पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३८८

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२६७९ मष्णार - हैं। वे मवेशी तब तक उस मवेशरिखाने में बंद रहते हैं। मुहा०--मशीखत बधारना-बद बढ़कर बाते करमा । शेखी जब तक कि उनका मालिक प्रति मवेशी कुछ देर और बघारना। खूराक खर्च वहाँ के कर्मचारी को नहीं दे देता । मवेशीखाने मशीन-संशा स्त्री० [ अं०] किसी प्रकार का यंत्र जिसकी सहायता का कर्मचारी मुहरि र मवेशी कहलाता है। से कोई चीज़ तैयार की जाय । कल । मश-संज्ञा पुं० [सं०] (1) क्रोध । (२) मच्छर । मशीर-संज्ञा पुं० [अ०] मशविरा देनेवाला। सलाह देनेवाला मंत्री। मशक-संज्ञा पुं० [सं०] (1) मच्छक । (२) गार्य गोत्र में उत्पन्न | मक-संज्ञा पुं० [अ० ] किसी काम को अच्छी तरह करने का एक आचार्य का नाम । यह एक कल्पसूत्र के रचयिता थे। अभ्यास। (३) महाभारत के अनुसार शकद्वीप में क्षत्रियों का एक मशाक-वि० [अ० जिसे कोई काम करने का खूब अभ्यास निवास स्थान । (४) मसा नामक चर्म रोग। हो। अम्बस्त। संज्ञा स्त्री० [फा०] चमड़े का बना हुआ थैला जिसमें पानी | मष-संज्ञा पुं० दे. "मव"। भरकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं। मषि-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) काजल । (२) सुरमा। (३) स्याही। मशफकुटी-संज्ञा स्त्री० [सं० ] मच्छर हॉकने की चौरी। मषिकपी-संज्ञा स्त्री॰ [सं.] दावात । मशकहरी-संज्ञा स्त्री० [सं०] मसहरी। मषिघटी-संज्ञा स्त्री० [सं० ] दावात । मशकावती-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक नदी का नाम । मषिधान-संज्ञा पुं० [सं०] दावात । मशक्कत-संज्ञा स्त्री० [अ० ] (1) मेहनत । श्रम । परिश्रम । (२) मषिपण्य-संज्ञा पुं० [सं० ] वह जो लिखने का काम करता हो। यह परिश्रम जो जेलवाने के कैदियों को करना पड़ता है। लेखक। जैसे, 'चकी पीसना, कोहू पेरना, मिट्टी खोदना, रस्सी | मषिप्रसू-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) दावात । (२) कलम । घटना आदि। मषिमणि-संज्ञा स्त्री० [सं० ] दावात । मशगूल-वि० [अ० ] काम में लगा हुआ । प्रवृत्त । लीन । मषी-संज्ञा स्त्री० दे. "मषि"। मशरू-संज्ञा पुं० [अ० मशरुअ ] एक प्रकार का धारीदार कपड़ा मष्ट-वि० [सं० मष्ठ, प्रा. मष्ट=मट्ठ ] (१) संस्कार-शून्य । जो जो रेशम और सूत से बुना जाता है । मुसलमान स्त्री पुरुष भूल गया हो। (२) उदासीन । मौन । उ.--सो अवगुन इसका पायजामा बनाकर पहनते हैं। यह अधिकतर बनारस कित कीजिये जिव दीजै जेहि काज । अब कहना है कछु में बनता है। नहीं मष्ट भलो पविराज । जायसी। मशविरा-संशा पुं० [अ० सलाह । परामर्श मुहा०-मष्ट करना=चुप रहना। मुँह न खोलना । उ-- यौ०-सलाह-मशविरा--परामर्श । उ.--उन्होंने समझा कि (क) बोलत लखनहिं जनक डेराहीं। मष्ट करहु अनुचित सुदूर पूर्व में भी एक प्रबल शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ और भल नाहीं।-तुलसी । (ख) बूझेयि सचिव उचित मत बहे थड़े राजकीय मामलों में अब आगे उससे भी सलाह कहहू। ते सब हँसे मष्ट करि रहलू।--तुलसी । (ग) मशविरा करने की ज़रूरत पदा करेगी।-द्विवेदी। ग्वालिनी श्याम तनु देव री आयु तन देखिये। भोत जब मशहर-वि० [अ० ] प्रख्यात । प्रसिद्ध । होइ तव चित्र अवरेखिये । कहाँ मेरो काह की तनक सी मशान-संज्ञा पुं० [सं० श्मशान ] मरघट । उ०—बसे मशान भूत आँगुरी बड़े बड़े नस्वनि के चिन्ह तेरे। मष्ट करु सै गरे सँग लिये। रक्त फूल की माला दिये। हलस्टू० । लोगु अकवार भुज कहाँ पाये हैं श्याम मेरे ।-सूर । मष्ट मशाल-संज्ञा पुं० [अ०) एक प्रकार की मोटी बत्ती जिसके नीचे धारना मौन धारण करना । चुप्पी साधना । उ०-सुन्यो पकड़ने के लिए काठ का एक दस्ता लगा रहता है और जो वसुदेव दोउ मंदसुन आये । तिया सों कहत कबु सुनस हाथ में लेकर प्रकाश के लिए जलाई जाती है। यह कपड़े हैरी नारि, रातिह सपन कछु ऐसो पाये । गए अक्रूर की बनाई जाती है और चार पाँच अंगुल के व्यास की सपा तेहि नृपति मांगे बोलि, तुरस आए आनि कस मारे । कहो दो लाई हाथ लंबी होती है। जलते रहने के लिए इसके पिय कहत सुनिह बात पौरिया, जाय कहिलै रहो मष्ट धारे। मुँह पर बार बार तेल की धार डाली जाती है। -सूर । मष्ट मारना-मौन धारण करना । चुपचाप रहना । महा-शाल लेकर वा जलाकर हूँदना अच्छे तरह उ.-..-.एक दिन यह रात्रि समय सी के पास सेज पर तन ढूँढ़ना । बहुत ढूँदना । छीन मन मलीन मष्ट मारे बैठा मन ही मन कुछ विचार मशालची-संहा पुं० [फा०] [स्त्री. मशालचिन] मशाल दिखलाने करता था। लल्लू। वाला । मशाल जलाकर हाथ में लेकर दिखलामेवाला। मष्णार-संज्ञा पुं० [सं०] ऐतरेय ब्राह्मण के अनुसार एक प्राचीन मशीखत-संशा स्त्री० [अ० ] शेखी । धर्म। स्थान का नाम।