पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३९४

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महतधान (२) भोग की प्रबल कामना । प्रसंग की उत्कट इच्छा। महंताई-संशा स्त्री० ३० "महंती"। क्रि०प्र०-आना ।-उठना ।-चढ़ना ।-मदना ।—में । महंती-संज्ञा स्त्री० [हिं० महंत+ (प्रत्य॰)] (1) महत का भाव। माना। (२) महंत का पद । महा-मस्ती निकालना-प्रसंग करके वीर्यपात करना । संभोग क्रि० प्र०-पाना ।—मिलना। करके वीर्य स्खलित करना । महँदी-संशा स्त्री० दे० "मेंहदी"। (३) वह स्राव जो कुछ विशिष्ट पशुओं के मस्तक, कान, मह-अन्य ० ० "महँ"। आँख आदि के पास से कुछ विशिष्ट श्वसरों पर, विशेषतः वि० [सं० महत् ] (1) पहा । अति । बहुत । उ०-पिय उनके मस्त होने के समय होता है। मद । जैसे, हाथी की पिन तिय मह दुखिया जान । तब योगौरीकियो वस्वान।-- मस्ती, ऊँट की मस्ती। लल्लू । (२) महत् । श्रेष्ठ । था। कि०प्र०-टपकना ।-बहना । महक-संशा स्त्री० [हिं० गमक ] गंध । बास । गमक ।। (४) वह स्राव जो कुछ ििशष्ट वृक्षों अथवा पत्थरों आदि यो०--महकदार । महकीला। में से कुछ विशेष अवसरों पर होता है। जैसे, नीस की महकदार-वि० [हिं० महक+फा० दार (प्रत्य॰)] जिसमें महक मस्ती । पहार की मस्ती। हो । महकनेवाला । गंध देनेवाला । क्रि० प्र०-टपकना । -बहना। महकना-कि० अ० [हिं० महक+ना (प्रत्य॰)] गंध देना । पास मस्तु-संज्ञा पुं० [सं०] (1) दही का पानी । (२) लेने का पानी। देना। मस्तुलंग-संज्ञा पुं० [सं०] मस्तिष्क । मगज । महकमा-संका पुं० [अ० ] किसी विशिष्ट कार्य के लिए अलग मस्तूरी-संज्ञा स्त्री० [सं० भस्रा ] धातु गलाने की भट्ठी । (फतहपुर) किया हुआ विभाग । सौगा। सरिश्ता । जैसे, सुगी का मस्तूल-संज्ञा पुं० [ पुर्त० ] थबी नावों आदि के बीच में खड़ा महकमा, रजिस्टरी का महकमा । गाया जानेवाला वह बड़ा लट्ठा या शहतीर जिसमें पाल महकान*-संशा पु० दे० "महक"। उ०-कनक बरन जगमग खाँधते हैं। तन में असदन की महकान । -देव स्वामी । मस्सा -संशा पुं० दे. "मसा"। महकाली-संशा स्त्री० [सं० महाकाली ] पार्वती । (डि.) महँ*-अव्य० [सं० मध्य ] में । महकीला-वि० [हिं० महक+ईला (प्रत्य॰)] जिससे छी महक मई-वि० [सं० महा ] महान् । भारी। उ०.-विदित पठान आती हो । सुगंधित । महकदार । खुशवदार। . राज मह रहई । रहे पठान प्रबल नहँ महई। महयक्र-संज्ञा पुं० [हिं० ] सूर्य । __ अव्य० दे० "महँ"। ' महज़-वि० [अ०] (1) शुद्ध । खालिम्प । जैसे,—यह तो महज़ महक-संज्ञा स्त्री० दे० "महक"। पानी है। (२) केवल । मात्र । सिर्फ। जैसे,-महज़ आप महकना-क्रि० अ० दे० "महफना"। की खातिर मे मैं यहाँ आ गया । महँगा-वि० [सं० महा ] जिपका मूल्य साधारण पा उचित की महजरनामा-संशा पु० [अ० महजर खून+फा नामा ] वह लेख अपेक्षा अधिक हो ।अधिक मूल्य पर विकनेवाला । जैसे, जिसमें किधी की हत्या होने अथवा किसी के हत्या के आजकल कपड़ा और गल्ला दोनों मइँगे हैं। उ.-कारण अपराधी होने का प्रमाण हो । हत्या अमत्रा हत्यारे के संबंध अगर रहत है संगा। कारज अगर विकत सो हँगा।- का साक्षीपत्र । हिंसा विषयक सामीपत्र । विश्राम।

मह जित-संशा स्त्री० दे० "मसजिद"।

महँगाई-संज्ञा स्त्री० दे० "महँगी"। . महण-संका पुं० [हिं० ] समुद्र । महँगी-संशा स्त्री० [हिं० महँगा+i (प्रत्य०) ] (१) महँगे होने का महत्-वि० [सं०] (1) महान् । बृहत् । बा। (२) सबसे भाष । महंगापन । (२) महँगे होने की अवस्था । (३) बढ़कर । सर्वश्रेष्ठ। दुर्भिक्ष । अकाल। कहत । संशा पुं० (१) प्रकृति का पहला विकार, महत्तव । (२) क्रि० प्र०-पड़ना। ब्रह्म । (३) राज्य । (५) जल। महँदा -संज्ञा पुं० [देश॰] भुने हुए चने (बिहार)। महत-संज्ञा पुं० दे० "महत्व"। उ.-कहै पद्माकर कोर झिल्ली महंत-संशा पुं० [सं० महत्=बड़ा ] साधु मंडली या मठ का झोरन को मोरन का महत न कोड मन ल्यावतो ।- अधिष्ठाता। साधुओं का मुखिया। पक्षाकर। वि० बका। श्रेष्ठ । प्रधान । मुखिया । उ०—सखा प्रवीन महतधान-संज्ञा पुं॰ [देश॰] करघे में पीछे की ओर लगी हुई हमारे तुम हो तुम नहीं महंत । वह खूटी जिसमें ताने को पीछे की ओर कसका खींचे राने-