पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३८१

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मलनी मलमास करना । उ.--रन मत्त रावण सकल सुभट प्रचर भुजबल नागर पान । रेदा होकर चालते करते बहुत गुमान ।- दलमले। -तुलसी । (२) मसलना। हाथों से रगड़ना। कबीर । (ख) कारी थोरे दाम की आवै बहुतै काम । खासा घिसना । हाथ मलना=(१) पछताना । पश्चात्ताप करना । .. मलमल वाफता उनकर राख मान-गिरधरराय । उ.-नगर बार करतल कहूँ मलि के निज कर पीठ रदन मलमला-संशा पुं०[देश० ] कुलके का साग ।। मो दलि के। गोपाल । (२) क्रोध प्रगट करना । उ.- मलमलाना-क्रि० स० [हिं० मलना ] (1) बार बार स्पर्श कराना। इलो सुकर्मा बीर भलो अश्वर तन धारे । मलो करहि भरि ' लगातार छुलाना । (२) बार बार बोलना और ढकना । शोध हलोरन नद बहुवारे।गोपाल। जैसे, पलक मलमलाना। (३) पुनः पुनः आलिंगन करना। (२) किसी तरल पदार्थ वा चूर्ण आदि को किसी तल पर उ-नवल सुनि नवल पिया नमो नयो दरश विवि तन रखकर हाथ में रगबना । मालिश करना । जैसे,-तेल मलमले प्राणपति पाय को अधर धन्यो री। प्रीति की रीति मलना, सुरती मलना । उ०—(क) मधु सो गीले हाय है' प्राण संचल करत निरखि नागरी नैन चिबुक सो मोरी । ऐंचो धनुष न जाइ । ने पराग मलि कुसुम शर बेधत मोहि तत्र काम केलि कमनीय चंदप चकार चातक स्वाति बंद बनाय ।-गुमान । (ख) चलेउ भूप पुरुमित्र मित्रहुति पन्यो री । सुनि सूरदास रख राशि स्वरपि के चली जनु मगध मित्र मन । पट पवित्र मनि चिन्न सहित मलि इन हरति ले कुछ सु गोरी ।-मूर । धरे तन । गोपाल । (३) किसी पदार्थ को टुकड़े टुकड़े मलमल्लक-संशा पुं० [सं०] कोपीन । या पूर्ण करने के लिए हाथ से रगडना या दबाना । मम : मलमा-संशा पुं० [हिं० मलमा ] टूटे फूटे मकानों के गिरे पड़े लना। मीजना । उ०—जो कहो तिहारो बल पायें बाएँ पत्थर, रोड़े आदि सामान । मलया। हाथ नाथ। औगरी मो मेरु मलिडारों यह किन मैं-मलमास-संज्ञा पुं० [सं०] वह अमांत मास जिसमें संक्रांति न हनुमन्नाटक । (४) मरोड़ना । ऐंठना । जैसे, मुँह मलना, । पड़ती हो। इसे अधिक मास भी कहते हैं। नाक मलना, कान मलना। विशेष-यों तो साधारण रीति से बारह महीने का वर्ष माना संयो०क्रि०-डालना।--देना। जाता है, पर कभी कभी तेरह महीने का भी वर्ष होता है। (५) हाथ से बार बार रगडना या दबाना । जैसे, छाती पर यह बात केवल चांद्र मास में ही होती है; और मारत मलना, गाल मलना। सदा वर्ष में बारह ही होते हैं। चांद्र मास की वृद्धि का मलनी-संज्ञा स्त्री० [हिं० मलना | आठ दस अंगुल लंबा, दो अंगुल हेतु यह है कि दिन रात्रि का मान, जिसे दिनमान कहते चौदा, सुडौल और चिकना कतजन के आकार का बाँस हैं, ६० दंड का माना जाता है। पर एक तिथि का मान का एक टुकड़ा जिससे कुम्हार मलकर सुराहियों आदि ५८ दंड का माना जाता है। इसलिए ३० दिन में ३१ चिकनी करते हैं। तिथियाँ पड़ती है। इस हिसाब से चांद्र वर्ष और सामान्य मलपंकी-वि० [सं. मलपंकिन् ] (1) मलीन । मैला । (२) वर्ष में प्रति वर्ष बारह दिन का अंतर पड़ा करता है जो कीचड़ में सना हुआ। पाँच वर्ष में पूरे दो महीने का अंतर डाल देता है। ऐसे मलपू-संज्ञा पुं० [सं०] कमर । अधिक महीने को मलमास कहते हैं। वह चांद्र मास, मलवा-संश्था पुं० [हि. मल ?1 (1) कृदा कर्कट । कतवार । (२) जिसमें सूर्य की संक्रांति पड़ती है, शुद्ध मास कहलाता टूटी या गिराई हुई इमारत की ईंटें, पत्थर और चूना है। पर संक्रांति वर्जित माप तीन प्रकार के माने गए हैं आदि । (३) एक प्रकार की उगाही वा बेहरी जो गाँव में जिन्हें भानुलंधित, क्षय और मलमास कहते हैं। भानुलंधित पट्टीदारों से दौरे के हाकिमों आदि के खर्च के लिए वसूल . और मलमास वे माप कहलाते हैं जिनमें सूर्य संक्रांति न की जाती है। पड़े। पर यदि सूर्य संक्रांति शुक्र प्रतिपदा को पड़ी हो, मलभुज-संज्ञा पुं० [सं०] कौवा । तो उसे क्षयमास कहते हैं। बारह महीने दो अयनों मलभदिनी-संका मी० [सं० ] कुटकी। में बाँटे गए है-एक वैशाख से और तक, दूसरा कात्तिक मलमल-संशा स्त्री० [सं० मलमलक ] एक प्रकार का पतला से चैत तक । यह मलमाय प्राय: फागुन से अगहन तक काला जो बहुत बारीक सूत से बुना जाता है। प्रचीन : दस ही महीनों में पढ़ता है। शेष दो महीनों में से पूस में काल में यह कपका भारतवर्ष में, विशेष कर बंगाल और । सो कभी मलमास पड़ता ही नहीं; और माघ में बहुत ही बिहार में बुना जाता पा और वहीं से भिन्न भिन्न देशों में कम पड़ा करता है। इसका नियम यह है कि यदि दक्षिणा- जाता था। अब तक नाके और मुर्शिदाबाद में अच्छी मल पन और उत्तरायन दोनों अयनों में मलमास युक्त मास मल बनती है। उ.--(क) मलमल खासा पहनते खाते प, तो दक्षिणायन का मास भानुलंधित और उत्तरायण का