पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/३९८

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महाअरंभ २६८९ महाकाश अजय संसार रिपु जीति सकासो बीर । जाके अस रथ है। इसका प्यवहार औषध रूप में होता है। वैधक में इस होइ ६ सुनहु सवा मतिधीर ।-तुलसी । (२) सर्व तीक्ष्ण, उष्ण, कटु तथा विष, कंडु, कुष्ट, ब्रण और त्वचा के श्रेष्ठ । सब से बढ़कर । उ---महामंत्र जोइ जपत महेसू। दोषों का नाशक माना है। कापी मुकुति हेतु उपदेसू ।-तुलमी । (३) बहुत बड़ा। पाल–हस्तिचारिणी। विषनी। काकनी । मदहस्तिनी । भारी । जैसे, महावाहु, महासमुद्र । उ.--(क) धुंद | मधुमती । रसायनी । हस्तिकर ज । काकभांडी । मधुमता। सीखि गो कहा महासमुद्र छीजई।-केशव । (ख) कई महाकर-संज्ञा पुं० [सं०] एक बोधिसत्व का नाम । पनाकर सुधास ते जवास तें सुफूलन की रास ते जगी है महाकर्ण-संज्ञा पुं० [सं०] एक नाग का नाम। महा सास तें।-पक्षाफर । महाकर्णा-संज्ञा स्त्री० [सं०] कार्तिकेय की एक मातृका का नाम । विशेष-बाह्मण, पान, यात्रा, प्रस्थान, तैल और मांस इन महाकणिकार--संज्ञा पुं० [सं० ] अमलतास । शब्दों में 'महा' शब्द लगाने से इन शब्दों के अर्थ कुस्मित ' महाकल्प-संशा पुं० [सं०] पुराणानुग्पार उतना काल जितने हो जाते है। जैसे, महाब्राह्मण कट्टहा प्राह्मण । महा- में एक प्रक्षा की आयु पूरी होती है। ब्रह्म-करुप । वि० पात्रकदृहा माह्मण । महायात्रा मृत्यु । महाप्रस्थान= दे० "कल्प"। उ.--महाकल्पांत दांड मंडल दवन भवन मृत्यु । महानिद्रा-मृत्यु । महामांस- मनुष्य का मांस । कैलाश आसीन कामी।-तुलसी। महाअरंभ-वि० सं० महा+रंभ शौर, हल नल ] बहत शोर । महाकांत-संज्ञा पुं० [सं०] शिव । बहुत हलचल । उ..-नीर होइ तर ऊपर सोई। महाअरंभ महाकांता-संशा स्त्री० [सं०] पृथ्वी। समुद जम होई । —जायसी । महाकांतार-संशा पुं० [सं०] एक प्राचीन देश का नाम । महाअहि-संज्ञा पुं० [सं०] शेषनाग । 'महाकाय-संशा पु० [सं० ) (1) शिवजी का नंदी नामक गण महाई-संथा स्त्री० [सं० मथन हिं. महना+आई (प्रत्य॰)] (1) और द्वारपाल । (२) हाथी। मथने का काम । (२) नील की मथाई । नील के रंग को महाकार्तिकी-संज्ञा स्त्री० [सं० ] कार्तिक की वह पूर्णिमा जो मथने का काम । (३) मथने का भाव । (४) मथने की रोहिणी नक्षत्र में हो। यह बहुत यड़ा पुण्यतिथि मानी मजदूरी। जाती है। महाउत*-संज्ञा पुं० दे० "महावत"। उ हलै इतै पर मैन महाकाल-संज्ञा पुं० [सं०] (1) सृष्टि और प्राणियों का अंत महाउत लाज के आंद परे गधि पायन । करनेवाले, महादेव । शिव का एक स्वरूप । उ०-कराल महाउर-संज्ञा पुं० दे० "महावर"। उ०--(क) प्यारो सगै यह जाको महाकाल कालं कृपालं।-तुलसी। (२) समय जो विष्णु के मनेह महा उर बीच महाउर को रंग-देव। (ख) मोहिं तो समान अखंड और अनंत है। (३) शिव के एक गण का साध महाउर हैरी महाउर नाइन तोसों दिवाऊँ।-दास।। नाम । (४) पुराणानुसार शिव के एक पुत्र का नाम । महाकंकर-संज्ञा पुं० [सं० बालों के अनुसार एक बहुत बड़ी विशेष-कालिका पुराण में लिखा है कि एक बार देवताओं ने संख्या। अग्नि में शिव का वीर्य धारण करने के लिए कहा था। महाकंद-संज्ञा पुं० [सं०] (१) लहसुन । (२) प्याज । जब वह वीर्य धारण करने लगी, तब उसमें से दो बूदें महाकच्छ-संज्ञा पुं० [सं०] (1) एमुद्र। (२) वरुणदेव । (३) अलग जा ही जिनसे महाकाल और भृक्ती नामक दो पुत्र पर्वत । पहार। (४) एक प्राचीन देश का नाम । उत्पन्न हुए। एक बार इन दोनों पुत्रों ने भवानी को उस महाकंधु-संशा पुं० [सं०] शिव । समय देख लिया था जिस समय वे शिव के माय विहार महाकन्य-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रवरकार ऋषि का नाम । करने के उपरांत बाहर निकल रही थीं । भवानी ने इन्हें महाकपाल-संज्ञा पुं० [सं०] (1) एक राक्षस का नाम । (२) । शाप दिया जिससे ये दोनों बेताल और भैरव हुए। शिव के एक अनुचर का नाम । महाकाली-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) महाकाल स्वरूप शिव को महाकपि-संज्ञा पुं० [स] () शिव के एक अनुचर का नाम ।। पत्री जिसके पाँच मुख और आठ भुजाएँ मानी जाती हैं। (२) एक बोधिसव का नाम । (२) दुर्गा की एक मूर्ति । (३) शक्ति की एक अनुचरी का महाकपित्थ-संज्ञा पुं० [सं०] बेल का वृक्ष । नाम । (४) जैनों के अनुसार सोलह विद्या-देवियों में से महाकपांत-संशा पुं० [सं०] सुश्रुत के अनुसार २६ प्रकार के एक जो अवसर्पिणी के पांचवें अर्हत की देवी हैं। बहुत ही विषधर साँपों में से एक प्रकार का साँप। । महाकालेय-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का साम । महाकपोल-संज्ञा पुं० [सं० ] शिव के एक अनुचर का नाम । | महाकाव्य-संज्ञा पुं० दे. "काष्य" । महाकरंज-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का करंज जो बड़ा होता | महाकाश-संशा पुं० [सं० ] एक पर्वत का नाम ।