्वरल करते या घोंटते हैं। घोंटना । (७) के देशी राज्यों में मनुष्य-गणना नहीं हुई और गणना का . पीसमा । घोंटना । रगड़ना।