पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

महफिल महरा महफ़िल-संशा स्त्री० [40] (१) मनुष्यों के एकत्र होने का जिसकी सहायता से छोड़े के सवार उमे चलाने के लिए स्थान । मजलिस । सभा । समाज । जलसा । (२) नृत्य - ब लगाते हैं । गीत होने का स्थान । नाच गाना होने का स्थान । महम्मद-संज्ञा पुं० दे० "मुहम्मद"। क्रि०प्र०-जमना ।--भरना ।—लगना । महर-संशा पुं० [सं० महत् ] [ स्त्री० मरि ] (1) ब्रज में बोला महफूज़-वि० [40 ] जिसकी हिफाजत की गई हो। सुरक्षित। जानेवाला एक आदरसूचक शब्द जिसका व्यवहार विशेषतः बचापा हुआ। रक्षा किया हुआ। जमींदारों और श्यों आदि के संबंध में होता है । ( कभी महबूब-संशा पुं० [अ०] वह जिससे प्रेम किया जाय। जिससे कभी इस शब्द का व्यवहार केवल श्रीकृष्ण के पालक और दिल लगाया जाय । उ०—रसनिधि आत्रत देखिकै जन पिता नंद के लिए भी बिना उनका नाम लिए ही होता मोहन महबूब । उमदी शिठ बरुनीन की हगन बधाई है।) उ0-(क) महर त्रिनय दोऊ कर जोर घृत धान दूध । -रसनिधि। पय बहुत मॅगायो।-सूर । (ख) पूरि अभिलापन को महबूबा-संज्ञा स्त्री० [अ० ] वह स्त्री जिससे प्रेम किया जाय । चाखन के माग्वन ले दाखन मधुर भरे महर सँगाय रे।- प्रेमिका । माशूका । उ.--आशिक ह पुनि भारती मह दीन । (ग) मज को दिरह अरु संग महर को कुवरिहि परत या पुनि आप चाहनहारो आप स्यौं बेपरवाही आर। न नेकु लजाने । सुलसी । (२) एक प्रकार का पक्षी । रसनिधि। उ.-सारो सुवा महर कोकिला । रहसत आह परिहा महमंत-वि० [सं० महा+मत्त ] मस्त । उन्मत । मदमत। मिला ।-जायसी । (३) दे. “महरा"। उ०—नाज उ-काया कजरी बन अह मन कुंजर महमंत । अंकुश बारी महर खब, धाउ धाय समेत ।-रघुराज । शान स्तन है फेरै माधू संत । —कबीर । वि० [ फा मेहरदया ] दयावान् । दयालु।() महमद*-संज्ञा पु. दे. "मुहम्मद"। संज्ञा पुं० [अ० ] मुसलमानों में वह सम्पत्ति या धन जी महमदी-वि० [अ० मुहम्मदी ) मुहम्मद का मतानुयायी। विवाह के पमर वर की ओर से कन्या को देना ििश्चत मुसलमान । होता है। मह मह-क्रि० वि० [हिं० महकना ] सुगंधि के साथ । खुशबू के महा-महर बाँधना=महर के लिए धन या सम्पत्ति नियत साथ । उ०—(क) मह मह मह मह महकत धरता रोम करना। राम जनु पुलकि उठी।-देवस्वामी । (ख) चार चमेली वि० [हिं० महक ] महमहा। सुगंधित । 30-महर महर बन रही मह मह महकि सुबास । हरिश्चंद्र। घर बाहर राउर देह । लहर लहर छवि तम जिमि, ज्वलन महमहण-संज्ञा पुं० [सं० महि+मथन ) विरु: । (डि.) सनेह । --रहिमन । महमहा-वि० [हिं० महमह ) सुगंधित । खुशबूदार । उ०-(क) महरबान-संज्ञा पुं० दे० "मेहरबान"। महमही मंद मंद मास्त मिलनि, तैसी गहगही बिलगि महरम-संज्ञा पुं० [अ०] (1) मुसलमानों में किनी कन्या या स्त्री गुलाब के कलीन की। रसखानि । (ख)महमहे लोक दस के लिए उसका कोई ऐसा बहुत पाय का संबंधी जिसके चारह सुगंधन ते उमहे महेश अज आदि सुर ठठ है। साथ डा.का विवाह न हो सकता हो । जैम, पिता, वाचा, महमहाना-क्रि० अ० [हिं० महमह अथवा महकना ) गम्कना । नाना, भाई, मामा आदि। (मुसलमानी धर्म के अनुपार सुगंधि देना। 30-मल्ली दुम बलित, ललित पारिजान स्त्रियों को केवल ऐसे ही पुरुषों के सामने बिना परदे या पुंज, मंजु वन बेलिन, चमेलिन महमहात ।- घट के जाना चाहिए।) (२) भेद का जाननेवाला । रसकुसुमाकर। रहस्य से परिचित । उ०-दिल का महरम कोई न मिलिया महमा -संज्ञा स्त्री० दे० "महिमा"। जो मिलिया सो गरजी । कह कबीर असमान फाटा क्योंकर महमान-संज्ञा पुं० ० "मेहमान"। सीव दरजी। कपीर। महमानी-संशा सी० दे. "मेहमानी"। संशा खी० (१) अँगिया का मुलकट । अॅगिया का कटोरी। महमाय-संज्ञा स्त्री० [सं० महामाया ] पार्वती । (डिं.) (२) अँगिया । उ०-गए जदपि मुनि सूर तन पत्थर घने महमुदी-संशा स्त्री० [फा० महमूद+ (प्रत्य॰)] सल्लम की तरह चलाप । व्याप सन जे फूल वे महरम घाले आय ।-- का एक प्रकार का मोटा देशी कपड़ा। सनिधि। संज्ञा पुं० एक प्रकार का पुराना छोटा सिक्का । महरा-संज्ञा पु० [हिं० महता ] [ श्री महरा ! (1) कहार । (२) महमेज़-संशा श्री. [ का. ] एक प्रकार की लोहे की नाल जी असुर के लिए प्रादरसूचक शब्द । (६मार) जूते में पीछे की ओर एपीके पास लगाई जाती है और बि. प्रधान । ओह बड़ा ।