पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

फेर २३३१ फेरना सिलसिला डालना । तार बाँधना । केर को बात-धुभाव की (4) उलझाय । बखेवा । संझट । जंजाल प्रपंच । जैसे,- बात । बात जो सीधी सादी न हो। (क) रुपए का फेर बड़ा गहरा होता है। (ख) तुम किस (२) मोह। झुकाव । फेर में पड़े हो, जाओ अपना काम देखो। महा०-फेर देना-घुमाना । मोड़ना । रुख बदलना । मुहा०--निमानवे का फेर सौ रुपए पूरे करने की धुन । रुपया (३) परिवर्तन । उलट पलट । रद बदल । कुछ से कुछ । बढ़ाने का चसका। होना। विशेष-इस पर यह कहानी है कि दो भाई थे जिनमें एक यौ०-उलट फेर । दरिद्र और दूसरा धनी था। पहला भाई दरिद्र होने पर मुहा०-दिनों का फेर समय का परिवर्तन । जमाने का ! भी बड़े सुख चैन से रहता था। उसकी निश्चितता देख बदलना । एक दशा से दूसरी दशा की प्राप्ति ( विशेषतः अच्छी । बड़े भाई को ईर्षा हुई। उसने एक दिन धीरे से अपने मे बुरी दशा की )। उ०—(क) दिनन को फेर होत मेरु होत दरिद्र भाई के घर में निभानवे रुपए की पोटली डाल दी। माटी को । (ख) हंस अगा के पाहुना कोइ दिनन का फेर । दरिद्र रुपए पाकर बहुत प्रसन्न हुआ, पर गिनने पर उसे बगुला कहा गरबिया बैठा पंख बिखेर ।-कबीर। (ग) मरत मालूम हुआ कि सौ में एक कम है। तभी से वह सौ रुपए प्यास पिंजरा पो सुभा समय के फेर । आदर दै दै बोलि पूरे करने की चिंता में रहने लगा और पहले से भी अधिक यत बायस बलि की बेर।-विहारी। कुफेर-(१) बुरे दिन । कष्ट से जीवन बिताने लगा। बुरी दशा । (२) बुरा अवसर । बुरा दांव । सुफेर-(१) अच्छे (९) युक्ति । उपाय। बंग। कौशल-रचना । तदबीर । दिन । अच्छी दशा । (२) अच्छा अवसर । अच्छा मौका । डौल । उ०-(क) फेर कळू करिपोरि ते फिरि चितई मुस- उ.-पेट न फूलत बिनु कहे कहत न लागत बेर । सुमति काय । आई जामन लेन को नेह खली जमाय !-बिहारी। विचारे बोलिए समुझि कुफेर सुफेर । —मुलसी। (ख) आज तो तिहारे कूल बसे रहैं रूखमूल सोई सूल (४) बल । अंतर । फार्क । भेद। जैसे,—यह उनकी कीबो पैरो रात ही बनाययो । बात है न आरस की, रति समझ का फेर है। उ०—(क) कबिरा मन दीया नहीं तन न सियारस की, लाख फेर एक बार तेरे पार जायबो।- करि द्वारा जेर । अंतर्यामी लखि गया बात कहन का फेर । हनुमान । —कबीर । (ख) नदिया एक घाट बहुतेरा। कहै कबीर कि यौ०-फेरफार । मन का फेरा ।—कबीर । (ग) मीता! तू या बात को हिये । मुहा०-फेर लगाना-उपाय या ढंग र वन।। युक्ति लगाना । गौर करि हेर । दरदवंत बेदरद को निसि बासर को फेर।- (१०) अदला बदला । एवज़ । कुछ लेना और कुछ देना। रसनिधि । (घ) दरजी चाहत थान को कतरन लेहुँ चुराय। यौ०-हेरफेर-लेन देन । व्यवसाय । जैसे,—यहाँलाखों का हेर- प्रीति ब्योंत में, भावते ! बड़ो फेर परि जाय।-रसनिधि । केर होता है। यौ०-हेर फेर । (११) हानि । टोटा । घाटा । जैसे,—उसकी बातों में आकर (५) असमंजस। उलझन। दुबधा । अनिश्चय की दशा । मैं हज़ारों के फेर में पड़ गया। कर्तव्य स्थिर करने की कठिनता । जैसे, वह बदे फेर में मुहा०-फेर में पड़ना-हानि उठाना । घाटा सहना । पड़ गया है कि क्या करे । उ०—घट महँ बकत चकत भा (१२) भूत प्रेत का प्रभाव । जैसे,—कुछ फेर है इसीसे वह मेरू। मिलहि न मिलहि परा तस फेरू।—जायसी। अच्छा नहीं हो रहा है। मुहा०-फेर में पड़ना=असमंजस में होना । कठिनाई में पढ़ना । * (१३) ओर । दिशा। पार्श्व । तरफ। उ०-सगुन फेर में डालना असमंजस में डालना । अनिश्चय की कठि होहिं सुदर सकल मन प्रसन्न सब केर । प्रभु आगमन नता सामने लाना । किंकर्तव्य-विमूद करना । जैसे, तुमने जनाव जनु नगर रम्य चहु फेर--तुलसी। तो उसे बड़े फेर में डाल दिया।

  • अव्य. किर । पुनः । एक बार और । उ०—(क)

(६) भ्रम । संशय । धोखा । जैसे,इस घर में न सुनि रवि नाउँ रतन भा राता। पंडित फेर उहै कह रहना कि रुपया हजम कर लेंगे। उ.-माला फेरत जुग बाता ।-जायसी । (ख) ऐहै न फेर गई जो निशा सन गया गया न मन का फेर । कर का मनका छोर के मन का यौवन है धन की परछाहीं। पचाकर। मनका फेर।-कबीर।(७) चाल का चार वट चक्र । चाल संज्ञा पुं० [सं० ] गाल । गीदा। बाजी । जैसे,--तुम उसके फेर में मत पड़ना वह बड़ा धूर्त है। फेरना-कि० सं० [सं० प्रेरण, प्रा० पेरन] (१) एक ओर से दूसरी मुहा०---फेर में आना या पहना-धोखा खाना । फेरफार की ओर ले जाना । भित्र दिशा में प्रवृत्त करना । गति बद- बात-चालाकी की बात। लमा। जुमाना। मोदना । जैसे,-गादी पश्चिम जा रही