पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३८७

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मालकाजुन २६७८ मवेशीखाना एक भेद का नाम जिसमें चार विराम होते है। विशेष इस शब्द का प्रयोग रुपए और गाँव के अंशों का मल्लिकार्जुन-संक्षा पुं० [सं०] एक शिव लिंग का नाम जो श्री चोतन करने के लिए होता है। जैसे, मवाजी दस आना, शैल पर है। मवाजी पाँच वीधा छः विस्था । मलिगंधी-संज्ञा पुं० [सं० ] अगर । 'मवाद-संहा पुं० [अ०] (1) सामग्री। सामान । मसाला । (२) पीव । मलिनाथ-संज्ञा पुं० [सं०] जैनियों के उन्नीसवें तीर्थंकर का नाम। मवास-संज्ञा पुं॰ [सं०1 (1) रक्षा का स्थान । प्राणस्थल । मली-संज्ञा स्त्री० [सं० ] (1) मल्लिका । (२) सुदरी वृत्ति का . आश्रय । शरण । उ०—(क) चलन न पावत निगत पथ जग उपजौ अति वास । कुच उतंग गिरिबर गौ मीना मल्लू-संज्ञा पुं० [सं० 1 (1) भाल । (२) बंदर । मैन मवाप।-विहारी । (ख) दैन लगै मन मृगहि जब मल्हनी-संक्षा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की नाव जिसका अगला | विरह अहेरी त्रास । जगह लेत है दौरि तप प्रीतम सुबन भाग अधिक चौड़ा होता है। मवास। सनिधि। मल्हराना-क्रि० स० [सं० मल्ह गोस्तन ] चुमकारना । पुच-| मुहा०-मवास करना=बसेरा करना । निवास करन। । उ०-- कारना । मल्हाना । उ०-रुचिर सेज ले गई मोहन को कहै पद्माकर कालिंदी के कदैछन पै, मधुपन कीन्हों आइ भुजा उछंग सुवावति है। सूरदास प्रभु सोई कन्हैया लहरा महत मवासो है। पाकर । वति मल्हरावति है। -सूर। (२) किला । दुर्ग । गद । उ०-(क) हठी मरहठी ता में विशेष-गौओं को दुहते समय जब दुहनेवाला उनके स्तन से राख्यो न प्रवास कोऊ छीने हथियार डॉल बन बन जारे उच निकालता है, तब नई गौएँ बहुत उछलती कूदती और से ।-भूषण (ख) रहि न सकी सब जगत में सिसिर लात चलाती हैं। इसके लिए दुहनेवाले उन्हें सुभकारते सीत के त्रास । गरमि भाज गढ भई तिष कुच अचल पुचकारते है जिससे वे शांत हों और दुहने दें। इसीलिए मवास ।-विहारी। (ग) सिंधु तरे बने बीर दले खल जारे मलह शब्द से, जिसका अर्थ गोस्तन है, मलहराना, मल्हाना, है लंक से बंक मवासे । -तुलसी । (३) वे पेड़ जो दुर्ग के मल्हारना आदि क्रियाएँ रमकारने के अर्थ में बनी हैं। प्राकार पर होते हैं। उ.-जहाँ तहाँ होरी जरै हरि होरी मल्हाना-क्रि० स० [सं० मल्हास्तन ] चुमकारना । पुच है। मनहुँ मवासे आगि अहो हरि होरी है।-सूर। कारना। मल्हराना । उ०-(क) यशोदा हरि पालनहि मवासी-संज्ञा स्त्री० [हिं० मवास ] छोटा गढ़ । गकी। उ०-(क) झुलावै । हलावै दुलराइ मल्हाय जोइ सोई कछु गावै। जम ने जाइ पुकारिया डंडा दीया डारि । संत प्रवासी सूर । (ख) बहरू छयीले छौना छगन मगन मेरे कहति रहा फांसी न परहमारि। कबीर । (ख) कोट किरीट किये मल्हाइ मल्हाई । सानुज हिय हुलसति सुलसी के प्रभु की मतिराम कर चदि मोर-पखानिमवासी । मतिराम । ललित लरिकाई।-तुलसी । (ग) कहति मल्हाइ मल्हाइ | मुहा०-सवासी तोड़ना=(१) गढ़ तोड़ना । (२) विजय करना । उर छिन छिन छगन छबीले छोटे छैया। मोद कंद कुल कुमद संग्राम जीतना । उ०-कवदत्तै मावासी तोरी । कय सुकदेव चंद मेरे रामचंद्र रघुरैया।-तुलसी । तोपची जोरी। कबीर। मल्हार-संज्ञा पुं० दे. "मलार"। संज्ञा पुं० (१) गढ़पति । किलेदार । उ.--(क) आइ मिले मल्हारना-कि० म० दे. "मल्हाना"। सब विकट मवासी। चुक्यौ अमल ज्यों रैपत खासी।- मवकिल-संज्ञा पुं० [अ० मुवकिल ] [ स्त्री० मविकला (क०)] (1) लाल । (ख) हुते शत्रु जेते भये ते भिखारी । मवासे मवा- अपनी ओर से वकील वा प्रतिनिधि नियत करनेवाला पुरुष । सीन की जोम झारी ।-सूदन । (२) प्रधान । मुखिया। मुकदमे में अपनी ओर से कचहरी वा न्यायालय में काम अधिनायक । उ०-गोरस चुराइ खाइ बदन दुराइ राखै करने के लिए अधिकारी प्रतिनिधि नियत करनेवाला मन न धरत वृदावन को मवासी । सूर श्याम सोहि घर पुरुष। (२) किसी को अपना काम सुपुर्द करनेवाला। घर सब जानै इहाँ को है तिहारी दासी। सूर। असामी। मवेशी-संज्ञा पुं० [अ० मवाशी ] पशु । ढोर । डंगर। मवर-संशा पुं० [सं० ] बौद्ध मतानुसार एक बहुत दड़ी संम्बा।। यौ०--मवेशीखाना । मवरिखा-वि० [अ० ] लिखित । मवेशीखाना-संज्ञा पुं॰ [फा०] वह बाड़ा जिसमें मवेशी रखे मवाजिब-संज्ञा पुं० [अ० ] नियमित मात्रा में नियमित समय पर जाते हैं। मिलनेवाला पदार्थ । जैसे, वेतन, महसूल आदि । उ० विशेष-वर्तमान सरकारी राज्य में स्थान स्थान पर ऐसे फकीरों के मवाजिब बंद हो गए।-शिवप्रसाद । मवेशीखाने है जिन में ऐसे मवेशी बंग किये जाते है जिन्हें मवाजी-वि० [अ० ] अनुमान किया हुआ। कृषक उनकी खेती को हानि पहुँचाने पर हॉककर ले जाते