पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/४००

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महाचक्री २६९१ महादंष्ट्र महाचक्री-संज्ञा पुं० [सं० महानिन् ] (1) विष्णु। (२) वह महाज्वाला-संशा सी० [सं०] जैनियों की एक विद्यादेवी का नाम । जो षडयंत्र रचने में बहुत प्रवीण हो। महातस्थ-संज्ञा पुं० दे० "महत्सव" । उ.-त्रिगुण तस्व महाचपला-संशा स्त्री० [सं०] वह आर्या छद जिसके दोनों ते महातख, महातत्व ते अहंकार । मन द्रिय शम्दादि दलों में चपला छंद के लक्षण हों। पंची ताते किए विस्तार । -सूर । (ख) देव, प्रकृति म्हा- महाचार्य-संज्ञा पुं० [सं०] शिव । तव सदादि गुण देवता व्योम मरुदग्नि अमिल्लाबु उ: ।- महाचिसा-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक अप्सरा का नाम । तुलम्पी। महाचूड़ा-संशा स्त्री० [सं०] स्कंद की एक मातृका महातप्तकन्छ-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रत जिसमें तीन दिन तक का नाम। गरम दूध, गरम घी या गरम जल पीकर चौथे दिन उपवास महाच्छाय-संज्ञा पुं० [सं०] वट वृक्ष । बद का पेड़। किया जाता है। महाजधीर-संज्ञा पुं० [सं०] कमला नीं। महातम-संज्ञा पुं० दे० "माहाम्"। उ.--(क) करि महाजंबु-संज्ञा पुं० [सं०] बड़ा जामुन । प्रणाम देवत बन धागा । कहत महातम अति अनुरागा।- महाजंभ-संज्ञा पुं० [सं० ] शिव के एक अनुचर का नाम । तुलसी । (ख) मघ सुखनिधि हरि नाम महातम पायो है महाजन-संशा पुं० [सं०] (1) बड़ा या श्रेष्ठ पुरुष । (२) नाहिन पहिचानत ।-सूर । साधु । (३) धनी व्यक्ति । धनवान । दौलतमंद । (४) महातल-संज्ञा पुं० [सं०] चौदह भुवनों में से पृथ्वी के मीने का रुपए पैसे का लेन देन करनेवाला व्यक्ति । कोठीवाल । पाँचवाँ भुवन वा तल । उ०-अतल वितल अरु सुतल उ०-बहुरि महाजन सकल बोलाए ।--तुलसी । (५) तलातल और महातल जान । पाताल और स्पातल मिलि बनिया । उ०-महतो से मुगुल, महाजन से महाराज सातौ भुवन प्रमान ।-सूर । दिली.पकरि पठान पटवारी ये ।-भूषण । महाताग-संशा स्त्री० [सं०] बोहों की एक देवी का नाम । (६) प्रामाणिक आधरणवाला व्यक्ति । भलामानुस । महातिक्त-संशा पुं० [सं०] (1) महानिब । बकायन । (२) उ.---पथ सो जाइ महाजन थापै ।-रघुनाथ । चिरायता। महाजनी-संशा स्त्री० [हिं० महाजन+ई (प्रत्य॰)] (१) रुपए के लेन महातीक्ष्ण-वि० [सं०] (1) अत्यंत तीक्ष्ण या तेज़ । (२) देन का व्यवसाय । हुंडी पुरजे का काम । कोठीवाली। बहुत करना या मालदार । (२) एक प्रकार की लिपि जिसमें मात्राएँ आदि नहीं लगाई संज्ञा पुं० भिलावाँ । जाती। यह लिपि महाजनी के यहाँ बही खाता लिम्बने में महातेज-संज्ञा पुं० [सं० महातेजम् ] (१) शिव । (२) पारा। काम आती है। मुड़िया। महात्मा-संज्ञा पुं० [सं० महात्मन् ] (1) वह जिपर्कः आरमा या महाजय-संशा स्त्री० [सं०] दुर्गा। आशय बहुत उच्च हों। वह जिस का स्वभाव, आचरण और महाजल-संशा पुं० [सं०] समुद्र । उ०—मलय तनु मिलि विचार आदि बहुत उच्च हो । महानुभाव । (२) बहुत लसति सोभा महाजल गंभीर । निरखि लोचन भ्रमत पुनि बड़ा साधु, संन्यासी या विरक्त । (३) दुष्ट । पाजी। पुनि धरत नहि मन धीर ।-सूर। (व्यंग्य) (४) परमात्मा । (५) पितरों का एक गण । (६) महाजवा-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) कुमार की अनुचरी एक मातृका महादेव । शिव । (७) महत्तस्य । का नाम । (२) एक नदी का नाम । महात्रिफला-संज्ञा स्त्री० [सं०] बहेडा, आंवला और हड़ इन महाजानु-संज्ञा पुं० [सं०] शिव के एक अनुचर का नाम । तीनों का समूह । महाजावालि-संशा खी० [सं०] एक उपनिषद का नाम । महात्याग-संज्ञा पुं० [सं०] दान । महाजिल-संज्ञा पुं० [सं०] (1) शिव । (२) पुराणानुसार एक महात्यागो-संज्ञा पुं० सं० महात्यागिन् ] शिव । दैत्य का नाम । महादंड-संशा पुं० [सं० ] (१) यम के हाथ का दंड। (२) यम महाशानी-संज्ञा पुं० [सं० महाशानिन् ] (1) यह जो बड़ा ज्ञानी के दूत । हो। (२) शिव । महादंडधारी-संज्ञा पुं० [सं० महादंडधारिन् ) यमराज । उ०- महाज्योतिष्मती-संज्ञा स्त्री० [सं०] बड़ी मालफंगनी । फर कोतवाली महादब्धारी । सका मेघमाला, शिग्बी पाक महाज्वाल-संज्ञा पुं० [सं०] (1) हवन की अग्नि । (२) पुराणा कारी। केशव । नुसार एक नरक का नाम । कहते हैं कि जो लोग अपनी महादंत-संशा पुं० [सं०] (1) महादेव । (२) हाथी-दाँत । पुत्रवधू या कन्या के साथ गमन करते हैं, वे इस नरक में महादता-संशा स्त्री० [सं०] नागबेन । जाते हैं। (३) महादेव । महादंष्ट्र-संज्ञा पुं० [सं०] (1) महादेव । शंकर । (२) एक